ग़ज़लें
झूठ, ढिठाई, तानाशाही, गाली, गुंडे-
इतनी बैसाखीं, पर बहस से डरते हो !
लगता है फिर आज किसी ने धोया है
टंगे-टंगे से, निचुड़े-निचुड़े लगते हो
अपने-आप से हार चुके हो, इसी लिए
बेध्यानी में ध्यान की बातें करते हो
झूठी जीत से झूठी ख़ुशियां पाते हो
औरों को कम, ख़ुदको ज़्यादा ठगते हो
अभी तुम्हारा कर्ज़ लदा है सीने पर
अदा करुंगा, बचकर कहाँ निकलते हो
2.
किरनें-विरनें गयी कहाँ पर !
हुआ कहाँ विनियोजित सूरज ?
ख़ुदकी गर्मी से जलता है
आसमान के पाँव पकड़ कर
1.
झूठ पहनकर कितने अच्छे लगते हो
कपड़ों के अंदर से नंगे दिखते हो
गलियाना बाज़ार को भी अब पेशा है
बाद में गलियाते हो, पहले बिकते होझूठ, ढिठाई, तानाशाही, गाली, गुंडे-
इतनी बैसाखीं, पर बहस से डरते हो !
लगता है फिर आज किसी ने धोया है
टंगे-टंगे से, निचुड़े-निचुड़े लगते हो
अपने-आप से हार चुके हो, इसी लिए
बेध्यानी में ध्यान की बातें करते हो
झूठी जीत से झूठी ख़ुशियां पाते हो
औरों को कम, ख़ुदको ज़्यादा ठगते हो
अभी तुम्हारा कर्ज़ लदा है सीने पर
अदा करुंगा, बचकर कहाँ निकलते हो
2.
तलघर में आयोजित सूरज
फिर निकला प्रायोजित सूरज
हुआ कहाँ विनियोजित सूरज ?
ख़ुदकी गर्मी से जलता है
कैसे हो अनुशासित सूरज
चाँद-वाँद सब जल जाएंगे
हुआ अगर अनियंत्रित सूरज
हो जाता अनुमोदित सूरज
पीछे साजिश का अंधियारा
आगे पूर्व-नियोजित सूरज
-संजय ग्रोवर
तलघर में आयोजित सूरज
जवाब देंहटाएंफ़िर निकला प्रायोजित सूरज
ग़ज़ल तो अच्छी है और काफिया और शानदार
पीछे साजिश का अंधियारा
जवाब देंहटाएंआगे पूर्व-नियोजित सूरज
-बहुत ऊँची बात कही है संजय भाई, वाह!!
@ लगता है फ़िर आज किसी ने धोया है
जवाब देंहटाएंटंगे-टंगे से, निचुड़े-निचुड़े लगते हो
शानदार।
चाँद-वाँद सब जल जाएंगे
जवाब देंहटाएंहुआ अगर अनियंत्रित सूरज
दोनों गज़ल शानदार कही हैं ...मन के भाव स्पष्ट दिख रहे हैं
good work.
जवाब देंहटाएं-shikha sharma
(VIA EMAIL)
nice poems...
जवाब देंहटाएं-Shaleen Singh
(VIA EMAIL)
bhaut khub gazal kahi hai doini hi apne
जवाब देंहटाएंदोनो ग़ज़लें...एक अनोखी ताज़गी का अहसास तारी कर गयीं....
जवाब देंहटाएंझूठी जीत से झूठी ख़ुशियां पाते हो
जवाब देंहटाएंऔरों को कम, ख़ुदको ज़्यादा ठगते हो...kyaa kahne
पीछे साजिश का अंधियारा
जवाब देंहटाएंआगे पूर्व-नियोजित सूरज..aur ye bhi khoob hai
फ़िर निकला प्रायोजित सूरज...बहुत सुन्दर संजय भाई.आपके लिखने में भी रवानी है और ख़याल में भी ..दुआएँ...
जवाब देंहटाएंशब्द, जिनमें वक्त की सच्चाइयां हैं,
जवाब देंहटाएंशब्द, जिनमें सत्य की परछाइयां हैं।
रहजनों के नगर में, भेड़ियों की भीड़ में,
शब्द, जिनमें व्यक्ति की तनहाइयां हैं।
Bahut hi badia. Shandar jandar gajal. Badhai aapko...
जवाब देंहटाएं-Vivek Rastogi
(VIA EMAIL)
बहुत सुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंदोनों ही ग़ज़लों ने मुतास्सिर किया .खाकसार को खास पसंद आये है
जवाब देंहटाएंझूठ, ढिठाई, तानाशाही, गाली, गुंडे-
इतनी बैसाखीं, पर बहस से डरते हो !
लगता है फिर आज किसी ने धोया है
टंगे-टंगे से, निचुड़े-निचुड़े लगते हो
झूठी जीत से झूठी ख़ुशियां पाते हो
औरों को कम, ख़ुदको ज़्यादा ठगते हो
तलघर में आयोजित सूरज
फिर निकला प्रायोजित सूरज
पीछे साजिश का अंधियारा
आगे पूर्व-नियोजित सूरज
ख़ुदकी गर्मी से जलता है
कैसे हो अनुशासित सूरज
जेसा मैंने अर्ज किया सभी शेर ही अच्छे है.जहाँ तक खास पसंद का मामला है मेरी सोच मूड और पर्टिकुलर मानसिक स्थिति अनुसार बदलती रहते है. वह साब खूब लिखा
झूठ, ढिठाई, तानाशाही, गाली, गुंडे-
इतनी बैसाखीं, पर बहस से डरते हो !
लगता है फिर आज किसी ने धोया है
जवाब देंहटाएंटंगे-टंगे से, निचुड़े-निचुड़े लगते हो
ha ha hah....
waise bahut pyari baat kahi aapne
jordaar likhte ho aap......badhai.....
मुझे कविता की सीमित समझ है इसीलिए कविता के विषय में कोई राय नहीं.
जवाब देंहटाएंपर आपके पोल सर्वेक्षण ने ध्यान खींचा. कुतर्क को तर्कशास्त्र की भाषा में लोजिकल फैलेसी कहा जाता है. तर्कशास्त्र दर्शनशास्त्र का अंग है. और आजकल दर्शनशास्त्र शायद ही कोई विधिवत रूप से पढता है. इसीलिए लोग न तो तर्क ठीक से करते हैं, न सही ढंग से सोच पाते हैं, क्योंकि उन्हें तर्क और कुतर्क के बीच अंतर ही नहीं पता. हिंदी ब्लॉगजगत में एक सबसे मुर्खतापूर्ण बात यह कही जाती है की कुतर्क की कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती, जबकि इसे पश्चिम में प्लेटो (३०० ईसा पूर्व) और पूर्व में महर्षि गौतम (६०० ईसा पूर्व) द्वारा विवेचित और परिभाषित कर दिया गया था.
फैलेसी :
http://www.google.co.in/search?hl=en&safe=off&q=logical+fallacies&aq=f&aqi=g10&aql=&oq=&gs_rfai=
पीछे साजिश का अंधियारा
जवाब देंहटाएंआगे पूर्व-नियोजित सूरज
लाज़वाब प्रस्तुति हर शब्द गहरा और दिल में उतरता हुआ
पीछे साजिश का अंधियारा
जवाब देंहटाएंआगे पूर्व-नियोजित सूरज
लाज़वाब प्रस्तुति हर शब्द गहरा और दिल में उतरता हुआ
बहुत बहुत खूबसूरत और बींधती ग़ज़लें हैं।
जवाब देंहटाएंचाँद-वाँद को चांद-वांद कर दें।
@दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
जवाब देंहटाएंचांद-वांद karne ki bahut koshish ki par zara-sa chhedte hi sari post gadbad ho jati hai. Fir koshish karke dekhuNga.
@ab inconvenienti
जानकारी देने के लिये आपका आभार!
आपकी दोनों रचनाएं बेहतर लगीं........
जवाब देंहटाएंऊपर वाली तो गजब ही थी।
लगता है फिर आज किसी ने धोया है
टंगे-टंगे से, निचुड़े-निचुड़े लगते हो
very good sir
जवाब देंहटाएंkeep it up
-rishabh narayan singh
(VIA EMAIL)
यूँ तो दोनों ही रचनाएं लाजवाब हैं...पर प्रायोजित सूरज में जो बात कही है आपने....बेहतरीन !!!!
जवाब देंहटाएंसभी के सभी शेर बहुत उम्दा हैं.....मन को छूते हैं...
sanjay ji bahut hi sarthk lagi aapki dono rachnaye...aaj ke sandarbh me ekdam sateek
जवाब देंहटाएं-asha dhaundiyal
(VIA EMAIL)
शानदार ही नहीं जानदार भी है...
जवाब देंहटाएंइस प्रायोजित सूरज के क्या कहने .... कल भी बादलों की कनात से बाहर निकल ही आया था ...बड़ा बेशरम है ....
जवाब देंहटाएंapki kvitaye jindgi ki schaio ke bhut kreeb hai prne ke bad bhut der tk dimag sochta hai ki kuch to hai jo ander tk hila ke chla gya aur woh hai shbd jo her sans jaise dhrkti lgti hai.kuch likho on bujurgo ki aap beeti jinke buche nokriyo ke bhane onko chor ke khai dur ghr bsa lete hai aur maa bap pote potiyo ki photo vidieo dekh ke khush hote hai apne aansu chapate hai
जवाब देंहटाएंख़ुदकी गर्मी से जलता है
जवाब देंहटाएंकैसे हो अनुशासित सूरज
.........
वजनी !
रेनु जी, असली सूरज हो तो आपके मुंह में घीशक्कर ! पर अगर सूरज भी नकली हो और बादल और कनात भी तो थोड़ी चिंता की बात है। बेमकसद की बेशरमी अपने-आपमें कोई क़ाबिले-ज़िक्र उपलब्धि नहीं, यह शायद आप भी मानेंगीं। :)
जवाब देंहटाएंlagta hai phir aaj kisi ne dhoya hai lines are excellent
जवाब देंहटाएंuttam prastuti, achhi rachna, badhai.
जवाब देंहटाएंhttp://atheism.about.com/od/logicalflawsinreasoning/a/sophistry.htm
जवाब देंहटाएंKinhiN kaarnoN se post me sudhaar sambhav nahiN ho pa rahaa. Pahli ghazal ke aakhiri sher ko kripya yuN padheN :
जवाब देंहटाएंअभी तुम्हारा कर्ज़ लदा है सीने पर
अदा करुंगा, बचकर कहाँ निकलते हो