ग़ज़ल
मैं भी प्यार ‘जताऊं’ क्या
झूठों में मिल जाऊं क्या
15-03-2019
जिस दिन कोई नहीं होता
उस दिन घर पर आऊं क्या
जीवन बड़ा कठिन है रे
फिर जीकर दिखलाऊं क्या
इकला हूं मैं बचपन से
कहो भीड़ बन जाऊं क्या
जब खाता तब खाता हूं
तुमको कुछ मंगवाऊं क्या
जो-जो मैंने काम किए
तुमको भी दिखलाऊं क्या
यूंही जलती रहती है
बत्ती सुनो बुझाऊं क्या
मैं दुनिया से नहीं मिला
तो मैं जां से जाऊं क्या
कभी-कभी डर लगता है
सुनो अभी मर जाऊं क्या
14-04-2019
-संजय ग्रोवर
मैं भी प्यार ‘जताऊं’ क्या
झूठों में मिल जाऊं क्या
15-03-2019
जिस दिन कोई नहीं होता
उस दिन घर पर आऊं क्या
जीवन बड़ा कठिन है रे
फिर जीकर दिखलाऊं क्या
इकला हूं मैं बचपन से
कहो भीड़ बन जाऊं क्या
जब खाता तब खाता हूं
तुमको कुछ मंगवाऊं क्या
जो-जो मैंने काम किए
तुमको भी दिखलाऊं क्या
यूंही जलती रहती है
बत्ती सुनो बुझाऊं क्या
मैं दुनिया से नहीं मिला
तो मैं जां से जाऊं क्या
कभी-कभी डर लगता है
सुनो अभी मर जाऊं क्या
14-04-2019
-संजय ग्रोवर