ग़ज़ल
तू यही था तब ही तुझको छोड़कर आना पड़ागो शहर की शान में गाते हैं सब गाना बड़ा
लड़कियों को ख़ुदसे कमतर मानते हैं सबके सब
इसलिए ही उनके संग देते हैं नज़राना बड़ा
शर्म था वो शहर मैंने उसको थूका बार-बार
दाग़ था वो दौर मुझको बारहा जाना पड़ा
खो गया जो खो गया उसका तो कुछ शिकवा नहीं
है बहुत अफ़सोस उसपे मुझको जो पाना पड़ा
मैं चला था देखकर आए-गए लोगों की चाल
पर जहां अंजाम देखा लौटकर आना पड़ा
-संजय ग्रोवर
क्या तुम अच्छा गा सकते हो ?
गाकर भीड़ लगा सकते हो ?
भीड़ को सम्मोहित करके तुम
क्या नारा लगवा सकते हो ?
भीड़ तालियां भीड़ ही थप्पड़-
ख़ुदको यह समझा सकते हो ?
अब तक जो होता आया है
क्या फिर से करवा सकते हो ?
तुमसे क्या अब बात छुपाना-
क्या तुम घर पर आ सकते हो ?
अपने दिल की बात बताकर
मेरे दिल तक आ सकते हो ?
क्या बोला, मैं नया-नया हूं
ठीक है फिर तुम जा सकते हो
-संजय ग्रोवर
14-02-2020
देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....