एक वक्त था जब आत्मविश्वास का ज़िक्र आते ही मैं घबरा जाता था। तब तक मुझे यही पता था कि यह कोई ऐसी दुर्लभ शय है जो मेरे पास नहीं है और इसके बिना ज़िंदगी जो है बेकार है। जो भी मुझसे कहता कि तुममें आत्मविश्वास नहीं है मैं मान लेता कि ज़रुर इसमें बहुत आत्मविश्वास है इसलिए बेधड़क ऊंगली उठा रहा है। तब तक मुझे यही ग़लतफ़हमी थी कि यह कोई ऐसा विश्वास है जो ‘आत्म’ से यानि अपने भीतर से आता है। मैं क़िताबें बहुत पढ़ता था। क़िताबों से जो ‘आत्मविश्वास’ मिलता वह घर से बाहर निकलते ही डगमगाने लगता और मैं कन्फ्यूज़ हो जाता। मैं और ज़्यादा क़िताबें पढ़ता। परेशानी की चरमावस्था में मुझे कुछ ऐसी क़िताबें मिली जिनमें आत्मविश्वास बढ़ाने के नुस्ख़े थे। जहां तक मुझे याद है कोई क़िताब ऐसी नहीं थी जिसमें व्याख्या की गयी हो कि आत्मविश्वास होता क्या है। अकसर यही सलाहें होतीं कि आईने के सामने खड़े होकर 10 बार बोलो कि ‘मुझमें आत्मविश्वास है’ या कॉपी पर बीस बार लिखो कि ‘मुझमें आत्मविश्वास है’। मैं फिर कन्फ़्यूज़ हो जाता कि जो चीज़ मुझे पता ही नहीं कि होती क्या है उसके बारे में कैसे कहूं कि मुझमें है! यह तो सरासर झूठ होगा।
संकट जानलेवा ही नहीं ईमानलेवा भी था।
उन्हीं दिनों मैंने उस आदमी को देखा जो अपनी धुन में मस्त रास्ते से गुज़रता, अकसर किसीको भी सलाम-नमस्ते किए बिना। कुछेक दफ़ा कर भी लेता। अकसर लोग कहते कि देखो कितना अहंकारी है। कुछ लोग यह भी कहते कि इसमें आत्मविश्वास की कमी है। मैं जो कि कुछ मामलों में बचपन से ही बिगड़ैल था, लोगों की बातों पर न जाकर यह सोच बैठता कि किसीको नमस्ते न करके यह आदमी किसी का लेता क्या है! नमस्ते न करना आवश्यक रुप से किसी का अपमान नहीं है, विरोध नहीं है। अहंकारी तो यह तब होता जब यह चाहता कि हर कोई मुझे सलाम करे, इज़्ज़त दे। मैं सोचता कि आखि़र लोग अपनी बात पर इतने दृढ़ और एकमत क्यों हैं कि यही अहंकारी है। सोचते-सोचते मुझे लगने लगा कि यह दृढ़ता इस बात से आ रही है कि ऐसा सोचने वालों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत ज़्यादा है और वह अकेला है। मुझे लगा कि वह आदमी अहंकारी या आत्मविश्वासहीन है, यह तो पता नहीं मगर इतना ज़रुर तय है कि लोग अकसर अहंकारी हैं और उनका आत्मविश्वास अपनी समझ से कम और भीड़ की स्वीकृति या सहमति से ज़्यादा आता है।
क्या यही आत्मविश्वास होता है ! यह तो बड़ी अजीब-सी चीज़ है ! मैं फिर परेशान, फिर कन्फ्यूज़ड्। संतोष बस इतना कि चलो मुझे पता तो है कि मैं कन्फ्यूज़ड् हूं और अपने कन्फ्यूज़न को किसी सिद्धांत का (पा) जामा पहनाने की कोशिश नहीं कर रहा।
आगे चलकर तो यह लगने लगा कि अपने आप में विश्वास पूरी तरह खो देना और भीड़ की स्वीकृति की आशा में ख़ुदको बहुमत के रंग में रंगते चले जाना ही आत्मविश्वास का स्रोत और समझ है। आत्मविश्वास चाहे जो भी होता हो मगर दो आत्मविश्वासियों में फ़र्क शायद इतना ही होता है कि उनका भीड़ का चुनाव अलग होता है। किसी को आत्मविश्वास राष्ट्रवादी भीड़ से मिलता है तो किसीको मार्क्सवादी भीड़ से। एक तरह की भीड़ है जो क़ानूनविरोधी खाप पंचायतों के सरपंचो को आत्मविश्वास देती है तो दूसरी तरह की भीड़ है जो दहेज विरोधी और पर्यावरण समर्थक कानूनों को सरेआम तोड़ने वाली शहरी शादियों में शामिल होने वाले प्रगतिशीलों को। वैसे थोड़ा आत्मविश्वास बढ़ाकर सोचें तो क्या ये दो तरह की भीड़ और दो तरह के लोग हैं या एक ही तरह के हैं!
भीड़ की ही ‘प्रेरणा’ है कि बेईमान उस चीज़ से भरा-पूरा है जिसे आत्मविश्वास कहते हैं। ईमानदार इस मामले में अकसर ‘हैंड टू माउथ’ भी नहीं हो पाते। मैंने कभी किसी को कहते नहीं सुना कि दाऊद-वाऊद, हर्षद-वर्षद, राटा-टाडिया-इरला-विरला-फ़लानी-खंुबानी आदि-आदि में आत्मविश्वास की कमी है (कम्बख्तमारे नाम तक नहीं याद रहते मुझे तो)। बहरहाल नाम जो भी हों इन महानात्माओं का आत्मविश्वास शायद यहीं से आता है कि पट्ठे ऊपर से चाहे जो कुछ दिखाएं पर अंदर से ज़्यादातर लोग हैं हमारे ही जैसे।
कई लोगों को आत्मविश्वास पुराने या स्थापित विचारकों के उद्धरणों से मिलता है। हम लेखक जब तक बीस-पच्चीस विचारकों के विचारों के टुकड़े जहां-तहां न ठूंस दें, हमें अपना लेख, लेख ही नहीं लगता। पुराने या स्थापित विचारक का टुकड़ा लेख में सजाते ही लेख को तार्किक माना जाने लगता है भले उस टुकड़े में रत्ती-भर तार्किकता न हो। इसी तरह कई लोगों को पुरानी कहावतों/मुहावरों से आत्मविश्वास मिलता है। एक कहावत अकसर इस्तेमाल होती है-‘प्रेम और जंग में सब जायज़ है।’ मैं सोचता हूं कि अगर प्रेम में सब जायज़ है तो फिर एम. एम. एस. बनाना, प्रेमी की हत्या कर देना और प्रेमिका के मुंह पर तेज़ाब डाल देना भी जायज़ ही है। उसपर इतनी हाय-तौबा क्यों !?
एक मित्र का कहना है कि आत्मविश्वासियों की श्रेणी में वे लोग भी रखे जाते हैं जो दूसरों के बारे में तो सब कुछ जानते हैं या उन्हें लगता है कि जानते हैं मगर अपने और अपने अंधे समर्थकों के बारे में कुछ भी नहीं जानते। उन्हें लगता है दूसरे भी उनके बारे में कुछ नहीं जानते।
कई बार तो लगता है कि मूर्खता, ढिठाई, बेशर्मी, तोतारटंत और आत्मविश्वास पर्यायवाची शब्द हैं।
इस कथन के लिए मैं ख़ुदसे भी उतना ही क्षमाप्रार्थी हूं जितना आपसे, अन्यथा न लें।
आप यह तो नहीं सोच रहे कि अब मुझमें आत्मविश्वास आ गया है ! सच्ची बताऊं तो मुझे अभी तक नहीं पता कि आत्मविश्वास होता क्या है। इतना ज़रुर पता है कि लिखूंगा वही जो महसूस करता हूं।
खुलकर कहूं तो आत्मविश्वास कही जाने वाली चीज़ को मैंने अकसर जिस तरह के लोगों में देखा है, डर लगता है कहीं मुझमें भी न आ जाए !
-संजय ग्रोवर
No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
सोमवार, 10 जनवरी 2011
सदस्यता लें
संदेश (Atom)
देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....
ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........
#girls #rape #poetry #poem #verse # लड़कियां # बलात्कार # कविता # कविता #शायरी
(1)
अंतर्द्वंद
(1)
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
(1)
अंधविश्वास
(1)
अकेला
(3)
अनुसरण
(2)
अन्याय
(1)
अफ़वाह
(1)
अफवाहें
(1)
अर्थ
(1)
असमंजस
(2)
असलियत
(1)
अस्पताल
(1)
अहिंसा
(3)
आंदोलन
(4)
आकाश
(1)
आज़ाद
(1)
आतंकवाद
(2)
आत्म-कथा
(2)
आत्मकथा
(1)
आत्मविश्वास
(2)
आत्मविश्वास की कमी
(1)
आध्यात्मिकता
(1)
आभास
(1)
आरक्षण
(3)
आवारग़ी
(1)
इंटरनेट की नयी नैतिकता
(1)
इंटरनेट पर साहित्य की चोरी
(2)
इंसान
(4)
इतिहास
(2)
इमेज
(1)
ईक़िताब
(1)
ईमानदार
(1)
ईमानदारी
(2)
ईमेल
(1)
ईश्वर
(5)
उत्कंठा
(2)
उत्तर भारतीय
(1)
उदयप्रकाश
(1)
उपाय
(1)
उर्दू
(1)
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
(1)
ऊंचा
(1)
ऊब
(1)
एक गेंद करोड़ों पागल
(1)
एकतरफ़ा रिश्ते
(1)
ऐंवेई
(2)
ऐण्टी का प्रो
(1)
औरत
(2)
औरत क्या करे
(3)
औरत क्या करे ?
(3)
कचरा
(1)
कट्टरपंथ
(2)
कट्टरपंथी
(1)
कट्टरमुल्लापंथी
(1)
कठपुतली
(1)
कन्फ्यूज़न
(1)
कमज़ोर
(1)
कम्युनिज़्म
(1)
कर्मकांड
(1)
कविता
(68)
कशमकश
(2)
क़ागज़
(1)
क़ाग़ज़
(1)
कार्टून
(3)
काव्य
(5)
क़िताब
(1)
कुंठा
(1)
कुण्ठा
(1)
क्रांति
(1)
क्रिकेट
(2)
ख़ज़ाना
(1)
खामख्वाह
(2)
ख़ाली
(1)
खीज
(1)
खेल
(2)
गज़ल
(5)
ग़जल
(1)
ग़ज़ल
(28)
ग़रीबी
(1)
गांधीजी
(1)
गाना
(7)
गाय
(2)
ग़ायब
(1)
गीत
(7)
गुंडे
(1)
गौ दूध
(1)
चमत्कार
(2)
चरित्र
(4)
चलती-फिरती लाशें
(1)
चांद
(2)
चालाक़ियां
(1)
चालू
(1)
चिंतन
(2)
चिंता
(1)
चिकित्सा-व्यवस्था
(1)
चुनाव
(1)
चुहल
(2)
चोरी और सीनाज़ोरी
(1)
छंद
(1)
छप्पर फाड़ के
(1)
छोटा कमरा बड़ी खिड़कियां
(3)
छोटापन
(1)
छोटी कहानी
(1)
छोटी बहर
(1)
जड़बुद्धि
(1)
ज़बरदस्ती के रिश्ते
(1)
जयंती
(1)
ज़हर
(1)
जागरण
(1)
जागरुकता
(1)
जाति
(1)
जातिवाद
(2)
जानवर
(1)
ज़िंदगी
(1)
जीवन
(1)
ज्ञान
(1)
झूठ
(3)
झूठे
(1)
टॉफ़ी
(1)
ट्रॉल
(1)
ठग
(1)
डर
(4)
डायरी
(2)
डीसैक्सुअलाइजेशन
(1)
ड्रामा
(1)
ढिठाई
(2)
ढोंगी
(1)
तंज
(1)
तंज़
(10)
तमाशा़
(1)
तर्क
(2)
तवारीख़
(1)
तसलीमा नसरीन
(1)
ताज़ा-बासी
(1)
तालियां
(1)
तुक
(1)
तोते
(1)
दबाव
(1)
दमन
(1)
दयनीय
(1)
दर्शक
(1)
दलित
(1)
दिमाग़
(1)
दिमाग़ का इस्तेमाल
(1)
दिल की बात
(1)
दिल से
(1)
दिल से जीनेवाले
(1)
दिल-दिमाग़
(1)
दिलवाले
(1)
दिशाहीनता
(1)
दुनिया
(2)
दुनियादारी
(1)
दूसरा पहलू
(1)
देश
(2)
देह और नैतिकता
(6)
दोबारा
(1)
दोमुंहापन
(1)
दोस्त
(1)
दोहरे मानदंड
(3)
दोहरे मानदण्ड
(14)
दोहा
(1)
दोहे
(1)
द्वंद
(1)
धर्म
(1)
धर्मग्रंथ
(1)
धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री
(1)
धर्मनिरपेक्षता
(4)
धारणा
(1)
धार्मिक वर्चस्ववादी
(1)
धोखेबाज़
(1)
नकारात्मकता
(1)
नक्कारखाने में तूती
(1)
नज़रिया
(1)
नज़्म
(4)
नज़्मनुमा
(1)
नफरत की राजनीति
(1)
नया
(3)
नया-पुराना
(1)
नाटक
(2)
नाथूराम
(1)
नाथूराम गोडसे
(1)
नाम
(1)
नारा
(1)
नास्तिक
(6)
नास्तिकता
(2)
निरपेक्षता
(1)
निराकार
(3)
निष्पक्षता
(1)
नींद
(1)
न्याय
(1)
पक्ष
(1)
पड़़ोसी
(1)
पद्य
(3)
परंपरा
(5)
परतंत्र आदमी
(1)
परिवर्तन
(4)
पशु
(1)
पहेली
(3)
पाखंड
(8)
पाखंडी
(1)
पाखण्ड
(6)
पागलपन
(1)
पिताजी
(1)
पुण्यतिथि
(1)
पुरस्कार
(2)
पुराना
(1)
पेपर
(1)
पैंतरेबाज़ी
(1)
पोल
(1)
प्रकाशक
(1)
प्रगतिशीलता
(2)
प्रतिष्ठा
(1)
प्रयोग
(1)
प्रायोजित
(1)
प्रेम
(2)
प्रेरणा
(2)
प्रोत्साहन
(2)
फंदा
(1)
फ़क्कड़ी
(1)
फालतू
(1)
फ़िल्मी गाना
(1)
फ़ेसबुक
(1)
फ़ेसबुक-प्रेम
(1)
फैज़ अहमद फैज़्ा
(1)
फ़ैन
(1)
फ़ॉलोअर
(1)
बंद करो पुरस्कार
(2)
बच्चन
(1)
बच्चा
(1)
बच्चे
(1)
बजरंगी
(1)
बड़ा
(2)
बड़े
(1)
बदमाशी
(1)
बदलाव
(4)
बयान
(1)
बहस
(15)
बहुरुपिए
(1)
बात
(1)
बासी
(1)
बिजूके
(1)
बिहारी
(1)
बेईमान
(2)
बेईमानी
(2)
बेशर्मी
(2)
बेशर्मी मोर्चा
(1)
बेहोश
(1)
ब्लाॅग का थोड़ा-सा और लोकतंत्रीकरण
(3)
ब्लैकमेल
(1)
भक्त
(2)
भगवान
(2)
भांड
(1)
भारत का चरित्र
(1)
भारत का भविष्य
(1)
भावनाएं और ठेस
(1)
भाषणबाज़
(1)
भीड़
(5)
भ्रष्ट समाज
(1)
भ्रष्टाचार
(5)
मंज़िल
(1)
मज़ाक़
(1)
मनोरोग
(1)
मनोविज्ञान
(5)
ममता
(1)
मर्दानगी
(1)
मशीन
(1)
महात्मा गांधी
(3)
महानता
(1)
महापुरुष
(1)
महापुरुषों के दिवस
(1)
मां
(2)
मातम
(1)
माता
(1)
मानवता
(1)
मान्यता
(1)
मायना
(1)
मासूमियत
(1)
मिल-जुलके
(1)
मीडिया का माफ़िया
(1)
मुर्दा
(1)
मूर्खता
(3)
मूल्य
(1)
मेरिट
(2)
मौक़ापरस्त
(2)
मौक़ापरस्ती
(1)
मौलिकता
(1)
युवा
(1)
योग्यता
(1)
रंगबदलू
(1)
रचनात्मकता
(1)
रद्दी
(1)
रस
(1)
रहस्य
(2)
राज़
(2)
राजनीति
(5)
राजेंद्र यादव
(1)
राजेश लाखोरकर
(1)
रात
(1)
राष्ट्र-प्रेम
(3)
राष्ट्रप्रेम
(1)
रास्ता
(1)
रिश्ता और राजनीति
(1)
रुढ़ि
(1)
रुढ़िवाद
(1)
रुढ़िवादी
(1)
लघु व्यंग्य
(1)
लघुकथा
(10)
लघुव्यंग्य
(4)
लालच
(1)
लेखक
(1)
लोग क्या कहेंगे
(1)
वात्सल्य
(1)
वामपंथ
(1)
विचार की चोरी
(1)
विज्ञापन
(1)
विवेक
(1)
विश्वगुरु
(1)
वेलेंटाइन डे
(1)
वैलेंटाइन डे
(1)
व्यंग्य
(87)
व्यंग्यकथा
(1)
व्यंग्यचित्र
(1)
व्याख्यान
(1)
शब्द और शोषण
(1)
शरद जोशी
(1)
शराब
(1)
शातिर
(2)
शायद कोई समझे
(1)
शायरी
(55)
शायरी ग़ज़ल
(1)
शेर शायर
(1)
शेरनी का दूध
(1)
संगीत
(2)
संघर्ष
(1)
संजय ग्रोवर
(3)
संजयग्रोवर
(1)
संदिग्ध
(1)
संपादक
(1)
संस्थान
(1)
संस्मरण
(2)
सकारात्मकता
(1)
सच
(4)
सड़क
(1)
सपना
(1)
समझ
(2)
समाज
(6)
समाज की मसाज
(37)
सर्वे
(1)
सवाल
(2)
सवालचंद के चंद सवाल
(9)
सांप्रदायिकता
(5)
साकार
(1)
साजिश
(1)
साभार
(3)
साहस
(1)
साहित्य
(1)
साहित्य की दुर्दशा
(6)
साहित्य में आतंकवाद
(18)
सीज़ोफ़्रीनिया
(1)
स्त्री-विमर्श के आस-पास
(18)
स्लट वॉक
(1)
स्वतंत्र
(1)
हमारे डॉक्टर
(1)
हयात
(1)
हल
(1)
हास्य
(4)
हास्यास्पद
(1)
हिंदी
(1)
हिंदी दिवस
(1)
हिंदी साहित्य में भीड/भेड़वाद
(2)
हिंदी साहित्य में भीड़/भेड़वाद
(5)
हिंसा
(2)
हिन्दुस्तानी
(1)
हिन्दुस्तानी चुनाव
(1)
हिम्मत
(1)
हुक्मरान
(1)
होलियाना हरकतें
(2)
active deadbodies
(1)
alone
(1)
ancestors
(1)
animal
(1)
anniversary
(1)
applause
(1)
atheism
(1)
audience
(1)
author
(1)
autobiography
(1)
awards
(1)
awareness
(1)
big
(2)
Blackmail
(1)
book
(1)
buffoon
(1)
chameleon
(1)
character
(2)
child
(2)
comedy
(1)
communism
(1)
conflict
(1)
confusion
(1)
conspiracy
(1)
contemplation
(1)
corpse
(1)
Corrupt Society
(1)
country
(1)
courage
(2)
cow
(1)
cricket
(1)
crowd
(3)
cunning
(1)
dead body
(1)
decency in language but fraudulence of behavior
(1)
devotee
(1)
devotees
(1)
dishonest
(1)
dishonesty
(2)
Doha
(1)
drama
(3)
dreams
(1)
ebook
(1)
Editor
(1)
elderly
(1)
experiment
(1)
Facebook
(1)
fan
(1)
fear
(1)
forced relationships
(1)
formless
(1)
formless god
(1)
friends
(1)
funny
(1)
funny relationship
(1)
gandhiji
(1)
ghazal
(20)
god
(1)
gods of atheists
(1)
goons
(1)
great
(1)
greatness
(1)
harmony
(1)
highh
(1)
hindi literature
(4)
Hindi Satire
(11)
history
(2)
history satire
(1)
hollow
(1)
honesty
(1)
human-being
(1)
humanity
(1)
humor
(1)
Humour
(3)
hypocrisy
(4)
hypocritical
(2)
in the name of freedom of expression
(1)
injustice
(1)
inner conflict
(1)
innocence
(1)
innovation
(1)
institutions
(1)
IPL
(1)
jokes
(1)
justice
(1)
Legends day
(1)
lie
(3)
life
(1)
literature
(1)
logic
(1)
Loneliness
(1)
lonely
(1)
love
(1)
lyrics
(4)
machine
(1)
master
(1)
meaning
(1)
media
(1)
mob
(3)
moon
(2)
mother
(1)
movements
(1)
music
(2)
name
(1)
neighbors
(1)
night
(1)
non-violence
(1)
old
(1)
one-way relationships
(1)
opportunist
(1)
opportunistic
(1)
oppotunism
(1)
oppressed
(1)
paper
(2)
parrots
(1)
pathetic
(1)
pawns
(1)
perspective
(1)
plagiarism
(1)
poem
(12)
poetry
(29)
poison
(1)
Politics
(1)
poverty
(1)
pressure
(1)
prestige
(1)
propaganda
(1)
publisher
(1)
puppets
(1)
quarrel
(1)
radicalism
(1)
radio
(1)
Rajesh Lakhorkar
(1)
rationality
(1)
reality
(1)
rituals
(1)
royalty
(1)
rumors
(1)
sanctimonious
(1)
Sanjay Grover
(2)
SanjayGrover
(1)
satire
(30)
schizophrenia
(1)
secret
(1)
secrets
(1)
sectarianism
(1)
senseless
(1)
shayari
(7)
short story
(6)
shortage
(1)
sky
(1)
sleep
(1)
slogan
(1)
song
(10)
speeches
(1)
sponsored
(1)
spoon
(1)
statements
(1)
Surendra Mohan Pathak
(1)
survival
(1)
The father
(1)
The gurus of world
(1)
thugs
(1)
tradition
(3)
trap
(1)
trash
(1)
tricks
(1)
troll
(1)
truth
(3)
ultra-calculative
(1)
unemployed
(1)
values
(1)
verse
(6)
vicious
(1)
violence
(1)
virtual
(1)
weak
(1)
weeds
(1)
woman
(2)
world
(2)
world cup
(1)