ग़ज़ल
या तो बेईमानी-भरी दुनिया से मैं कट जाऊं
या कि ईमान के चक्कर में ख़ुद निपट जाऊं
तुम तो चाहते हो सभी माफ़िया में शामिल हों
तुम तो चाहोगे (मैं) अपनी बात से पलट जाऊं
न मैं सौदा हूं ना दलाल न ऊपरवाला
लोग क्यों चाहते हैं उनसे मैं भी पट जाऊं
मेरे अकेलेपन को मौक़ा मत समझ लेना
किसी भी तौर नहीं होगा, सच से कट जाऊं
कितने मिलते हैं मेरे दोस्त औ’ दुश्मन के ख़्याल
यही बेहतर है इनके बीच से मैं हट जाऊं
-संजय ग्रोवर
25-04-2018
या तो बेईमानी-भरी दुनिया से मैं कट जाऊं
या कि ईमान के चक्कर में ख़ुद निपट जाऊं
तुम तो चाहते हो सभी माफ़िया में शामिल हों
तुम तो चाहोगे (मैं) अपनी बात से पलट जाऊं
न मैं सौदा हूं ना दलाल न ऊपरवाला
लोग क्यों चाहते हैं उनसे मैं भी पट जाऊं
मेरे अकेलेपन को मौक़ा मत समझ लेना
किसी भी तौर नहीं होगा, सच से कट जाऊं
कितने मिलते हैं मेरे दोस्त औ’ दुश्मन के ख़्याल
यही बेहतर है इनके बीच से मैं हट जाऊं
-संजय ग्रोवर
25-04-2018
बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
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