ग़ज़लें
1.
फिर ख़रीदी तुमने मेरी ई-क़िताब
मुझको ख़ुदसे रश्क़ आया फिर जनाब
06-09-2017
वाह और अफ़वाह में ढूंढे है राह
मुझको तो चेहरा तेरा लगता नक़ाब
जिसने रट रक्खे बुज़ंुर्गोंवाले ख़्वाब
उसकी समझो आसमानी हर क़िताब
ख़ाप ताज़ा शक़्ल में फिर आ गई
जो है लाया उससे क्या पूछें हिसाब
फिरसे ख़ास हाथों में ख़ासे फूल हैं
उसके नीचे आम, कांटों का अज़ाब
कौन समझेगा मैं अकसर सोचता था
तुम हो मुमक़िन वक़्त पर मुमक़िन जवाब
07-09-2017
2.
उनकी टक्कर उन्हींसे हो गई
वही बच गए, वही गिर पड़े
भीड़ थी तेरे सर में गरमी
देख कहीं अब तेरे सिर पड़े
बहुत लगाई बहुत बुझाई
ख़ुदपे आई ख़ुद ही गिर पड़े
मेरे संग ज़माना सारा
आंख में आंसू यूंही तिर पड़े
मैं उनसे बचना चाहता था
इस ख़ातिर वो मेरे सिर पड़े
07-09-2017
-संजय ग्रोवर
1.
फिर ख़रीदी तुमने मेरी ई-क़िताब
मुझको ख़ुदसे रश्क़ आया फिर जनाब
06-09-2017
वाह और अफ़वाह में ढूंढे है राह
मुझको तो चेहरा तेरा लगता नक़ाब
जिसने रट रक्खे बुज़ंुर्गोंवाले ख़्वाब
उसकी समझो आसमानी हर क़िताब
ख़ाप ताज़ा शक़्ल में फिर आ गई
जो है लाया उससे क्या पूछें हिसाब
फिरसे ख़ास हाथों में ख़ासे फूल हैं
उसके नीचे आम, कांटों का अज़ाब
कौन समझेगा मैं अकसर सोचता था
तुम हो मुमक़िन वक़्त पर मुमक़िन जवाब
07-09-2017
2.
उनकी टक्कर उन्हींसे हो गई
वही बच गए, वही गिर पड़े
भीड़ थी तेरे सर में गरमी
देख कहीं अब तेरे सिर पड़े
बहुत लगाई बहुत बुझाई
ख़ुदपे आई ख़ुद ही गिर पड़े
मेरे संग ज़माना सारा
आंख में आंसू यूंही तिर पड़े
मैं उनसे बचना चाहता था
इस ख़ातिर वो मेरे सिर पड़े
07-09-2017
-संजय ग्रोवर
रचना पढ़ने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है, पृष्ठभूमि के कारण
जवाब देंहटाएंऊपर से मॉडरेशन ???
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
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