ग़ज़ल
जोकि ये समझ रहे हैं मुझे कुछ पता नहीं है
उन्हें जाके ये बता दो उन्हें ख़ुद पता नहीं है
यूंही ख्वाहमख्वाह ही डरके कोई बात मान लेना
इसे तुम हया न समझो, हरगिज़ हया नहीं है
दुत्कारना दलित को, चालू को चाट लेना
जो इसी को जीत समझे कभी जीत़ता नहीं है
वो जो सामने न आए, तू उसी से बचके रहना
वो ज़रुर काट लेगा कि जो भौंकता नहीं है
चालू से मिला चालू, साजिश को कैसे टालूं
यंूकि तुम भी बैठे गाफ़िल, वो कि पूछता नहीं है
उसे सर्द-गर्म कैसा, वो तो खा रहा है पैसा
उसे क्यूं पसीने छूटें, वो जो कांपता नहीं है
इसी रास्ते से मैं क्यों कोई रास्ता निकालूं !
मेरे वास्ते जगत में, क्या रास्ता नहीं है !?
2.
दिखा जो उनको कीचड़,
लिथड़ गए सब लीचड़
ठग-वग की जगमग से,
चमक रहा है प्रांगण
पढ़े-लिखे नंगों से
सहम गए हैं अनपढ़
फ्यूज़-उड़े-कट-आउट
कड़क रहे हैं कड़-कड़
ये रुटीन-रोज़ाना-
तुम कहते हो गड़बड़ !?
कथित 'उच्चता' गुड़-गुड़,
’योग्य’ मक्खियां भड़-भड़
रटो रदीफ़ो रट-रट,
सड़ो काफ़ियो सड़-सड़
-संजय ग्रोवर
No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
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किसने कह दिया बुरी गजलें? जिंदगी की सच्चाई उकेरी गयी है। बढिया हैं।
जवाब देंहटाएं------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
यूंही ख्वाहमख्वाह ही डरके कोई बात मान लेना
जवाब देंहटाएंइसे तुम हया न समझो, हरगिज़ हया नहीं है
बहुत बढ़िया!!
बहुत अच्छी रचनाएं।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन तो हैं भाई..आनन्द आ गया!
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है । कुछ बातें खुरदुरे तरीके से ही कही जा सकतीं हैं । यद्यपि खुरुदरी है कि नहीं पता नहीं । दूसरी वाली तो बिल्कुल क्रिएटिव है ।
जवाब देंहटाएंइसी रास्ते से मैं क्यों कोई रास्ता निकालूं !
मेरे वास्ते जगत में, क्या रास्ता नहीं है !?
दिखा जो उनको कीचड़,
लिथड़ गए सब लीचड़
रटो रदीफ़ो रट-रट,
सड़ो काफ़ियो सड़-सड़
मजा आ गया ।
बढ़िया गजलों को खुरदरी सी/बुरी सी क्यों कह रहे हो|
जवाब देंहटाएंमानवता की धुरी-सी ग़ज़लें,
जवाब देंहटाएंशोषक को हैं छुरी-सी ग़ज़लें।
(कहिए जो भी कहना है:-)
जवाब देंहटाएंक्या कहें,
सरासर 'धोखा' हुआ है हमारे साथ..
कुछ 'बुरा' सा देखने चले थे,
क्या पता था, कई अच्छे शेर भी होंगे
चलिये, मुबारकबाद लीजिये
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
.
जवाब देंहटाएं.
.
"वो जो सामने न आए, तू उसी से बचके रहना
वो ज़रुर काट लेगा कि जो भौंकता नहीं है।"
"कथित 'उच्चता' गुड़-गुड़,
’योग्य’ मक्खियों भड़-भड़.
रटो रदीफ़ो रट-रट,
सड़ो काफ़ियो सड़-सड़."
इतना "बुरा" और "खुरदुरा" काहे को लिख दिये आप ?... भाई जमाने का कुछ तो लिहाज करो ...... :)
आभार!
वाह ग्रोवर साहब , उम्मीद है कि भूले तो नहीं होंगे अपने पडोसी को ,,आपके इन खुरदुरे गज़लों पर तो जाने कब के फ़िसल चुके हैं हम और कहें कि फ़िसल के गिर पडे हैं और लुट गए हैं तो ,....गोया ये तो न समझेंगे कि झाजी दिल्लगी पर उतर आए हैं । संवाद घर की याद अभी भी बहुत आती है ...मिलता हूं किसी दिन फ़ुर्सत में ....
जवाब देंहटाएंमन कचोटा भी और आनंद भी आया..
जवाब देंहटाएं- सुलभ
पढ़े-लिखे नंगों से
जवाब देंहटाएंसहम गए हैं अनपढ़
वाह ..वाह
बहुत वजनी पंक्तियाँ
और उनसे भी ज्यादा वजनी है इसका भावार्थ
वर्ष 2009 की स्मरणीय पंक्ति !
शुभ कामनाएं
यूंही ख्वाहमख्वाह ही डरके कोई बात मान लेना
जवाब देंहटाएंइसे तुम हया न समझो, हरगिज़ हया नहीं है
संजय इस ग़ज़ल के सरे शेर एक से बढ़ कर एक हैं...बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने...वाह...
****
कथित 'उच्चता' गुड़-गुड़,
’योग्य’ मक्खियां भड़-भड़
रटो रदीफ़ो रट-रट,
सड़ो काफ़ियो सड़-सड़
ये अंदाज़ भी निहायत निराला है...बिलकुल अलग हट के...गज़ब.
नीरज
" दुत्कारना दलित को, चालू को चाट लेना
जवाब देंहटाएंजो इसी को जीत समझे कभी जीत़ता नहीं है
वो जो सामने न आए, तू उसी से बचके रहना
वो ज़रुर काट लेगा कि जो भौंकता नहीं है "
संजय जी, बहुत सुंदर बनी हैं गज़ल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (09-06-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (06-01-2013) के चर्चा मंच-1116 (जनवरी की ठण्ड) पर भी होगी!
--
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
नववर्ष की मंगलकामनाओं के साथ-
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रटो रदीफ़ो रट-रट,
जवाब देंहटाएंसड़ो काफ़ियो सड़-सड़..
क्या बात है-- कटु-सुन्दर..
मतला बगैर हो गज़ल, न रदीफ ही रहे,
यह तो गज़ल नहीं, ये कोई वाकया नहीं |
अपनी दूकान चलती रहे, ठेका बना रहे ,
है उज्र इसलिए, रदीफ-काफिया नहीं |
अपनी ही चाल ढालते ग़ज़लों को हम रहे,
पैमाना कोई नहीं, कोई साकिया नहीं |
इस लिंक को देखें, मज़ा आएगा......
हटाएंhttp://youtu.be/cey84a6jaTI