ग़ज़ल
भागते फिरते हैं वो सुंदर मकानों में
ठग कहीं टिकते नहीं अपने बयानों में
शादियों में नोंचते हैं फूल अलबत्ता
प्यार की भी कुछ तड़प होगी सयानों में
नम्र लहज़ों के लिफ़ाफ़ों में जदीदे-मुल्क़
पकड़े जाते हैं हमेशा कन्यादानों में
नम्र लहज़ों के लिफ़ाफ़ों में जदीदे-मुल्क़
पकड़े जाते हैं हमेशा कन्यादानों में
भीड़ में इनका गुज़र है, भीड़ में आनंद
जाने कैसा ख़ालीपन है ख़ानदानों में
जाने क्या सिखलाया ख़ुदने व्याख्यानों में
आजकल डरते हैं ख़ुदके संस्थानों में
हमको भी सच्चा कहो, हमको भी ईमांदार
यह हवस देखी गई है बेईमानों में
हमको भी सच्चा कहो, हमको भी ईमांदार
यह हवस देखी गई है बेईमानों में
मैं किसीको हुक्म देता हूं, न लेता हूं
इसलिए पाया न जाता हुक्मरानों
में
-संजय ग्रोवर
08-08-2018
अलबत्ता = इसके बावजूद, हालांकि, फिर भी, however, nevertheless, । जदीदे-मुल्क़ = देश का (तथाकथित) प्रगतिशील, (so-called) progressive people of nation । कन्यादान = एक शर्मनाक़ रस्म जिसमें कन्या को वस्तु की तरह दान किया जाता है, an embarrassing ceremony/ritual in which the girl is donated like an object । हुक्मरान = शासक, तानाशाह, rulers, dictators
अलबत्ता = इसके बावजूद, हालांकि, फिर भी, however, nevertheless, । जदीदे-मुल्क़ = देश का (तथाकथित) प्रगतिशील, (so-called) progressive people of nation । कन्यादान = एक शर्मनाक़ रस्म जिसमें कन्या को वस्तु की तरह दान किया जाता है, an embarrassing ceremony/ritual in which the girl is donated like an object । हुक्मरान = शासक, तानाशाह, rulers, dictators
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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....