गज़ल
सुबह देर तक सोने का
आज का दिन था रोने का
09-05-2017
मिला वक़्त जब सोने का
वक़्त था सुबह होने का
माफ़िया चाहे जो कर ले
माफ़िया-सा नहीं होने का
सुबह देर तक सोने का
आज का दिन था रोने का
09-05-2017
मिला वक़्त जब सोने का
वक़्त था सुबह होने का
माफ़िया चाहे जो कर ले
माफ़िया-सा नहीं होने का
ज़िंदा रहूं दिखाने को
यह नहीं मुझसे होने का
यही तो मेरा हासिल हैं
दाग़ नहीं मैं धोने का
11-01-2018
सभी तमाशे में शामिल
इनसे क्या है होने का
09-05-2017
-संजय ग्रोवर
12-01-2018
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