ग़ज़ल
मेरी आवारगी को समझेंगे
लोग जब ज़िन्दगी को समझेंगे
ऐसी शोहरत तुम्हे मुबारक हो
हमने कब तुमसे कहा हम लेंगे
गिरने वालों पे मत हंसो लोगो
जो गिरेंगे वही तो संभलेंगे
क्यूं खुदा सामने नहीं आता
जब मिलेगा, उसी से पूछेंगे
जब भी हिम्मत की ज़रुरत होगी
एक कोने में जाके रो लेंगे
वो अगर मौत से रहा डरता
लोग हर रोज़ उसको मारेंगे
तूने क्या-क्या न हमको दिखलाया
ऐ खुदा! हम तुझे भी देखेंगे
लोग जब ज़िन्दगी को समझेंगे
ऐसी शोहरत तुम्हे मुबारक हो
हमने कब तुमसे कहा हम लेंगे
गिरने वालों पे मत हंसो लोगो
जो गिरेंगे वही तो संभलेंगे
क्यूं खुदा सामने नहीं आता
जब मिलेगा, उसी से पूछेंगे
जब भी हिम्मत की ज़रुरत होगी
एक कोने में जाके रो लेंगे
वो अगर मौत से रहा डरता
लोग हर रोज़ उसको मारेंगे
तूने क्या-क्या न हमको दिखलाया
ऐ खुदा! हम तुझे भी देखेंगे
-संजय ग्रोवर
तूने क्या-क्या न हमको दिखलाया
जवाब देंहटाएंऐ खुदा! हम तुझे भी देखेंगे..वाह ख़ुदा को सही चेलेंज
यह ख़ुदा को चेलेंज नहीं है क्योंकि ख़ुदा के अस्तित्व में मैं विश्वास नहीं करता। यह मेरी काफ़ी पुरानी ग़ज़ल है। जिसके इस शे‘र में ख़ुदा प्रतीक के रुप में आ गया है। ख़ुदा और धर्म के नाम पर बनी मान्यताओं, अंधविश्वासों, धारणाओं, परंपराओं की वजह से ख़ुदा को न मानने वालों को जो ज़्यादतियां बर्दाश्त करनी पड़तीं हैं, उसी घुटन, चिढ़ और ग़ुस्से की अभिव्यक्ति इस शे’र में हुई है। शायर ख़ुदा के अस्तित्व में कतई विश्वास नहीं करता, इसकी अभिव्यक्ति व्यंग्यात्मक रुप से एक अन्य शे‘र में हुई है-
हटाएंक्यूं ख़ुदा सामने नहीं आता
जब मिलेगा, उसीसे पूछेंगे।
sundar rachna
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंगिरने वालों पे मत हंसो लोगो
जो गिरेंगे वही तो संभलेंगे