मंगलवार, 23 अगस्त 2011

एक आज़ाद ग़ज़ल



हुकूमत करना चाहो हो..तो हिम्मत क्यूं नहीं करते ?
सियासत तुमको करनी है तो सीधे क्यूं नहीं करते ?

अगर बदमाश है राजा, तो तुम ही कौन-से कम हो ?
कभी फ़रियाद करते हो, कभी छाती पे चढ़ते हो

ये कैसी हड़बड़ी के गड़बड़ी का इल्म होता है !
ठहर के कैसे सोचोगे ? बहुत जल्दी में लगते हो

कभी घुसते हो चिलमन में, कभी चढ़ते हो टोपी पर
जो समझाया है औरों को, कहो ख़ुद भी समझते हो !

बग़ावत लफ्ज़ सुनने में, बहुत अच्छा तो लगता है
फिर उसके बाद जो होता है उसको भी समझते हो ?

हमारा नाम आगे करके हमसे ही नहीं पूछा
कभी इसके अलावा और कुछ तुम कर भी सकते हो ?

किसी की जान जाती है, तुम्हारी शान की ख़ातिर
ज़रा भी ख़ुद नहीं बदले, न जाने क्या बदलते हो !

-संजय ग्रोवर

8 टिप्‍पणियां:

  1. किसी की जान जाती है, तुम्हारी शान की ख़ातिर
    ज़रा भी ख़ुद नहीं बदले, न जाने क्या बदलते हो !
    very nice

    जवाब देंहटाएं
  2. बढ़िया ग़ज़ल |

    कृपया मेरी भी रचना देखें और ब्लॉग अच्छा लगे तो फोलो करें |
    सुनो ऐ सरकार !!
    और इस नए ब्लॉग पे भी आयें और फोलो करें |
    काव्य का संसार

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढिया लिखा है पर टीम अण्णा के लिये है तो सही नही है .

    जवाब देंहटाएं
  5. संजय ग्रोवर जी
    नमस्कार !

    आपकी ग़ज़लों की चोरी बंद हुई कि नहीं ?:)))

    प्रस्तुत ग़ज़ल भी कमाल की है …

    अगर बदमाश है राजा, तो तुम ही कौन-से कम हो ?
    कभी फ़रियाद करते हो, कभी छाती पे चढ़ते हो

    कभी घुसते हो चिलमन में, कभी चढ़ते हो टोपी पर
    जो समझाया है औरों को, कहो ख़ुद भी समझते हो !

    बग़ावत लफ्ज़ सुनने में, बहुत अच्छा तो लगता है
    फिर उसके बाद जो होता है उसको भी समझते हो ?

    सबको अच्छी लताड़ लगाई है :)
    ऐसे तेवर मुझे भी बहुत पसंद हैं …
    हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

    नई ग़ज़ल का इंतज़ार है… मेल भेजिएगा ।
    वक़्त मिले तब आइएगा शस्वरं पर भी …
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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