गिद्ध ने गुहार लगाई,
‘वे मुझे नोंच-नोंचकर खा रहे हैं’
बंदर ने बताया, ‘नकल करना बहुत बुरी बात है’
साँप ने सरगोशी की, ‘लगता है मेरी आस्तीन में कोई छुपा है’
शेर ने शिकायत की, ‘आखि़र कब तक मेरा हक़ मुझे नहीं मिलेगा’
गीदड़ ने ‘गायडेंस’ दी, ‘जो डर गया समझो मर गया’
लोमड़ी लाल-पीली होने लगी, ‘हद दर्जे के लालची हो’
कछुआ कुनमुनाया, ‘अब और आलस्य ठीक नहीं’
खरगोश खाट के नीचे से बोला, ‘हिम्मत है तो आजा सामने’
घुसपैठिया घुन्नाया, ‘मैं अपने घर पर किसी को ग़ैर-क़ानूनी कब्ज़ा हरग़िज़ नहीं करने दूंगा’
साहित्य ने सबको सुना, समोया, देखा, झेला, कहा यहाँ तक कि बका
और हंसते-हंसते उसकी आँख से आंसू निकल पड़े
अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे साहित्य के देवताओं ने घोषणा की, ‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’
-संजय ग्रोवर
रचना तिथि: 30-07-1994
(तकरीबन सोलह साल पहले लिखी इस कविता को बचकाना मानकर एक तरफ़ फ़ेंक रखा था। आज सोचा दोस्तों के सामने रखने में हर्ज़ भी क्या है !)
बंदर ने बताया, ‘नकल करना बहुत बुरी बात है’
साँप ने सरगोशी की, ‘लगता है मेरी आस्तीन में कोई छुपा है’
शेर ने शिकायत की, ‘आखि़र कब तक मेरा हक़ मुझे नहीं मिलेगा’
गीदड़ ने ‘गायडेंस’ दी, ‘जो डर गया समझो मर गया’
लोमड़ी लाल-पीली होने लगी, ‘हद दर्जे के लालची हो’
कछुआ कुनमुनाया, ‘अब और आलस्य ठीक नहीं’
खरगोश खाट के नीचे से बोला, ‘हिम्मत है तो आजा सामने’
घुसपैठिया घुन्नाया, ‘मैं अपने घर पर किसी को ग़ैर-क़ानूनी कब्ज़ा हरग़िज़ नहीं करने दूंगा’
साहित्य ने सबको सुना, समोया, देखा, झेला, कहा यहाँ तक कि बका
और हंसते-हंसते उसकी आँख से आंसू निकल पड़े
अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे साहित्य के देवताओं ने घोषणा की, ‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’
-संजय ग्रोवर
रचना तिथि: 30-07-1994
(तकरीबन सोलह साल पहले लिखी इस कविता को बचकाना मानकर एक तरफ़ फ़ेंक रखा था। आज सोचा दोस्तों के सामने रखने में हर्ज़ भी क्या है !)
sundar prasturi
जवाब देंहटाएंaabhar..
yogendra kumar purohit
M.F.a.
BIKANER,INDIA
सुन्दर और विचार युक्त रचना के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंआपकी कविता बहुत अच्छी लगी.....
जवाब देंहटाएंगहरी सी लगती बात...
जवाब देंहटाएंबेहतर...
कमाल की कविता है संजय भाई....
जवाब देंहटाएंयह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।
जवाब देंहटाएंफ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!
सुन्दर भाव!
जवाब देंहटाएंक्या आप ब्लॉग संकलक हमारीवाणी.कॉम के सदस्य हैं?
वाह जनाब, इक प्रकार से आपने अपने स्टाइल से पंचतन्त्र की सी कथा में कविता वोह भी नेगेटव को पोसिटिव बनाते हुवे लिखी है .बात नए अंदाज़ में कही गयी इस लिए रोचक लगी.
जवाब देंहटाएंगिद्ध ने गुहार लगाई,
‘वे मुझे नोंच-नोंचकर खा रहे हैं’-- साब ,अपरोक्ष रूप में ओक्सितोक्सिन के ज़हर से मेरे प्रदेश के तो सारे गिद्ध मारे जा चुके हैं .
अच्छा व्यंग किया है ..
जवाब देंहटाएंव्यंग्य लिखता हूँ इसलिए व्यंग्य दिखता है .
जवाब देंहटाएंएकदम चोखी कविता
एक अच्छे ब्लॉग से जुड़ा हूँ.
....और यही सब कुछ साहित्य के भीतर भी ज्यों का त्यों हुआ...!
जवाब देंहटाएंलाजवाब व्यंग. बचपन का पढ़ा कुछ याद आ गया.
जवाब देंहटाएं"बहरा बोला साफ़ सुनाई दे रहा
डाकू दल दल का शोर
डाकू दल दल का शोर!!!
कसम अंधे ने खाई
वो देखो बारह डाकू
पड़ रहे दिखाई
लूला बोला
दो दो हाथ दिखाएँ
लंगड़ा बोला भाग चलो
वरना मर जाये .."
....बहुत सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ
sanjay ji
जवाब देंहटाएंbahut majedaar blo hai. jhoot pahan kar achhe lagte ho kya khoob hai. badhai.
sharad joshi a par neye dhang se likah hai.
-mmsaral
(VIA EMAIL)
achchi hai!
जवाब देंहटाएंअद्भुत!
जवाब देंहटाएंबधाई.
वाह-वा! मज़ा आया.
जवाब देंहटाएंये साहित्य भी अच्छी दशा को प्राप्त हुआ है.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया भाई......
जवाब देंहटाएंBahut acha laga ye vyagya..bahut2 badhai
जवाब देंहटाएंBahut sundar vayangya laga..bahut2 badhai...
जवाब देंहटाएंEk nayi duniya dekhi yahaan...
जवाब देंहटाएंbahoot hi sunder vyang hai sahotya ki gotbandi par...
जवाब देंहटाएंvery nice------------
bahoot hi sunder vyang hai sahotya ki gotbandi par...
जवाब देंहटाएंvery nice------------
bahoot hi sunder vyang hai sahotya ki gotbandi par...
जवाब देंहटाएंvery nice------------
bahoot hi sunder vyang hai sahotya ki gotbandi par...
जवाब देंहटाएंvery nice------------
bahoot hi gahri chot hai sahitya ke gutbazi par......
जवाब देंहटाएंसंजय ग्रोवर जी
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना लिखी है …
बधाई शब्द पर्याप्त नहीं है इस बार …
अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे
साहित्य के देवताओं ने घोषणा की,
‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’
वाकई क्या लिखा है …
ऊऽऽऽय्य्य्याऽऽह !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut hi badhiya...ye to wine ki us botal ki tarah hai jo barso pahale aapne fek diya par wakt ke sath iska swad badhata gaya...
जवाब देंहटाएंअपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे
जवाब देंहटाएंसाहित्य के देवताओं ने घोषणा की,
‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’
बहुत सही ।
जवाब देंहटाएंSanjay jee, badi shandaar aapki advisory hai........jo bade pyare pyare advise de rahi hai...
जवाब देंहटाएंbahut khhubsurat..:)
बहुत अच्छी....लाजवाब....मज़ा आया
जवाब देंहटाएंआपकी हर प्रस्तुति की तरह अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंbahut achha tanz kiya hai aapne aaj ki vyavstha par
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी , प्रभावशाली अभिव्यक्ति .विसंगतियों को जोड़ कर जो सर्जन किया वह अभिनव तथा प्रशंशनीय है.
जवाब देंहटाएंradheshyam saoo
करारा व्यंग्य है ! बधाई !
जवाब देंहटाएं-Rekha Maitra
(VIA EMAIL)
Great article. I am dealing with a few of these issues as well.
जवाब देंहटाएं.
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