मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

मीडिया

 लघुकथा 

from google

तब मैं काफ़ी छोटा रहा होऊंगा. मनोरंजन के साधनों में रेडियो प्रमुख था.

मैं रेडियो से आती तरह-तरह की आवाजें सुनकर हैरत में पड़ जाता और सोचता कि किसी दिन रेडियो को खोलकर देखूं, ज़रुर इसमें से छोटे-छोटे आदमी-औरतें निकलेंगे.

एक दिन किसी वजह से किसीने रेडियो खोला तो उसमें से एक छोटा-सा चूहा निकला और देखते-देखते कहीं ग़ायब हो गया.


-संजय ग्रोवर


बुधवार, 7 दिसंबर 2022

खेल

मेला मशहूर था.

कई दुकाने लगी होती थी. कुछ दुकानों पर प्लास्टिक के टुकड़ों से बना एक चौखटा जैसा बिकता था. ये टुकड़े चौखटे के भीतर ही सरकते थे. इन पर एक नक्शा सा बना होता था. दंकानदार उस बिगड़े हुए नक्शे को दिखाकर बताता था कि इन टुकड़ों को सरकाकर नक्शा वापस बिठाना है. नक्शा सही हो गया समझो आप जीत गए.

क्या उस समय भी कोई होता था जो समझता हो कि उसने नक्शा जोड़ लिया मतलब समाज को जोड़ लिया !

ताली बजानेवाले तब भी होते थे.

-संजय ग्रोवर






देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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