शनिवार, 4 सितंबर 2010

साहित्य-थिएटर

गिद्ध ने गुहार लगाई, ‘वे मुझे नोंच-नोंचकर खा रहे हैं’
बंदर ने बताया, ‘नकल करना बहुत बुरी बात है’
साँप ने सरगोशी की, ‘लगता है मेरी आस्तीन में कोई छुपा है’
शेर ने शिकायत की, ‘आखि़र कब तक मेरा हक़ मुझे नहीं मिलेगा’
गीदड़ ने ‘गायडेंस’ दी, ‘जो डर गया समझो मर गया’
लोमड़ी लाल-पीली होने लगी, ‘हद दर्जे के लालची हो’
कछुआ कुनमुनाया, ‘अब और आलस्य ठीक नहीं’
खरगोश खाट के नीचे से बोला, ‘हिम्मत है तो आजा सामने’
घुसपैठिया घुन्नाया, ‘मैं अपने घर पर किसी को ग़ैर-क़ानूनी कब्ज़ा हरग़िज़ नहीं करने दूंगा’

 साहित्य ने सबको सुना, समोया, देखा, झेला, कहा यहाँ तक कि बका
और हंसते-हंसते उसकी आँख से आंसू निकल पड़े

अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे साहित्य के देवताओं ने घोषणा की, ‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’

 -संजय ग्रोवर

रचना तिथि: 30-07-1994


(तकरीबन सोलह साल पहले लिखी इस कविता को बचकाना मानकर एक तरफ़ फ़ेंक रखा था। आज सोचा दोस्तों के सामने रखने में हर्ज़ भी क्या है !)

38 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और विचार युक्त रचना के लिए बधाई.

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  2. आपकी कविता बहुत अच्छी लगी.....

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  3. यह रचना व्यंग्य नहीं, व्यंग्य की पीड़ा है। पीड़ा मन में ज़ल्दी धंसती है।

    फ़ुरसत में .. कुल्हड़ की चाय, “मनोज” पर, ... आमंत्रित हैं!

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  4. वाह जनाब, इक प्रकार से आपने अपने स्टाइल से पंचतन्त्र की सी कथा में कविता वोह भी नेगेटव को पोसिटिव बनाते हुवे लिखी है .बात नए अंदाज़ में कही गयी इस लिए रोचक लगी.
    गिद्ध ने गुहार लगाई,
    ‘वे मुझे नोंच-नोंचकर खा रहे हैं’-- साब ,अपरोक्ष रूप में ओक्सितोक्सिन के ज़हर से मेरे प्रदेश के तो सारे गिद्ध मारे जा चुके हैं .

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  5. व्यंग्य लिखता हूँ इसलिए व्यंग्य दिखता है .
    एकदम चोखी कविता
    एक अच्छे ब्लॉग से जुड़ा हूँ.

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  6. ....और यही सब कुछ साहित्य के भीतर भी ज्यों का त्यों हुआ...!

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  7. लाजवाब व्यंग. बचपन का पढ़ा कुछ याद आ गया.
    "बहरा बोला साफ़ सुनाई दे रहा
    डाकू दल दल का शोर
    डाकू दल दल का शोर!!!
    कसम अंधे ने खाई
    वो देखो बारह डाकू
    पड़ रहे दिखाई
    लूला बोला
    दो दो हाथ दिखाएँ
    लंगड़ा बोला भाग चलो
    वरना मर जाये .."

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  8. ....बहुत सार्थक प्रस्तुति
    शिक्षक दिवस की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ

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  9. sanjay ji
    bahut majedaar blo hai. jhoot pahan kar achhe lagte ho kya khoob hai. badhai.

    sharad joshi a par neye dhang se likah hai.

    -mmsaral

    (VIA EMAIL)

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  10. ये साहित्य भी अच्छी दशा को प्राप्त हुआ है.

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  11. संजय ग्रोवर जी

    कमाल की रचना लिखी है …
    बधाई शब्द पर्याप्त नहीं है इस बार …

    अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे
    साहित्य के देवताओं ने घोषणा की,
    ‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’


    वाकई क्या लिखा है …

    ऊऽऽऽय्य्य्याऽऽह !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. bahut hi badhiya...ye to wine ki us botal ki tarah hai jo barso pahale aapne fek diya par wakt ke sath iska swad badhata gaya...

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  13. अपने-अपने सुरक्षित स्वर्गों में बैठे
    साहित्य के देवताओं ने घोषणा की,
    ‘ये तो ख़ुशी के आंसू हैं’

    जवाब देंहटाएं
  14. Sanjay jee, badi shandaar aapki advisory hai........jo bade pyare pyare advise de rahi hai...

    bahut khhubsurat..:)

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  15. बहुत अच्छी....लाजवाब....मज़ा आया

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  16. आपकी हर प्रस्तुति की तरह अच्छी रचना।

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  17. bahut achha tanz kiya hai aapne aaj ki vyavstha par

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  18. बहुत अच्छी , प्रभावशाली अभिव्यक्ति .विसंगतियों को जोड़ कर जो सर्जन किया वह अभिनव तथा प्रशंशनीय है.
    radheshyam saoo

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  19. करारा व्यंग्य है ! बधाई !


    -Rekha Maitra


    (VIA EMAIL)

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  20. Great article. I am dealing with a few of these issues as well.
    .

    Feel free to visit my web blog: found here

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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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