ग़ज़ल
लड़कियों को ख़ुदसे कमतर मानते हैं सबके सब
इसलिए ही उनके संग देते हैं नज़राना बड़ा
शर्म था वो शहर मैंने उसको थूका बार-बार
दाग़ था वो दौर मुझको बारहा जाना पड़ा
खो गया जो खो गया उसका तो कुछ शिकवा नहीं
है बहुत अफ़सोस उसपे मुझको जो पाना पड़ा
मैं चला था देखकर आए-गए लोगों की चाल
पर जहां अंजाम देखा लौटकर आना पड़ा
-संजय ग्रोवर
05-10-2020