ग़ज़ल
बस विचार के इक-दो फंदे डालेगा
भाषा से वो पूरा स्वेटर बुन देगा
चित्त-पट्ट में बिल्ली का क्या बिगड़ेगा
चूहा-दौड़ में चूहे का दम निकलेगा
जब मंथन करने वाले ज़हरीले हों
अमृत निकलेगा भी तो क्या कर लेगा
ईमां की भी दुक्कानें खुल जाएंगीं
बेचने वाला हर इक शय को बेचेगा
घर-दफ़्तर में वो जो सोया रहता है
मिला जो मौक़ा, भीड़ में घुसकर नाचेगा
इन सारे लोगों को मैं पहचानता हूं
नयी शक्ल में अक्ल का मेला निकलेगा
गर मंथन करने वाला ज़हरीला है
ज़हर निकालेगा और अमृत कह देगा
यह सवाल और वह सवाल पूछेगा तुमसे
तुम पूछोगे तो वो उठकर चल देगा
इसे काटने वाले जाने किधर गए
वक्त हमें भी चुपके-चुपके काटेगा
-संजय ग्रोवर