रविवार, 26 सितंबर 2010

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया

आईए.......2
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दलों, वादों, धाराओं आदि द्वारा बड़े किए गए, खड़े किए गए और पाले-पोसे गए बुद्विजीवियों की मजबूरी समझी जा सकती है। हाई कमांड के होते उन्हें ज़िंदगी-भर कार्य-कर्त्ता ही रहना होता है, वे कभी (अगर उनके अपने कुछ विचार हों भी) विचारकर्त्ता नहीं बन सकते। दल, वाद या धारा से कार्यकर्त्ता का रिश्ता कुछ-कुछ ऐसा होता है जैसा एक रुढ़ सोच के तहत चलने वाले परिवार में एक धाकड़-मर्द पति से एक पर्दानशीं पत्नी का होता है। पर्दे के भीतर से ‘हां’ मे सिर हिलाने की आज़ादी भर होती है।
विचित्र विडम्बना है कि दल, मठ, गुट आदि-आदि की सरपरस्ती या छत्रछाया में कोई यह तक मशहूर करने में सफ़ल हो जा सकता है कि तसलीमा नसरीन तो वास्तव में स्त्री-विरोधी हैं। सारा संघर्ष तो दरअसल हमने किया था 2010 में जबकि यह चालाक तसलीमा 2005 में ही क्रेडिट ले उड़ी। अब मौज-मजे की बारी आयी है तो तसलीमा का कहीं पता नहीं चल रहा और मजबूरी में हमें मज़े करने पड़ रहे हैं। इतनी धोखेबाज़ हैं तसलीमा।
कॉलोनी के बेईमान दुकानदार के लिए सुविधा हमेशा इसी में होती है कि उसके प्रतिद्वंदी दुकानदार भी बेईमान हों। ईमानदार प्रतिद्वंदी उसके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द होता है। उसके लिए रास्ता अकसर यही होता है कि या तो वो ईमानदार दुकानदार भी बेईमान बन जाए या फ़िर ‘सीधी तरह से न माने तो’, उसे किसी भी तरह बेईमान ‘घोषित’ और ‘सिद्व’ कर दिया जाए। फ़िर भी न माने तो और भी रास्ते हैं। (अपने समय की कई प्रखर प्रतिभाओं को ‘पागल’ सिद्ध कर दिए जाने को हमने सिर्फ़ सुना ही नही देखा भी है)
ठीक इसी तरह एक कट्टरपंथ का अस्तित्व भी दूसरे कट्टरपंथ के रहते ही संभव होता है। यह देखना दिलचस्प भी होता है और दुखद भी कि एक सांप्रदायिकता दूसरी सांप्रदायिकता (अगर प्रतिद्वंदी सांप्रदायिकता भी धर्मनिरपेक्षता का पोज़ बनाकर आ जाए तो और भी आसानी से) को तो स्वीकार करने पर तैयार हो जाती है मगर ‘इंसानियत’ शब्द का ज़िक्र भी आने से वह या तो हंसी उड़ाना शुरु कर देती है या इंसानियत की बात करने वाले को सांप्रदायिक सिद्ध करने पर तुल जाती है।
सुबह एफ एम पर मुझे अपना प्रिय गीत सुनने को मिला:

तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा

मगर मैं सोचता रहा कि हिंदी फ़िल्मी गीत जिनमें से हम पता नहीं कैसी-कैसी मिसालें ढूंढने में कामयाब हो रहते हैं, उस खज़ाने में उपरोक्त अर्थ वाले और कितने गीत हैं ?

मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
हमने उसे हिंदू या मुसलमान बनाया

मुझे नहीं पता कि साहिर नास्तिक थे या आस्तिक और ‘मालिक’ का ‘अस्तित्व’ इस गीत में उन्हांेने अपनी मर्ज़ी से स्वीकार किया है या किसी मजबूरी में यह शब्द इस्तेमाल किया है मगर अपने अनुभव से इतना ज़रुर कह सकता हूं कि नास्तिक तो मुझे आज तक ऐसा कोई नहीं मिला जिसे यह गीत बुरा लगता हो।
मगर क्या आप इससे मिलते-जुलते अर्थ के भी पाँच और हिंदी फ़िल्मी गीत बता सकते हैं !?

इंसानियत जो सारे मसलों का हल बन सकती है उस पर बात करने में इतनी हिचकिचाहट क्यों !?

(जारी)

13 टिप्‍पणियां:

  1. nit naye college khul rahe hai ...lakin ek bhi aisa college nahi khulta jaha insaniyat ka paath paraya jata hoo.....

    इंसानियत जो सारे मसलों का हल बन सकती है उस पर बात करने में इतनी हिचकिचाहट क्यों !?

    bahut khoob .....

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  2. ''मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया
    हमने उसे हिंदू या मुसलमान बनाया''

    मुझे लगता है कि साहिर के इस गीत में मालिक का आशय ईश्वर नहीं होना चाहिए। क्योंकि प्रत्येक ईश्वर किसी धर्म विशेष से सम्बंधित होता है। ईश्वर कभी धर्म निरपेक्ष नहीं होता। और प्रत्येक ईश्वरीय सत्ता यह कहती है कि तुम्हारा जन्म इस धर्म में हुआ, यह तुमपर बहुत बड़ा उपकार है। तो इस तरह तो ईश्वर स्वयं साम्प्रदायिकता का जनक सिद्ध हो जाता है। :)

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  3. पता नहीं यह गाना आपकी सुचि में फिट बैठेगा या नहीं पर लिख रहा हूँ।
    यह गाना फिल्म पहले आप 1944 का है और स्व, रफी साहब का पहला गाना भी है|
    हिन्दुस्तां के हम हैं, हिन्दुस्तां हमारा
    हिन्दू मुस्लिम दोनों की आँखों का तारा।

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  4. AGLE BHAAG KA LINK :

    http://www.samwaadghar.blogspot.com/2010/09/blog-post_27.html

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  5. Aap sabka bahut-bahut shukriya. darte-darte hi sahi, par isi khulepan ki ummid thi aap sab se. Bahut Aabhar.
    @सागर नाहर
    Sagar bhai, yah gana mulatah desh-prem ka gana hai jabki "hindu banega.." Isaaniyat se prem par zor deta hai. Amitabh ki ek film deshpremi ka ek geet 'Aapas me prem karo deshpremiyo..' in donoN gaanoN ke nazdeek hai. Iske liye aapka bahut dhanyawad ki is gaane se pahla parichaya aapki badaulat ho raha hai, youtube par dhuNdhkar pura sunuNga.
    @ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    Zaakir bhai Ishwar dharm-nirpeksha ho bhi kaise sakta hai. Har dharm ne to apna-apna alag-alag Ishwar gadh liya hai. Aapki baat vichaarniye hai.
    @अर्चना गंगवार
    Aapke sujhaav par shiksha- mantralaya ko vichar karna chaahiye. Aur yah baat maiN kori ya filmi bhaavukta ke vashibhut hokar nahiN kah rahaa.

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  6. ना मैं भगवान् हूँ, ना मैं शैतान हूँ
    दुनिया जो चाहे समझे, मैं तो इंसान हूँ
    फिल्म= मदर इंडिया
    इंसान का इंसान से हो भाईचारा
    यही पैगाम हमारा
    फिल्म= पैगाम

    abhi to ye 2 hi zehn mei aaye haiN

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  7. हाँ ! एक और याद आया ...
    "प्यार बांटते चलो, प्यार बांटते चलो
    क्या हिन्दू , क्या मुसलमाँ ,
    हम सब हैं भाई-भाई..."
    गायक= किशोर कुमार
    फिल्म= याद नहीं आ रही
    और...
    साहिर साहब का ही लिखे एक गीत का अंतरा
    "जज़्बात भी हिन्दू होते हैं !
    चाहत भी मुसलमाँ होती है !!
    दुनिया का इशारा था , लेकिन ,
    समझा ना बेचारा दिल ही तो है..."
    गायक= मुकेश
    फिल्म= दिल ही तो है

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  8. ना मैं भगवान् हूँ, ना मैं शैतान हूँ
    दुनिया जो चाहे समझे, मैं तो इंसान हूँ

    इंसान का इंसान से हो भाईचारा
    यही पैगाम हमारा

    haN in donoN geetoN ko hum milte-julte arthoN ke kah sakte haiN. DonoN hi mujhe priye haiN.

    जवाब देंहटाएं
  9. Arkjesh Kumar said :

    बहुत सुंदर गीत है। ऐसे गीत विरले हैं ।
    जैसे एक और गीत है - नन्‍हें मुन्‍ने बच्‍चे तेरी मुट्ठी में क्‍या है । मुट्ठी में है तकदीर हमारी, हमने किस्‍मत को वश में किया है।

    यह प्रश्‍न कि क्‍या हिंदू और मुसलमान बनने से इंसान क्‍या इंसान नहीं रह ज...ाता ?

    मुझे लगता है कि अपने आप को हिंदू मुसलमान आदि अ‍ादि महसूस करने वाले इंसानों की इंसानियत दूसरे धर्म के लोगों के प्रति कमजोर और कंडीशन्‍ड हो जाती है। हमें आपके अल्‍लाह तभी तक प्‍यारे हैं जब तक कि आप हमारे बजरंगबली को गरिया न दें । ऐसी स्थिति उत्‍पन्‍न होने पर अच्‍छे खासे नास्तिक का भी ईमान डिग जाता है कि बहुत हो गया अब मैं तुझे बताता हूं कि तेरे फलां की औकात क्‍या है ।

    धर्म को लेकर लोगों को इंसायित से हैवानियत तक पहुंचाना बहुत आसान है। इसी का फायदा हर धर्म के सियासतदां उठा रहे हैं। लोगों को ऐसे पाठ पढाए जाते हैं बचपन से, कि अमुक चीजों के पीछे लोग लडने मरने से इंकार नहीं कर सकते।

    यही है वजह कि हिंदू मुसलमान की औलाद इंसान नहीं बन पाता हिंदू मुसलमान बन जाता है। हमारा समाज इंसान नहीं हिंदू मुसलमान वगैरह बनाता है।
    इंसान वह है जो ऊपरी प्रतीकों के बाद भी दिल में इंसानियत का जज्‍बा रखता है और कट्टरता को अपने जेहन में कभी पनपने नहीं देता।

    इसीलिए यह गाना बहुत ही प्रासंगिक है।

    FB par

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  10. गीत शायद किस्मत चित्र का है
    १९३९ लीला चिटनिस ओर अशोक कुमार
    दूर हटो ऐ दुनिया वालो हिन्दुस्थान हमारा है
    यहाँ हमारे मस्जिद मंदिर ओर सिखों का गुरुदुआरा है
    तब हम एक थे
    आज भी होना चाहये ऐसा

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  11. ना कोई हिंदू पैदा हुआ ना मुसलमान
    पैदा होता है इंसान
    पैदा होते ही एक नाम निकलता
    ऊपर वाले का
    हिंदू में ओउम्,मुस्लिम आमीन ,सीख धर्म में एकम ओंकार,अंगरेजी में निकलता है ऐ मन
    तो हममे नफरत क्यों बरपी

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  12. सबसे बड़ा धर्म इन्सानियत का धर्म है
    निर्धन की सेवा ,रोगियों को बिना मूल्य के ओषधी बाटना आदि आदि
    जिससे मन को शांति मिलती है
    धन ,मकान आदि सभी यहीं छूट जायेंगे
    नग्न पैदा हुए हैं कफ़न पहले जलेगा बाद में मिटटी का शारीर
    पुरानी चलचित्र का शीशमहल का याद आया
    जाएगा जब यहाँ से कुछ भी ना साथ होगा
    केवल दो गज कफ़न का टुकड़ा तेरा लिबास होगा
    देखा जाए तो जानवर भी नग्न है हम तो हर समय कफ़न ओढ़े रखते है परिधान का

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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