रविवार, 19 सितंबर 2010

अफ़वाहें अमर हैं~~~( पूरी कविता )

‘जो यथार्थ को व्यक्त करता है
वह अफ़वाहों में मार दिया जाता है !’
(उदय प्रकाश)



अफ़वाहें अमर हैं (पूरी कविता)

(08-09-2010)


गुट-विरोधी गुंडों का गुट
उनकी लटें सुलझाकर
चोटी गूंथ रहा है

साहित्यिक सरगनाओं की
गणित-निपुण आवारगी
उनकी रक्षा में तैनात है

उन्हें किसका डर है

वे कलात्मक हैं, अमूर्त्त हैं,
हुनर हैं

अफवाहें अमर हैं

धक्के खाती
घर को लुटाती
सच्चाई तस्लीम न होने पाई
अफ़वाहों के भारी विरोध के चलते

अब
मौज-मजे की बारी है
अफ़वाहों का पहला नंबर है

अफवाहें अमर हैं

.........................


आएंगे बुद्ध, कबीर, जीसस
कभी-कभी बरसेंगे बादल की मानिंद
कोई ओशो कोई तसलीमा
दस-पाँच को जगाएंगे
बीस-तीस को हर्षाएंगे

क्या कर पाएंगे

अहा इस आसमान की पसराहट तो देखो
सोया है चिंतनरत
सालों से शाश्वत

पता नहीं क्या करता है क्या नहीं करता
कुछ करता भी है कि नहीं करता
मगर इस शून्य की चौधराहट तो देखो

अफ़वाहें भी ऐसे ही पुरअसर हैं
नहीं हैं फिर भी हर जगह हैं

ससुरी चौबीस घण्टे की ख़बर हैं

भाई मेरे, मान भी लो

अफ़वाहे अमर हैं


बाबूजी, ज़रा इस प्रांगण में आओ
कुर्सी-मेज़ों-काउंटरों से सजे
रणस्थल में पधारो

कुछ भी नहीं हो रहा
पर सब कुछ युद्ध-स्तर पर हो रहा है
होगें तुम्हारे पास आर.टी.आई. के झुनझुने
पर यहां
‘अभी आएगी’, ‘आने ही वाली है’
जैसे
रेल की सीटी के स्वर हैं

अफ़वाहे अमर हैं

अफ़वाहें कभी मरतीं नहीं
हां मर चुका होता है
उन्हें फैलाने वाला
फैलाने से पहले ही

अपनी-अपनी नियति है
अपना-अपना असर है

अफवाहें अमर हैं
08-09-2010


-संजय ग्रोवर


अधूरी कविता का लिंक

( यूं तो कविता पूरी हुई पर नहीं कहता कि इसमें सुधार और विस्तार की गुंजाइश नहीं है। )

26 टिप्‍पणियां:

  1. अफ़वाहें कभी मरतीं नहीं
    हां मर चुका होता है
    उन्हें फैलाने वाला
    फैलाने से पहले ही

    अपनी-अपनी नियति है
    अपना-अपना असर है
    लाजवाब और सत्य, सूक्षमावलोकन

    जवाब देंहटाएं
  2. क्या सच में ...
    अफ़वाहे अमर हैं...मुझे नहीं लगता सर कभी ना कभी तो अफवाहों के बादलों का धुन्ध जिन्दगी के आसमाँ से हट ही जाता है..भले ही वों कितना भी गहरा और मोटा हो.....

    जवाब देंहटाएं
  3. अफवाहें अमर हैं..... बेहतरीन!

    जवाब देंहटाएं
  4. मुख्‍य द्वार से बैठक तक हो आया. अच्‍छा सज रहा है आपका संवादघर.

    जवाब देंहटाएं
  5. संजय साब, कविता पूर्णता के शबाब की ओर जाते में मेरी तुच्छ सोच अनुसार थोडा राह भटक गयी लगती है
    आएंगे बुद्ध, कबीर, जीसस
    कभी-कभी बरसेंगे बादल की मानिंद
    कोई ओशो कोई तसलीमा
    दस-पाँच को जगाएंगे
    बीस-तीस को हर्षाएंगे
    महात्मा बुद्ध, कबीर, जीसस ओर किसी हद तक ओशो तो कभी कभी नहीं सदा ही अमृत वर्षा कर रहे हैं.(कोई) तसलीमा का इन के साथ कोई मेल नहीं लगा .यदि आपने ओशो को कंट्रोवरसि के आधार पर तसलीमा जी के साथ रखा है तो यह भी सूरज ओर जुगनू के साथ जेसा है. कहाँ ओशो तर्क के अकाट्य चिंतक ओर कहाँ ओसत दर्जा ये लेखिका महोदया (उपन्यास लज्जा जो तसलीमा जी की सबसे चर्चित पुस्तक है, मुझे लेखन के आधार पर ओसत ही लगी .अधिकांश विद्वान टीकाकारों का भी यही मानना है.)बहरहाल मेरी छोटी बुद्धि से गलती हुवी तो माफ़ी चाहता हूँ .मेरा अनाम सा नाम वेसे ही मुझे रुसवा करता रहा है .इकबाल साब का शेर कोट करना चाहता हूँ
    वाइज़ ए तंगनज़र ने मुझे काफ़िर जाना /ओर काफ़िर यह समझता है मुसलमा हूँ मैं. अत किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित ना मानते हुवे यदि कोई भूल मेरी समझ की रही है तो उसी रूप में लें .

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  6. गज़ब का प्रवाह, बिम्ब, अभिव्यक्ति!!!

    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    काव्य के हेतु (कारण अथवा साधन), परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

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  7. @shaffkat
    शफ़ाकत साहब, ओशो और तसलीमा में क़ाबिले-ज़िक्र समानता यह है कि न तो ओशो ने कभी कहा कि मैं हिंदू हूं और मुझे इसपर गर्व है। और न ही कभी तसलीमा ने कहा कि मैं मुस्लिम हूं और इसपर गर्वान्वित हूं। मेरी समझ में निष्पक्ष और निडर चिंतन की यह पहली सीढ़ी है। तसलीमा तो बहुत बाद में चर्चित हुईं, ओशो का प्रशंसक मैं पहले से था। पर यह भी सच है कि तमाम विद्रोही चिंतन के साथ ही धार्मिकता, अध्यात्मिकता और ध्यान जैसे शब्द ओशो के काम और नाम के साथ जुड़े थे। और ऐसे शब्द जुड़े हों तो समाज में स्वीकृति मिलने में थोड़ी आसानी तो हो ही जाती है। ओशो के आस-पास बड़े-बड़े आश्रम और संपन्न सन्यासियों की भीड़ रही। तसलीमा एक महिला हैं और उनके साथ ऐसा कुछ नहीं जुड़ा है।
    जहां तक साहित्यिक स्तर की बात है तो मैं विचारकों को इस तराज़ू पर तौलना सही नहीं समझता। इस तरह नापेंगे तो बुद्ध, कबीर से लेकर ओशो तक सभी को खारिज़ करना पड़ेगा। ओशो ने तो अपने हाथ से कुछ लिखा ही नहीं, सिर्फ प्रवचन दिए। ज़िंदगी भर वे श को स कहते रहे। तो इतनी सी बात पर हम उनके सारे चिंतन को बेकार ठहरा दें क्या ?

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  8. अफ़वाह फैला कर इराक को तबाह कर डाला गया। अफ़वाहों का कारखाना हिंदी के ब्राह्मणवादी साहित्यकारों-मठाधीशों और उनके चेलों का भी चलता है। अपनी बेटी, दामाद, चेले-चपा्टी, जात-बिरादर की काबिलियत की अफ़वाह, और दूसरे के बारे में बर्बरता और शैतानियत के दरजे की घटिया अफवाह।
    बहुत अच्छी और मारक कविता!
    आपके बारे में भी जरूर अफ़वाहें होंगी। पता करिये, माथा घूम जायेगा।
    बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  9. @neeraj pasvan
    नीरज जी, पहले तो आपका और उन सभी मित्रों का बहुत-बहुत आभार जिन्होंने ग़ज़लों की चोरी के मामले में अपनी टिप्पणियों से मेरा हौसला बढ़ाया। बाक़ी, नीरज जी यह तो आप भी जानते होंगे कि हम जैसे लोगों को तो अफ़वाहों के बीच रहने की आदत या तो पड़ ही जाती है या डालनी पड़ती है। ऐसे में आप जैसे मित्रों के दो समझदारी भरे शब्द ही काम कर जाते हैं। बहुत आभार। आभार शब्द काफ़ी तो नहीं फिर भी...

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  10. नर हो न निराश करो मन को .. अफवाहों के अँधेरे इन्ही ( गौतम , कबीर ...) दीयों की टिमटिमाहट से मिट जायेंगे ...

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  11. बहुत ही शानदार रचना ! विशेष रूप से आसमान और शून्य के बिम्ब बहुत प्रभावी बन पड़े हैं ! मेरी बधाई एवं अभिनन्दन स्वीकार करें !

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  12. i couldnt understand this lne ...
    अफ़वाहें कभी मरतीं नहीं
    हां मर चुका होता है
    उन्हें फैलाने वाला
    फैलाने से पहले ही

    जवाब देंहटाएं
  13. अपनी-अपनी नियति है
    अपना-अपना असर है

    अफवाहें अमर हैं

    -एकदम सच बयानी-


    हवा चले बिन अफवाहों के, मुमकिन ऐसा कहाँ रहा
    बिना मरे जिन्दा रह पाते, अब दिन ऐसा कहाँ रहा.

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  14. बयारें थीं उसे आन्धी बता दी

    हवाओं ने हवाओं को हवा दी

    गई जड़ से न बीमारी तुम्हारी
    दवाओं ने अभी बेशक दबा दी

    जवाब देंहटाएं
  15. aap bayaan karte rahe, hum bhi hu ha karte rahe ,kuch dil ne mani -kuch dimag ne nakaari, u hi jane anjaane afvaho ko hum bhi hawaa dete gaye,,,,, kamna billore mumbai.

    जवाब देंहटाएं
  16. आप लोगों ने माहौल शायराना बना दिया तो दो-तीन शेर मुझे भी अपने याद आ गए। एक चचा ग़ालिब का भी।

    पागलों की इस कदर कुछ बदगु़मानी बढ़ गयी
    उनके हिस्से की दवा भी हमको खानी पड़ गयी

    चारागरी पे अपनी उसको यकीं नहीं था
    वो ज़हर लेके आया, मेरी दवा के साथ

    मौसम ने रंग बदला तो ये भी मैंने देखा
    बस आंधियां ही आयीं, ताज़ी हवा के साथ
    -ख़ाकसार

    मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौरे-जाम
    साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में
    -ग़ालिब

    जवाब देंहटाएं
  17. sanjay ji,
    afwaahein na hon to aman chain na aa jaye, fir jivan mein umang kaha se aaye...afwaahein jangal ke aag ki tarah failti hain aur dhu dhu kar hamare waqt ko jalati hai...par maza bhi aata hai na, tabhi to afwaahein garm hoti hamesha. thandhi nahi hoti...
    badhiya likha hai, badhai sweekaaren.

    जवाब देंहटाएं
  18. एक सुधार कर दूं। कविता पूरी होने की तारीख 17-09-2010 है। मैंने ग़लती से 08-09-2010 लिख दी है।

    जवाब देंहटाएं
  19. पता नहीं क्या करता है क्या नहीं करता
    कुछ करता भी है कि नहीं करता
    मगर इस शून्य की चौधराहट तो देखो

    अफ़वाहें कभी मरतीं नहीं
    हां मर चुका होता है
    उन्हें फैलाने वाला
    फैलाने से पहले ही

    afvah vishay par bahut gahari soch ke sath sundar muktchhand rachana . bahut badhai sanjayji.

    जवाब देंहटाएं
  20. सचमुच अफवाहें शक्तिशाली और अमर ही हुआ करती हैं..

    जवाब देंहटाएं
  21. सुन्दर रचना है.बधाई!!

    जवाब देंहटाएं
  22. afwayen amar hain........:)
    kuchh bhi kar sakti hai..........aur kahin bhi!!
    badi pyari bimb ko chuna hai aapne, ek dum upyukt!!

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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