सोमवार, 13 सितंबर 2010

वर्चुअल चोरी: गज़ल एक, शायर पाँच !

मित्रों, एक पहेली ने परेशान कर डाला है। एक ग़ज़ल पाँच जगह पाँच शायरों के साथ पायी गई है। क्या आप बता सकते हैं असली शायर कौन है ?

1.



2-



3-




4-




5-







मित्रों, मुझे ज़रुर बताईएगा। क्या है कि मेरी और 20-25 ग़ज़लें भी अपने ‘असली’
शायरों को ढूंढ रहीं हैं।

39 टिप्‍पणियां:

  1. संजय जी..दरसल यह मूल रचना, यदि अर्लिएस्ट प्रकाशित रचना है तो आपकी है… इसका एक सबूत यह भी है कि अनुभूति पर यह आपके नाम के साथ प्रकाशित हुई है. तत्पश्चात जितने भी ब्लॉग पर यह दिखाई दे रही है, वहाँ किसी ने यह नही कहा कि यह उनकी है... कई बार कुछ नवोदित ब्लॉगर्स अपने ब्लॉग पर अपनी पसंदीदा ग़ज़ल या रचनाएँ डाल देते हैं..यह सिर्फ शौकिया होता है... आप देखें उनपर टिप्पणियाँ भी नहीं हैं, या न के बराबर हैं... मेरे विचार से तो यह रचना आपकी ही होनी चाहिए... अब अगर कोई नया दावेदार न आ जाए तो..

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  2. हद ही है ये संजय जी. सभी लिंक्स पर चक्कर लगा के आई हूं. हो सकता है कि नवोदित रचनाकार को आपकी गज़ल अच्छी लगी और उसने प्रकाशित कर दी, तो उसे मूल रचनाकार का नाम अच्छा नही लगा क्या? नाम सहित रचना छापने मे क्या दिक्कत थी?

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  3. हिंट ;-) ‘अमर उजाला’ की कटिंग में सबसे उपर जहां प्रकाशन की तिथि (19 अप्रैल 2007) लिखी है, उसी के नीचे काले में सफ़ेद से शायर का नाम भी छपा है।

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  4. वैसे संजय जी मंगलेश के ब्‍लाग पर तो उन्‍होंने ग़ज़ल के नीचे आपका नाम दिया है और उन्‍होंने लिखा है कि वे प्रस्‍तुतकर्ता हैं। बाकी शायद इस बात में यकीन करते हैं कि जो अच्‍छा लिया हमने लिया,नाम में क्‍या रखा है।
    बहरहाल मेरा मत है कि यह बिना नाम और संदर्भ के रचनाएं देना या उनका उल्‍लेख करना अच्‍छी बात नहीं है।

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  5. हा...हा...हा...हा....हा.....संजय जी....यह बात तो बरस डेढ़ बरस पहले ही हमने सबको बतायी थी जब हमारी रचनाओं का समूचा ब्लॉग ही किन्हीं दानिश जी ने अपने नाम से बना लिया था और लिंक देते हुए हमने "बिलागारों" को सब कुछ बताया था....मगर किसी ने संज्ञान ही नहीं लिया या फिर उसकी जरुरत ही नहीं समझी....जल्द ही अपन समझ गए कि नेट की यह दुनिया भी दरअसल हमारे चरित्र का ही परिचायक है....यहां भी हमारे समाज की तरह कोई चोर-कोई वहशी-कोई क्या तो कोई क्या है तो इसके बारे में सोचना ही छोड़ दिया.....अब धड़ल्ले से सब कुछ लिखते हैं...छापते हैं....कोई चुराए या जो करे.....अपन तो मस्त हैं....इसके बारे में किया क्या जा सकता है यह भी अपन की समझ से बाहर है.....इसलिए नो टेंशन...हेयर इज मेंशन हा...हा...हा....हा....हा.....!!!

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  6. मंगलेश जी ने अपने दूसरे जवाबी ईमेल में कहा था कि वे या तो ‘अमर उजाला’ से लिखेंगे या ग़ज़ल हटा देंगे। मैंने कहा बिलकुल हटा दीजिए। तB उनका ईमेल आया कि आपके आदेश का पालन होगा। उसके बावजूद उन्होंने मेरा नाम नहीं दिया था। आज दिया है (By Sanjay grover)। शायद वे मेरी पोस्ट का इंतज़ार कर रहे थे।

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  7. sanjay ji,
    ek baat ki khushi hai ki aapko apni ghazlon ka link to mila jise kisi ne chori kiya thaa. ye sab aaj se nahi kaafi arse se hota aaya hai. meri apni hi kavita kisi ne mujhe bheji, main sochne lagi kavita ke shabd wahi jo mere they kisi aur ko bhi wahi khayal kaise aaya, khair badi mashakkat ke baad pata chala ki janab ka yahi dhandha hai. meri kai rachnaaon ko unhone apna naam diya thaa.
    aapki rachna kisi aur ke naam se jaani jaaye bahut dukh hota hai par aise kuchh log hain jo kisi kee cheez ko apna kahte sharm nahin karte, kya kaha jaaye khahaan kahaan khoja jaaye.

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  8. जब आपने F B पर मंगेश जी के ब्लॉग का पता देते हुवे बताया था की यहाँ ये ग़ज़ल उनके नाम से है तभी मेने देखा तब तक वे वहां से अपना नाम हटा कर अमर उजाला कर चुके थे आज देखता हूँ तो आपका नाम उन्होंने ग़ज़ल के निचे चिपका दिया है साफ जाहिर है अब तो ग़ज़ल आप की है वरना नाम चेंजे करने की कोई जरुरत ही नहीं थी...वैसे भी जिस मिजाज की ग़ज़ल है वो मिजाज आपके शिवा बहुत कब लोगों में देखने को मिलती है....इसलिए सीधी सी बात है ग़ज़ल आपकी है ये मंगेश की हटधर्मिता थी की वे आपका नाम नहीं दल रहे थे..शायद उन्हें लगा होगा की शायर को शायद ही इस बात का पता चले की उसकी ग़ज़ल किसी और के नाम से नेट की दुनिया में चिपकाई जा चुकी है...मगर उन्हें क्या पता शायर साहब बहुत बहुचे हुवे फकीर है...इन जैसे भूतो को सीधा करना उन्हें अच्छी तरह आता है...वैसे अच्छी बात है ग़ज़ल अब अपने सही शायर के नाम के साथ है.........

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  9. संजय जी लोग क्या करें आपकी गज़ल है ही इतनी दिलकश के सब को लगता है काश ये हमने लिखी होती...इस भावना के चलते वे इसे अपने अपने ब्लॉग पर अपने ही नाम से चिपकाने का लोभ नहीं छोड़ पाते...बिचारे...माफ कर दीजिए उनको...

    नीरज

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  10. ग़ज़ल अब अपने सही शायर के नाम के साथ है.संजय जी ये तो आपको पता चल गया तो ठीक है वर्ना लोगों को तो पता भी नहीं चलेगा की उनकी पोस्ट कहाँ किसके नाम से छप रही है

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  11. वह गज़ल बिना किसी शक आपकी है, आपकी थी और आपकी रहेगी। 'वर्चुअल' ही नहीं आज साहित्य का पूरा 'रियल रियलिटी शो' चोरों, शोहदों और मीडियाकरों के झुंड का है।
    आपको और आपकी गज़लों को मेरा सलाम!

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  12. य़े तो संजय ग्रोवर का ही मिज़ाज़ है भाई। ये ग़ज़ल किसी और की हो कैसे सकती है जब अमर उजाला और अनुभूति जैसे दो दो सबूत हैं।

    पर ये बात ज़रा फेसबुक पर भी डाल दीजिये और जितना ज़्यादा हो सके लोगों को मेल कीजिये।

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  13. kisi ki gazal kisi or ke naam se chhap jaye ,ye to nainsaafi hai.aapko apni hi chheez ko apna kehne ke liye sboot dena padega,had hai.

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  14. Ise saahitya ki chori nahi, saahitya ka prasaar kahte hain mitra.
    Aur aapko to khush hona chahiye ki aapki rachna ko kisi ne to pasand kiya...

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  15. क्या कहें-
    कि, अब कहने को सोचना होगा!

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  16. संजय ग्रोवर सब से पहले ओर आखरी वाले लिंक को ध्यान से देखा, इन होने आप का नाम छापा है, लेकिन आप से इजाजत नही ली , बाकी जो तीन है उस के बारे सब बताये कि उन्होने आप के नाम के बिना यह गजल क्यो छापी, आप ने बहुत प्यार से यह सवाल ऊठाया है, आप इन सब को मेल कर के पुछ भी सकते है.कि इन्होने ऎसा क्यो किया, अगर आप के नाम से प्रकशित करे तो ठीक था, लेकिन फ़िर भी आप को सुचित तो जरुर करते.

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  17. @नवनीत जी, आप भी साहित्य के ऐसे ही प्रसारकों में से एक लगते हैं। आपका भी प्रोफ़ाइल अवेलेबल नहीं है। भविष्य की क्या योजनाएं हैं ? एक लिंक और दे रहा हूं। आपको प्रेरणा मिलेगी:
    ;-)
    http://samwaadghar.blogspot.com/p/blog-page_28.html

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  18. वाह वाह चोर कितना चतुर्! पहले भी कई ऐसी चोरियाँ पकडी जा चुकी हैं। इन चोरों के लिये भी एक थाना तो0 होना ही चाहिये। शुभकामनायें

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  19. अरे ये तो गर्व की बात है कि आपकी रचनाएं इतनी पसंद की जा रही हैं कि चोरी हो जा रही हैं। आपको जरा भी विचलित होने की जरूरत नहीं है। बस आप अपना काम करते रहिये।

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  20. @राज भाटिय़ा,
    यहां साफ़ कर दूं कि पांचवां लिंक मैंने पांचवे शायर (यानि कि मैं ख़ुद) की उपस्थिति और सबूत के तौर पर लगाया है। ठीक वैसे ही जैसे ‘अमर उजाला’ की कटिंग। पांचवें लिंक में दिख रही ‘अनुभूति’ नामक साइट एक पुरानी, चर्चित और सम्मानित साइट है और यहां मेरी रचनाएं अकसर आती रही हैं। पहले लिंक की बाबत मैं बता ही चुका हूं कि इन्होंने मेरा नाम कल (14 सित. 2010) को लगाया है।

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  21. अत्यंत निंदनीय एवं खेदजनक !

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  22. किसी की भी रचना लें,नाम का उल्लेख तो जरूर करना चाहिए...
    निंदाजनक कृत्य

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  23. संजय ग्रोवर साहब !!!!! कलम बोलती है आपकी दिल की आवाज़ दिमाग की खिड़की भी खोलती है वैसे मेरा सोचना तो यह है की कही किसी का कुछ हम ले रहे है तो कम से कम उसका नाम तो बोलना ही चाहिए वैसे इन कम पढ़े लिखे साहियात्कारो को चोर के शब्दों से नवाजना बिल्कुल भी सही नहीं है इनको भी संजय साहब कलम की भाषा में ही समझाइए कुछ ऐसा लिख डालिए गज़ब का की नुक्ता भी लगे और अक्ल भी आये शुभकामनाये और एक बात की इज़ाज़त भी कभी कभी मै खुद भी आपकी कलम की दो पंक्तिया उठा लेता हू लेकिन कही प्रकाशित करने के लिए नहीं किसी को समझाने के लिए अपना कोई ब्लॉग है नहीं इतनी समझ नहीं है और जब मै अपनी बात को आपकी दो लाईनों से दुसरे को समझा सकता हू तो आप तो कम से कम कुछ लिख कर ही इन साहिय्त्कारो जो कम पढ़े है ससम्मान नवाजे पढने में भी मज़ाआएगा

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  24. संजय साब ,आज तो आपने खूब चक्कर कटाये कई चोराहों से उलझा तो चोर पकडे .साब सीधे ही बता देते तो पहले ही कविता पर फोकस करता .खेर अबला के साथ जो कुछ होता रहा है को कुछ शेरो में कह दिया .बहुत खूब .आपने आप ही गीत ..ओरत ने जन्म दिया मर्दों को...याद आगया फिर दोबारा आपके सारे शेर पढ़े बार बार बहुत खूब कहने में शर्म सी आ रही है ...बहुत खूब

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  25. अरे ये तो यहाँ आम बात है आप खुशनसीब हैं कि आपको पटा तो चल गया .
    वैसे आपने जो पहला लिंक दिया है उसमें नीचे आपका ही नाम है छोटा सा :)

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  26. padhne wale Jante hain ki kaun kahan tak likh sakta hai.. Is medium me yah kaam khoob ho raha hai,main V bhuktbhogee hun...

    poet hee iskee pida samajh sakta hai,aur maf V wahee kar sakta hai...
    Ranjit

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  27. बुरी बात है.


    वैसे कुछ जगह तो नाम जुड़ गया है मगर पता चल जाये तो ही न...वरना तो जाने क्या क्या..कब कब छप जाता है..मेरी तो एक गज़ल के मकते से तख़ल्लुस ही बदल कर अपना रखकर छाप दिया. :)

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  28. क्या कीजियेगा.......आज यदि किसी को अवसर मिले कि ऐश्वर्या राय से अपनी रिश्तेदारी ठहरा सकता है तो,कोई पीछे हटेगा ???

    आपकी रचना है ही ऐसी कि क्या करे कोई...

    वैसे सफलता यह है कि आपको पता चल गया तथ्य का...
    अब सही गलत किसे कौन समझाए...

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  29. बहुत बुरी बात है , संजय जी . आपकी एक ग़ज़ल को पांच पांच लोग बेधड़क उठा कर अपने नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं . हद है . चोरी करने में इतना साहस !


    -Sudha Arora


    (VIA EMAIL)

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  30. अखिलेश सेन नामक सज्जन( ) ने मेरी कितनी ग़ज़लों को अपना नाम देने की कृपा की है, आप ख़ुद ही देखिए:

    1.बह गया मैं भावनाओं में कोई ऐसा मिला akhilesh
    2.दर्द को इतना जिया कि दर्द मुझसे डर गया akhielsh
    3.समंदर-सी आँखें उधर तौबा-तौबा akhilesh
    4.तुम देखना पुरानी वो चाल फिर चलेंगे akhielsh
    5.कितनी उम्मींदें लगाकर आ गई फिर तितलियाँ akhilesh
    6.जाने मैं किस डर में था akhilesh
    7.जो गया उससे निकलना चाहता हूँ akhilesh
    8.दूर से बात बनाना ये कोई बात हुई akhilesh
    9.दूर से बात बनाना ये कोई बात हुई akhilesh
    10.कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूँ akhilesh
    11.वो समझाने आ जाएँगे akhilesh
    12.आज मुझे ज़ार-ज़ार आँख-आँख रोना है akhilesh
    13.असलियत के साथ ज़्यादा देर रह पाया नहीं akhilesh
    14.डूबता हूँ न पार उतरता हूँ akhilesh
    15.वो गरचे बोलता बिलकुल नहीं था akhilesh
    16.पागलों की इस कदर कुछ बदगु़मानी बढ़ गई akhilesh
    17.गो तीर छूटा पर हदों के दरमियान रहा akhilesh
    18.क्यों करते हैं मेहनत ये नीयत पता हो akhilesh
    19.उसको मैं अच्छा लगता था askhilesh
    20.इनको बुरा लगा कभी उनको बुरा लगा akhilesh

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  31. आप की गजल चुरा कर अपना बताना और बिना आप की अनुमति लिए छापना घनघोर अपराध है. आप को उन्हें हटाने को और क्षमा मांगने बाध्य करना चाहिए.

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  32. संजय जी क्‍यों परेशान हैं इस वर्चुअल चोरी से। आपके दिये लिंक्‍स पर एक ब्‍लॉग तो मैनें देखा, शाइर ने ग़ज़ल छापी, फ़ोटो छापी, ये नहीं कहा कि ग़ज़ल उसकी है। हॉं इस प्रकार छापने से कापीराईट एक्‍ट का उल्‍ल्‍ंघन तो है ही।

    सादर
    तिलक


    Tilak Raj Kapoor (VIA EMAIL)

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  33. नमस्कार।
    आपके ब्लॉग पर टहलते हुए आज आपकी एक पुरानी गजल पढ़ी। रचना मुझे अच्छी लगी, सो मैंने हमराही पर पुनर्प्रकाशित करने की धृष्टता की है। समय मिले तो देखिएगा।
    http://hr.samwaad.com/2010/09/blog-post_16.html
    जाकिर

    --
    महामंत्री-"तस्‍लीम" एवं "साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन"
    www.ts.samwaad.com/ www.sb.samwaad.com/

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  34. आपकी ग़ज़ल को इतना पसंद किया जाना तो
    बहुत ही अच्छी बात है,,, लेकिन अस्ल रचनाकार का
    नाम बताये अपने ब्लॉग पर छाप लेना बहुत ही
    बुरी बात है ... इस की व्यापक तौर पर निंदा की जानी चाहिए

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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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