1. मर्दानगी
.............................गर्वीले चेहरे पर
अकड़ी हुई मूँछें
बाहों पर उछलती हुई मछलियां
गरज़दार आवाज़
मर्दानगी
रखी है इतिहास के शोकेस में
चाबी भरने पर आवाज़ भी करती है
जब जम जाती है इस पर धूल
तो क्रेज़ी स्त्रीत्व अपने कोमल हाथों से
इसे झाड़-बुहार कर
फिर रख देता है शोकेस में
जब पुरानी पड़ जाती है
याकि मर जाती है
तो पुरानी की जगह नई सजा दी जाती है
मर्दानगी
खुश है अपने सजने पर
साल दर साल
पीढ़ी दर पीढ़ी
शोकेस में सजती आ रही है
मर्दानगी
(तकरीबन 14-15 साल पहले ‘कतार’ नामक लघुपत्रिका में प्रकाशित)
.............................
2 . यहाँ भी मैं
........................अब स्त्रियां पूछ रही हैं
पुरुष एक और
स्त्री को चाह सकता है
तो स्त्री
एक और पुरुष मित्र को
क्यों नहीं चाह सकती
......................................
मैंने भरोसा दिलाया
बिलकुल चाह सकती है
बशर्ते कि
वह पुरुष मित्र
मैं होऊं।
..........................
(रचना तिथि: 23-02-२००९)
.............................
-संजय ग्रोवर
.............................गर्वीले चेहरे पर
अकड़ी हुई मूँछें
बाहों पर उछलती हुई मछलियां
गरज़दार आवाज़
मर्दानगी
रखी है इतिहास के शोकेस में
चाबी भरने पर आवाज़ भी करती है
जब जम जाती है इस पर धूल
तो क्रेज़ी स्त्रीत्व अपने कोमल हाथों से
इसे झाड़-बुहार कर
फिर रख देता है शोकेस में
जब पुरानी पड़ जाती है
याकि मर जाती है
तो पुरानी की जगह नई सजा दी जाती है
मर्दानगी
खुश है अपने सजने पर
साल दर साल
पीढ़ी दर पीढ़ी
शोकेस में सजती आ रही है
मर्दानगी
(तकरीबन 14-15 साल पहले ‘कतार’ नामक लघुपत्रिका में प्रकाशित)
.............................
2 . यहाँ भी मैं
........................अब स्त्रियां पूछ रही हैं
पुरुष एक और
स्त्री को चाह सकता है
तो स्त्री
एक और पुरुष मित्र को
क्यों नहीं चाह सकती
......................................
मैंने भरोसा दिलाया
बिलकुल चाह सकती है
बशर्ते कि
वह पुरुष मित्र
मैं होऊं।
..........................
(रचना तिथि: 23-02-२००९)
.............................
-संजय ग्रोवर
sanjay
जवाब देंहटाएंaapki pehlai kavita kaa impact dusri kavita sae khatma ho rahaa haen
अरे कहां हो नामवर और राजेंद्र यादव इसे पढ़ो।
जवाब देंहटाएंरचना जी,
जवाब देंहटाएंदोनों कविताओं में व्यंग्य-स्वर प्रमुख हैं। दरअसल दूसरी कविता का ‘मर्द’ ‘बदलाव’ या ‘प्रगति’ की आड़ में भी अपना ही फायदा या जुगाड़ देख रहा है। अगर ऐसा ही है तो हिन्दुस्तानी मर्द तो पिछले हज़ारों सालों से प्रगतिशील है।
कृपया बताएं कि क्या मैं अपनी बात ठीक से आपको समझा पाया ?
ग्रोवर जी, बहुत बढ़िया कविताएँ हैं
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
dono alag alag hotee to impact jyadaa hota anyways i liked the first one very nice and very good keep the good work going and if you agree i can publish the first one on naari kavita blog under guest poet for more people to read if yes please send an confirmation email with poem on freelancetextiledesigner@gmail.com
जवाब देंहटाएंदूसरी कविता खासी पसंद आयी......
जवाब देंहटाएंगर्वीले चेहरे पर
जवाब देंहटाएंअकड़ी हुई मूँछें
ha...ha...ha...!! Tuhadiya eh 2 linena padh k mere samne akdam nal Arvind Misra ji da chehra aa gya (apne blog wale)
Dusri kavita di shrat acchi aa...!!
Sadhi hui vyangy kavita hai.
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