मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

आज हुआ मन गज़ल कहूं.....


गज़ल

ऐसा नहीं कि भीड़ में शामिल नहीं हूं मैं
लेकिन धड़कना छोड़ दूं वो दिल नहीं हूं मैं

कुछ बाँझ ख्यालात का खूनी हूं गर तो क्या
उगती हुई उम्मीद का क़ातिल नहीं हूं मैं

दिल को हो दिल से राह, कोई ऐसी राह हो
घर में दरो-दिवार से दाखिल नहीं हूं मैं

गो नन्हा सा चिराग हूं, हूं तो तुम्हारे पास
क्या हो गया जो तारों की झिलमिल नहीं हूं मैं

रखता हूं दूर प्यार से हिसाब की क़िताब
आखिर पढ़ा-लिखा कोई जाहिल नहीं हूं मैं

कानून ही को कटघरे में लाए ना तो फिर
ऐसे किसी गुनाह का क़ायल नहीं हूं मैं

खोले बिना ही रस्सियां खेते रहें जो नाव
उनकी हदों के पास का साहिल नहीं हूं मैं

रफ्तारे-ज़िन्दगी को हूं हरदम नया सवाल
हारे हुए जवाबों की महफिल नहीं हूं मैं

-संजय ग्रोवर

15 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी गजल है।बढिया लिखा है-

    खोले बिना ही रस्सियां खेते रहें जो नाव
    उनकी हदों के पास का साहिल नहीं हूं मैं

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसा नहीं कि भीड़ में शामिल नहीं हूं मैं
    लेकिन धड़कना छोड़ दूं वो दिल नहीं हूं मैं

    बढ़िया कहा आपने

    जवाब देंहटाएं
  3. रखता हूं दूर प्यार से हिसाब की क़िताब
    आखिर पढ़ा-लिखा कोई जाहिल नहीं हूं मैं

    बहुत बढिया.

    जवाब देंहटाएं
  4. कुछ बाँझ ख्यालात का खूनी हूं गर तो क्या
    उगती हुई उम्मीद का क़ातिल नहीं हूं मैं

    Lajawaab ....Umda
    behtareen sher

    जवाब देंहटाएं
  5. रखता हूं दूर प्यार से हिसाब की क़िताब
    आखिर पढ़ा-लिखा कोई जाहिल नहीं हूं मैं

    bahut achhe ....khoob...

    जवाब देंहटाएं
  6. कुछ बाँझ ख्यालात का खूनी हूं गर तो क्या
    उगती हुई उम्मीद का क़ातिल नहीं हूं मैं
    kya baat hai. bahut hi badiya.aapki lekhani wakai lajwaab hai.

    जवाब देंहटाएं
  7. गो नन्हा सा चिराग हूं, हूं तो तुम्हारे पास
    क्या हो गया जो तारों की झिलमिल नहीं हूं मैं


    bahut khoob

    जवाब देंहटाएं
  8. ये मैं अविनाश दस के लिए लिखा है ताकि आप लोग उस लड़की के बारें में भी जान सकें. आप लोगों को इसलिए कर रहा हूँ क्योंकि ये टिप्पणी मैंने उनके ब्लॉग पर दिया है जो छपेगी नहीं. इसलिए आप लोगों को कर रहा हु. वो तो केवल सकारात्मक टिप्पणियां ही पोस्ट कर रहे है आपने ब्लॉग पर.


    पिछले जितने दिनों से यह प्रकरण सतह पर आया है उस दिन से आप जो कम कर रहे है वो ये कि आप आपने पक्ष में एक लॉबी तैयार करने कि कोशिश कर रहे है. आप स्त्रीवादी बनते है और स्त्री स्वतंत्रता कि बात करते है. ताकि उसके पीछे अपनी छुपी हुयी इच्छाओं को पूरा कर सकें. मैं आप से भी मिला हूँ और आप से ज्यादा उस लड़की को. लेकिन ये मत समझियेगा कि वो अकेले है. आपको मिले कमेन्ट में कहां गया है कि ये सफलता पाने का शोर्ट कट है. ऐसा बिना उस लड़की को जाने लोग कैसे कह सकते है. आप लॉबी बनते रहिये. मुझे बहुत दुःख है. जो आपने किया. ये अभी आपके साथ कुछ भी नहीं हुआ है. आप दूसरे कि कमियों का पर्दाफाश करते है और ख़ुद कि कमिया जब उजागर होने लगी तो लॉबी बनाने लगे. जो सच है उसे उजागर कीजिये. आप बहुत पाक साफ है तो आप उसी दिन खुल कर मीडिया के सामने क्यों नहीं आए. ब्लॉग का सहारा क्यों ले रहे है. शब्दों का जल तो बुनने आपको आता ही है और उसी से आप लोगों को गुमराह करने कि कोशिश कर लोगों कि भावनाओं से खेल रहे हैं. और जो anonymous है, जो आपके साथ है वो खुल कर क्यों सामने नहीं आता है. क्या उसके पास दम नहीं है. और ये अब अनुमति देकर क्यों कमेन्ट स्वीकार कर रहे है पहले तो ऐसा नहीं था. इसका मतलब आप दोषी हैं.

    जवाब देंहटाएं
  9. bhai mere, awaam ji, na to maiN vyaktigat rup se aapko jaanta na kisi Avinash ko na us ladki ko, na kisi anyamanask(Anonymous)ko. Ye saara gorakhdhandha meri samajh se katai baahar.
    Kahin apne-apne blog hit karaane ka koi KHEL to nahiN hai ye?

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत शानदार रचना...मेरे ब्लौग का अनुसरण करने के लिये धन्यवाद.

    जवाब देंहटाएं
  11. बेहद ऊँचा उड़ा वो क्यूंकि
    किसी भी हद तक गिर सकता था

    बेहद खुबसूरत रचना....

    जवाब देंहटाएं
  12. गो नन्हा सा चिराग हूं, हूं तो तुम्हारे पास
    क्या हो गया जो तारों की झिलमिल नहीं हूं मैं

    रखता हूं दूर प्यार से हिसाब की क़िताब
    आखिर पढ़ा-लिखा कोई जाहिल नहीं हूं मैं
    बहुत खूब लिखा साहिब!
    दूर प्यार से हिसाब की किताब...

    है घाटे का सौदा मुहब्ब्त सदा
    हिसाब अब लिखें कि जबानी करें
    श्याम सखा

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

Protected by Copyscape plagiarism checker - duplicate content and unique article detection software.

ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

#girls #rape #poetry #poem #verse # लड़कियां # बलात्कार # कविता # कविता #शायरी (1) अंतर्द्वंद (1) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (1) अंधविश्वास (1) अकेला (3) अनुसरण (2) अन्याय (1) अफ़वाह (1) अफवाहें (1) अर्थ (1) असमंजस (2) असलियत (1) अस्पताल (1) अहिंसा (3) आंदोलन (4) आकाश (1) आज़ाद (1) आतंकवाद (2) आत्म-कथा (2) आत्मकथा (1) आत्मविश्वास (2) आत्मविश्वास की कमी (1) आध्यात्मिकता (1) आभास (1) आरक्षण (3) आवारग़ी (1) इंटरनेट की नयी नैतिकता (1) इंटरनेट पर साहित्य की चोरी (2) इंसान (4) इतिहास (2) इमेज (1) ईक़िताब (1) ईमानदार (1) ईमानदारी (2) ईमेल (1) ईश्वर (5) उत्कंठा (2) उत्तर भारतीय (1) उदयप्रकाश (1) उपाय (1) उर्दू (1) उल्टा चोर कोतवाल को डांटे (1) ऊंचा (1) ऊब (1) एक गेंद करोड़ों पागल (1) एकतरफ़ा रिश्ते (1) ऐंवेई (2) ऐण्टी का प्रो (1) औरत (2) औरत क्या करे (3) औरत क्या करे ? (3) कचरा (1) कट्टरपंथ (2) कट्टरपंथी (1) कट्टरमुल्लापंथी (1) कठपुतली (1) कन्फ्यूज़न (1) कमज़ोर (1) कम्युनिज़्म (1) कर्मकांड (1) कविता (68) कशमकश (2) क़ागज़ (1) क़ाग़ज़ (1) कार्टून (3) काव्य (5) क़िताब (1) कुंठा (1) कुण्ठा (1) क्रांति (1) क्रिकेट (2) ख़ज़ाना (1) खामख्वाह (2) ख़ाली (1) खीज (1) खेल (2) गज़ल (5) ग़जल (1) ग़ज़ल (28) ग़रीबी (1) गांधीजी (1) गाना (7) गाय (2) ग़ायब (1) गीत (7) गुंडे (1) गौ दूध (1) चमत्कार (2) चरित्र (4) चलती-फिरती लाशें (1) चांद (2) चालाक़ियां (1) चालू (1) चिंतन (2) चिंता (1) चिकित्सा-व्यवस्था (1) चुनाव (1) चुहल (2) चोरी और सीनाज़ोरी (1) छंद (1) छप्पर फाड़ के (1) छोटा कमरा बड़ी खिड़कियां (3) छोटापन (1) छोटी कहानी (1) छोटी बहर (1) जड़बुद्धि (1) ज़बरदस्ती के रिश्ते (1) जयंती (1) ज़हर (1) जागरण (1) जागरुकता (1) जाति (1) जातिवाद (2) जानवर (1) ज़िंदगी (1) जीवन (1) ज्ञान (1) झूठ (3) झूठे (1) टॉफ़ी (1) ट्रॉल (1) ठग (1) डर (4) डायरी (2) डीसैक्सुअलाइजेशन (1) ड्रामा (1) ढिठाई (2) ढोंगी (1) तंज (1) तंज़ (10) तमाशा़ (1) तर्क (2) तवारीख़ (1) तसलीमा नसरीन (1) ताज़ा-बासी (1) तालियां (1) तुक (1) तोते (1) दबाव (1) दमन (1) दयनीय (1) दर्शक (1) दलित (1) दिमाग़ (1) दिमाग़ का इस्तेमाल (1) दिल की बात (1) दिल से (1) दिल से जीनेवाले (1) दिल-दिमाग़ (1) दिलवाले (1) दिशाहीनता (1) दुनिया (2) दुनियादारी (1) दूसरा पहलू (1) देश (2) देह और नैतिकता (6) दोबारा (1) दोमुंहापन (1) दोस्त (1) दोहरे मानदंड (3) दोहरे मानदण्ड (14) दोहा (1) दोहे (1) द्वंद (1) धर्म (1) धर्मग्रंथ (1) धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री (1) धर्मनिरपेक्षता (4) धारणा (1) धार्मिक वर्चस्ववादी (1) धोखेबाज़ (1) नकारात्मकता (1) नक्कारखाने में तूती (1) नज़रिया (1) नज़्म (4) नज़्मनुमा (1) नफरत की राजनीति (1) नया (3) नया-पुराना (1) नाटक (2) नाथूराम (1) नाथूराम गोडसे (1) नाम (1) नारा (1) नास्तिक (6) नास्तिकता (2) निरपेक्षता (1) निराकार (3) निष्पक्षता (1) नींद (1) न्याय (1) पक्ष (1) पड़़ोसी (1) पद्य (3) परंपरा (5) परतंत्र आदमी (1) परिवर्तन (4) पशु (1) पहेली (3) पाखंड (8) पाखंडी (1) पाखण्ड (6) पागलपन (1) पिताजी (1) पुण्यतिथि (1) पुरस्कार (2) पुराना (1) पेपर (1) पैंतरेबाज़ी (1) पोल (1) प्रकाशक (1) प्रगतिशीलता (2) प्रतिष्ठा (1) प्रयोग (1) प्रायोजित (1) प्रेम (2) प्रेरणा (2) प्रोत्साहन (2) फंदा (1) फ़क्कड़ी (1) फालतू (1) फ़िल्मी गाना (1) फ़ेसबुक (1) फ़ेसबुक-प्रेम (1) फैज़ अहमद फैज़्ा (1) फ़ैन (1) फ़ॉलोअर (1) बंद करो पुरस्कार (2) बच्चन (1) बच्चा (1) बच्चे (1) बजरंगी (1) बड़ा (2) बड़े (1) बदमाशी (1) बदलाव (4) बयान (1) बहस (15) बहुरुपिए (1) बात (1) बासी (1) बिजूके (1) बिहारी (1) बेईमान (2) बेईमानी (2) बेशर्मी (2) बेशर्मी मोर्चा (1) बेहोश (1) ब्लाॅग का थोड़ा-सा और लोकतंत्रीकरण (3) ब्लैकमेल (1) भक्त (2) भगवान (2) भांड (1) भारत का चरित्र (1) भारत का भविष्य (1) भावनाएं और ठेस (1) भाषणबाज़ (1) भीड़ (5) भ्रष्ट समाज (1) भ्रष्टाचार (5) मंज़िल (1) मज़ाक़ (1) मनोरोग (1) मनोविज्ञान (5) ममता (1) मर्दानगी (1) मशीन (1) महात्मा गांधी (3) महानता (1) महापुरुष (1) महापुरुषों के दिवस (1) मां (2) मातम (1) माता (1) मानवता (1) मान्यता (1) मायना (1) मासूमियत (1) मिल-जुलके (1) मीडिया का माफ़िया (1) मुर्दा (1) मूर्खता (3) मूल्य (1) मेरिट (2) मौक़ापरस्त (2) मौक़ापरस्ती (1) मौलिकता (1) युवा (1) योग्यता (1) रंगबदलू (1) रचनात्मकता (1) रद्दी (1) रस (1) रहस्य (2) राज़ (2) राजनीति (5) राजेंद्र यादव (1) राजेश लाखोरकर (1) रात (1) राष्ट्र-प्रेम (3) राष्ट्रप्रेम (1) रास्ता (1) रिश्ता और राजनीति (1) रुढ़ि (1) रुढ़िवाद (1) रुढ़िवादी (1) लघु व्यंग्य (1) लघुकथा (10) लघुव्यंग्य (4) लालच (1) लेखक (1) लोग क्या कहेंगे (1) वात्सल्य (1) वामपंथ (1) विचार की चोरी (1) विज्ञापन (1) विवेक (1) विश्वगुरु (1) वेलेंटाइन डे (1) वैलेंटाइन डे (1) व्यंग्य (87) व्यंग्यकथा (1) व्यंग्यचित्र (1) व्याख्यान (1) शब्द और शोषण (1) शरद जोशी (1) शराब (1) शातिर (2) शायद कोई समझे (1) शायरी (55) शायरी ग़ज़ल (1) शेर शायर (1) शेरनी का दूध (1) संगीत (2) संघर्ष (1) संजय ग्रोवर (3) संजयग्रोवर (1) संदिग्ध (1) संपादक (1) संस्थान (1) संस्मरण (2) सकारात्मकता (1) सच (4) सड़क (1) सपना (1) समझ (2) समाज (6) समाज की मसाज (37) सर्वे (1) सवाल (2) सवालचंद के चंद सवाल (9) सांप्रदायिकता (5) साकार (1) साजिश (1) साभार (3) साहस (1) साहित्य (1) साहित्य की दुर्दशा (6) साहित्य में आतंकवाद (18) सीज़ोफ़्रीनिया (1) स्त्री-विमर्श के आस-पास (18) स्लट वॉक (1) स्वतंत्र (1) हमारे डॉक्टर (1) हयात (1) हल (1) हास्य (4) हास्यास्पद (1) हिंदी (1) हिंदी दिवस (1) हिंदी साहित्य में भीड/भेड़वाद (2) हिंदी साहित्य में भीड़/भेड़वाद (5) हिंसा (2) हिन्दुस्तानी (1) हिन्दुस्तानी चुनाव (1) हिम्मत (1) हुक्मरान (1) होलियाना हरकतें (2) active deadbodies (1) alone (1) ancestors (1) animal (1) anniversary (1) applause (1) atheism (1) audience (1) author (1) autobiography (1) awards (1) awareness (1) big (2) Blackmail (1) book (1) buffoon (1) chameleon (1) character (2) child (2) comedy (1) communism (1) conflict (1) confusion (1) conspiracy (1) contemplation (1) corpse (1) Corrupt Society (1) country (1) courage (2) cow (1) cricket (1) crowd (3) cunning (1) dead body (1) decency in language but fraudulence of behavior (1) devotee (1) devotees (1) dishonest (1) dishonesty (2) Doha (1) drama (3) dreams (1) ebook (1) Editor (1) elderly (1) experiment (1) Facebook (1) fan (1) fear (1) forced relationships (1) formless (1) formless god (1) friends (1) funny (1) funny relationship (1) gandhiji (1) ghazal (20) god (1) gods of atheists (1) goons (1) great (1) greatness (1) harmony (1) highh (1) hindi literature (4) Hindi Satire (11) history (2) history satire (1) hollow (1) honesty (1) human-being (1) humanity (1) humor (1) Humour (3) hypocrisy (4) hypocritical (2) in the name of freedom of expression (1) injustice (1) inner conflict (1) innocence (1) innovation (1) institutions (1) IPL (1) jokes (1) justice (1) Legends day (1) lie (3) life (1) literature (1) logic (1) Loneliness (1) lonely (1) love (1) lyrics (4) machine (1) master (1) meaning (1) media (1) mob (3) moon (2) mother (1) movements (1) music (2) name (1) neighbors (1) night (1) non-violence (1) old (1) one-way relationships (1) opportunist (1) opportunistic (1) oppotunism (1) oppressed (1) paper (2) parrots (1) pathetic (1) pawns (1) perspective (1) plagiarism (1) poem (12) poetry (29) poison (1) Politics (1) poverty (1) pressure (1) prestige (1) propaganda (1) publisher (1) puppets (1) quarrel (1) radicalism (1) radio (1) Rajesh Lakhorkar (1) rationality (1) reality (1) rituals (1) royalty (1) rumors (1) sanctimonious (1) Sanjay Grover (2) SanjayGrover (1) satire (30) schizophrenia (1) secret (1) secrets (1) sectarianism (1) senseless (1) shayari (7) short story (6) shortage (1) sky (1) sleep (1) slogan (1) song (10) speeches (1) sponsored (1) spoon (1) statements (1) Surendra Mohan Pathak (1) survival (1) The father (1) The gurus of world (1) thugs (1) tradition (3) trap (1) trash (1) tricks (1) troll (1) truth (3) ultra-calculative (1) unemployed (1) values (1) verse (6) vicious (1) violence (1) virtual (1) weak (1) weeds (1) woman (2) world (2) world cup (1)