बुधवार, 4 मार्च 2009

ग़ज़ल है हटके, कह बेखटके

ग़ज़ल-1

वो गरचे बोलता बिलकुल नहीं था
मगर खामोश भी लगता नहीं था


वही तो बोलता रहता था हरदम
कि जिसपर बोलने को कुछ नहीं था


जो टहनी पत्तियों से भर गई थी
उसी का पेड़ थर-थर काँपता था


नज़र उतनी ही ज़्यादा बेहया थी
बदन को जितना ज़्यादा ढाँपता था


बगल की जिस गली से रास्ता था
पड़ोसी की बगल में इक छुरा था


वो जब लाशें गिरा कर हंस रहे थे
खुदा कोने में बैठा रो रहा था


कहीं गाएं बचाईं जा रहीं थीं
कहीं इंसान ज़िन्दा जल रहा था


वो जब लोगों से मिल कर लौटता था
उसे अपना पता मिलता नहीं था


मेरे दुश्मन से उसकी दोस्ती थी
यकीनन उसका सरमाया यही था


ग़ज़ल-2


ताज़ा कौन क़िताबें निकलीं
उतरी हुई ज़ुराबें निकलीं


शोहरत के संदूक में अकसर
चोरी की पोशाकें निकलीं


संबंधों का कलफ लगा कर
सीना तान उम्मीदें निकलीं


मैले जिस्म घरों के अंदर
बाहर धुली कमीज़ें निकलीं


दुनिया को सच्चाई बताने
चेहरे ओढ़, नक़ाबें निकलीं


चेहरे कितने चमकदार थे
कितनी घटिया बातें निकलीं


पानी का भी जी भर आया
यूँ बेजान शराबें निकलीं


-संजय ग्रोवर

10 टिप्‍पणियां:

  1. दोनो गजल वढिया लगी... विशेष कर यह शेर

    जो टहनी पत्तियों से भर गई थी
    उसी का पेड़ थर-थर काँपता था
    नज़र उतनी ही ज़्यादा बेहया थी
    बदन को जितना ज़्यादा ढाँपता था
    ==========
    शोहरत के संदूक में अकसर
    चोरी की पोशाकें निकलीं
    मैले जिस्म घरों के अंदर
    बाहर धुली कमीज़ें निकलीं

    जवाब देंहटाएं
  2. बार बार पढ़ा , इतनी अच्छी लगीं | हर शेर का है अंदाजे बयाँ और , कि लुत्फ़ उठाये बिना रहा न गया |

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  3. वो गरचे बोलता बिलकुल नहीं था
    मगर खामोश भी लगता नहीं था


    वही तो बोलता रहता था हरदम
    कि जिसपर बोलने को कुछ नहीं था....waah waah ji Gulshan ji is bar te do do gazlan....? balle balle swad aa gya ji ... wadhaiyan....!!

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही अच्छा लिखा है

    जो टहनी पत्तियों से भर गई थी
    उसी का पेड़ थर-थर काँपता था

    आप की अगली रचना का इंतजार रहेगा

    जवाब देंहटाएं
  5. og, hiqarat faqeerji, mera naaN gulshan nai sanjay haiga. aes taraN the bhede-bhede dil todan wale mazak na keeta karo.

    जवाब देंहटाएं
  6. नज़र उतनी ही ज़्यादा बेहया थी
    बदन को जितना ज़्यादा ढाँपता था




    बगल की जिस गली से रास्ता था
    पड़ोसी की बगल में इक छुरा था




    वो जब लाशें गिरा कर हंस रहे थे
    खुदा कोने में बैठा रो रहा था




    कहीं गाएं बचाईं जा रहीं थीं
    कहीं इंसान ज़िन्दा जल रहा था

    दोनों गजलें ही बेहतरीन हैं...

    जवाब देंहटाएं
  7. 'Hiqarat', 'faqeer'...?? Mai kya karu ab Grover ke sath mujhe Gulshan hi yaad aa jata hai...!!

    Haan mere bhog pe tandeep Tamnna ne comt diya hai..usne meri kavitayen punjabi me anuvaad kr apne blog pe post ki hain agar aapko punjabi aati ho to jarur dekhen ...khud tandeep ji bhi bhot accha likhtin hain....!!

    जवाब देंहटाएं
  8. ग्रोवर भाई वाह दोनो ग़ज़लें जबरदस्त वाह वाह!

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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