ग़ज़ल
आन को दें ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह
वहशी को इंसान पे तरजीह, वाह रे वाह
मात्रा मोड़ के, कायदे तोड़ के, बोले गुरजी
दीजो बहर को ज्ञान पे तरजीह, वाह रे वाह
ख़ुद तो ‘सुबहू’, ‘ईमां’, ‘सामां’ लिखके खिसके-
‘नादां’ को ’नादान’ पे तरजीह, वाह रे वाह
चार छूट जब तुमने ली, दो हम क्यंू ना लें !?
गुज़रे को उन्वान पे तरजीह, वाह रे वाह
संस्कृत बोलो, फ़ारसी बोलो, ख़ुश भी हो लो
मुश्किल को आसान पे तरजीह, वाह रे वाह
अढ़सठ तमग़े, साठ डिग्रियां, बातें थुलथुल
मैल को जैसे कान पे तरजीह, वाह रे वाह
अकादमिक बाड़े में अदब के साथ कबाड़े-
रट्टू को गुनवान पे तरजीह, वाह रे वाह
दुधमुही मूरत, मीठा साग़र, अफ़ीमी सीरत-
सूरत को विज्ञान पे तरजीह, वाह रे वाह
सूरत-मूरत, छबियां-डिबियां, मिलना-जुलना
ज़ाहिर को ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह
गुरजी नुक्ते के क़ायल और मैं गुरजी का
सो नुक्ताचीं तान के तरजीह, वाह रे वाह
-संजय ग्रोवर
(गुरजी=गुरुजी=उस्ताद)
No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........
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अढ़सठ तमग़े, साठ डिग्रियां, बातें थुलथुल
जवाब देंहटाएंमैल को जैसे कान पे तरजीह, वाह रे वाह
सूरत-मूरत, छबियां-डिबियां, मिलना-जुलना
ज़ाहिर को ईमान पे तरजीह, वाह रे वाह
ये कहन, बहर, काफिये और रदीफ़ आप जैसे उस्ताद के बस की ही बात है...क्या ग़ज़ल कही है...सुभान अल्लाह...बेमिसाल...
नीरज
गुरजी नुक्ते के क़ायल और मैं गुरजी का
जवाब देंहटाएंसो नुक्ताचीं तान के तरजीह, वाह रे वाह
wah wah wah wah wha
जवाब देंहटाएंsundar !
जवाब देंहटाएंbadhai ho !
badia lagi apki rachna !
जवाब देंहटाएंवाह रे वाह !
जवाब देंहटाएंको
वाह पे तरजीह ।
क्रिएटिव है एक-दम । बहुत खूब ।
wah re wah...wah re wag...
जवाब देंहटाएंbadhiyaa
जवाब देंहटाएंबहुत धारधार व्यंग्य है, जी नही बहुत ख़ास एक ग़ज़ल है.
जवाब देंहटाएंअकादमिक बाड़े में अदब के साथ कबाड़े-
जवाब देंहटाएंरट्टू को गुनवान पे तरजीह, वाह रे वाह
क्या रचना है.....
वाह जी वाह....
जबरदस्त लाजवाब !!!
इतनी तल्खी कहाँ से निकल पड़ी ?
जवाब देंहटाएंsundar....ati sundar...
जवाब देंहटाएंवाह रे वाह !!!!
जवाब देंहटाएंसुशीला जी, शायरों के तो तल्खि़यां ही निकलतीं हैं, कोई लाॅटरियां थोड़े ही निकलतीं हैं :-)
जवाब देंहटाएंआप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
जवाब देंहटाएंइसको इसकी पूरी खूबसूरती के साथ कोई पढ़े और मैं सुनूँ..जी यही करता है बस !
जवाब देंहटाएंगज़ब की गज़ल ! कोई एक शेर नहीं ढूँढ़ पा रहा बेहतर कहने को ! सब के सब...!
आज रीडर पर पढ़ के ही चुप नहीं रहते बना...आना पड़ा !
ये तरज़ीह
जवाब देंहटाएंना उम्मीद को उम्मीद ही सही
वाह रे वाह !!
waah re waah bahut khoob...
जवाब देंहटाएंdharti ki mitti murde se kahe ,jab se paida huwa tha tu to tuje dekhte hi hajaro bahe teri taraf hoti thi,chand minto ki gode bhi,ek janni maa ki god ka aanand lene janam liya tha sansar me aab aagya tu maout ke baad ...janni ke kokh se dharti ke kokh me.
जवाब देंहटाएंRegards,
shakeel lohani.
achi rahi apki gazal....khub wah ji wah hui khud hi..lekin achchi hai gazal bhi
जवाब देंहटाएंव्यंग्य करना तो कोई आपसे सीखे... वाह रे वाह !
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग को पढ़ कर वाह-वाह कहने को जी करता है. बधाई .
जवाब देंहटाएंसंजय जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आया... ताजी ग़ज़ल पढ़ा कर वाकई मजा आ गया... विचारों का खज़ाना है आपकी ये ग़ज़ल..अपने समाज की कई विसंगतियां आपने वाह वाह में उजागर कर दी... खास तौर पर निम्न पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएं"अकादमिक बाड़े में अदब के साथ कबाड़े-
रट्टू को गुनवान पे तरजीह, वाह रे वाह... "
hamare kahne ke liye to kuch bacha hi nahi bhai logon ne to pahle hi wah wahi laga di......
जवाब देंहटाएंsachmuch wah ji wah
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह ...बहुत बढ़िया गज़ल
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएं