No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
शुक्रवार, 11 जून 2010
....तो आएगी किस दिन क़यामत पता हो
ग़ज़ल
क्यूं करते हैं मेहनत ये नीयत पता हो
बीमारों की असली तबीयत पता हो
तुम्हे गर मेरे सच की जुर्रत पता हो
तो आएगी किस दिन क़यामत पता हो
पिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
बशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
क्या तोड़ोगे आईना, कुचलोगे चेहरा?
करोगे भी क्या गर हक़ीकत पता हो
वो इज़हारे-उल्फ़त संभलकर करें, गर
जो है होने वाली वो ज़िल्लत पता हो
-संजय ग्रोवर
(‘द सण्डे पोस्ट, सहित्य वार्षिकी में प्रकाशित)
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इस सुंदर पोस्ट के लिए साधुवाद
जवाब देंहटाएंतीखे तेवर वाले शेर ...मज़ा आ गया
जवाब देंहटाएंwaah sanjay saahab...bahut khoob..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी गज़ल है...हमेशा की तरह... ये शेर मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया--
जवाब देंहटाएंपिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
बशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
पिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
जवाब देंहटाएंबशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
waah! ek dam teekha sateek sher!
bahut hi umda ghzal kahi hai aap ne..
अच्छे अशआर हैं।
जवाब देंहटाएंसंजय जी इस गज़ल का आखिरी शेर वह कहता है जो मैं हमेशा सोचता रहता हूं।
जवाब देंहटाएंबेहतर...
जवाब देंहटाएंपिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
जवाब देंहटाएंबशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
गहरा कटाक्ष!!
बधाई स्वीकारें!
-विश्व दीपक
बहुत सुन्दर गज़ल
जवाब देंहटाएंGrover jee,gazal achchhe hai magar " kyon karte
जवाब देंहटाएंho" aur " kya todoge" wale misre " kyon" aur
" kya" shabdon ke galat wazan se khaariz hain.
kyon aur kya ko pahle giraayaa jaataa .unhen
aur giraanaa sahee nahin hai.Asha hai ki aap
anyatha nahin lenge.
aaj ki hakikat
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंwah kamaal hai..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया व सही कहा है। बढिया गजल है बधाई।
जवाब देंहटाएंपिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
जवाब देंहटाएंबशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
kys baat....lajwab......sidhe marm par chot kiya hai...badhai
प्रिय संजय जी,
जवाब देंहटाएंआजकल के साहित्यकार का जवाब नहीं है.अपनी खामियों पर पर्दा डालता है और दूसरों की खामियों को जगजाहिर
करता है.खैर , मेरी ग़ज़ल के तीन अशआर सुनिए--
आदतें इसकी सभी पहचानता हूँ मैं
आदमी हूँ आदमी को जनता हूँ मैं
खामियां मुझमे कई हैं मानता हूँ मैं
खूबियाँ भी कम नहीं हैं जानता हूँ मैं
हर किसी में ढूँढता हैं गलतियाँ ये दिल
क्या करे, फितरत है इसकी जानता हूँ मैं
कृपया आप www.mahavir.wordpress.com पर मेरी दो लघु कथाएँ पढियेगा.आपकी बेबाक़ टिप्पणी भी
पोस्ट करेंगे हम.
प्रेम भाव बनाए रखिये.
शुभ कामनाओं के साथ,
प्राण शर्मा
PRAN SHARMA
(VIA EMAIL)
आदरणीय प्रान (PRAN) जी, मैंने आपकी टिप्पणी को अन्यथा नहीं लिया, जैसे लेना चाहिए था बिलकुल वैसे ही लिया है। फ़िलहाल मैं ‘साये में धूप’ में दुष्यंत कुमार की भूमिका से एक अंश रखना काफ़ी समझता हूं:-
जवाब देंहटाएं‘‘मैं स्वीकार करता हूं कि मैं उर्दू नहीं जानता, लेकिन इन शब्दों का प्रयोग यहां अज्ञानतावश नहीं, जानबूझ कर किया गया है। यह कोई मुश्क़िल काम नहीं था कि ‘शहर’ की जगह ‘नगर’ लिखकर इस दोष से मुक्ति पा लूं, किंतु मैंने उर्दू शब्दों को उस रुप में इस्तेमाल किया है, जिस रुप में वे हिंदी में घुल-मिल गए हैं। उर्दू का ‘शह्र’ हिंदी में ‘शहर’ लिखा और बोला जाता है, ठीक उसी तरह जैसे हिंदी का ‘ब्राहमण’ उर्दू में ‘बिरहमन’ हो गया है और ‘ऋतु’ ‘रुत’ हो गयी है।’’
इसके अलावा मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि कुछ लोग रचना में विचार या कथ्य को महत्व देते हैं और उसके लिए छोटी-मोटी बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो कुछ लोगों के लिए विचार सबसे बाद में आता है और मात्रा, वज़न आदि पहले। ऐसे सोचने लगें तो ग़ज़ल तो हिंदी की विधा ही नहीं है, हमें कहनी ही नहीं चाहिए। इसके लिए हम गंगा-जमुनी संस्कृति का हवाला देने लगेंगे। जहां जो बात हमारे अनुकूल पड़ती है, उसे हम सही ठहराना शुरु कर देते हैं। ऐसे सोचें तो जो लोग पैसे की ख़ातिर देश छोड़ गए उन्हें उसूलों-सिद्धांतों की बातें करनी ही नहीं चाहिए। पर मुझे इन छोटी-छोटी बातों में उलझना बचकानापन लगता है। माफ़ी चाहूंगा। सादर,
HaN, Aapki pahli Laghu Katha kafi pasaNd aayi.
पिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
जवाब देंहटाएंबशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
kyaa baat hai?
ज़बरदस्त तेवर से भरी हर पंक्ति है .आपको बधाई !
जवाब देंहटाएंShaandaar....
जवाब देंहटाएंपिता सर पे, पलकों पे माँ को रखेंगे
जवाब देंहटाएंबशत्र्ते कि उनकी वसीयत पता हो
Maarak !!!!
Lajawaab gazal !!!
bahut bahut sundar...