ग़ज़लें
1.
मोहरा, अफवाहें फैला कर
बात करे क्या आँख मिला कर
औरत को माँ-बहिन कहेगा
लेकिन, थोड़ा आँख दबाकर
पर्वत को राई कर देगा
अपने तिल का ताड़ बना कर
वक्त है उसका, यारी कर ले
यार मेरे कुछ तो समझा कर
ख़ुदको ही कुछ समझ न आया
जब बाहर निकला समझा कर
(http://www.anubhuti-hindi.org/ में प्रकाशित)
2.
मेरी हंसी उड़ाओ बाबा
अपना दुःख बिसराओ बाबा
पहले मुझको समझ तो लो तुम
फिर समझाने आओ बाबा
मैं इक ज़िन्दा ताजमहल हूँ
आँखों में दिल लाओ बाबा
सच माफ़िक ना आता हो तो
अफ़वाहें फैलाओ बाबा
आग दूर तक फ़ैलानी है
दिल को और जलाओ बाबा
उपर वाला थक कर सोया
ज़ोर से मत चिल्लाओ बाबा
फिर आया ग़ज़लों का मौसम
फिर दिल की कह जाओ बाबा
(दैनिक ‘आज’ में प्रकाशित)
-संजय ग्रोवर
No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
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दोनों बेहतरीन, संजय भाई.
जवाब देंहटाएंwaah dono hi rachnaayein lajawaab...
जवाब देंहटाएंसुंदर और यथार्थपरक ग़ज़लें!
जवाब देंहटाएंपर्वत को राई कर देगा
जवाब देंहटाएंअपने तिल का ताड़ बना कर...sundar
bahut badhiya. badhai.
जवाब देंहटाएंअन्दाज़ बहुत उम्दा ऒर दिलचस्प हॆ । बधाई ।
जवाब देंहटाएंऔरत को माँ-बहिन कहेगा
जवाब देंहटाएंलेकिन, थोड़ा आँख दबाकर...
बेहतर ग़ज़लें...
संजय भाई, बहुत अच्छी ग़ज़लें कही हैं। आपकी और पोस्ट भी कभी समय निकालकर पढ़ता हूँ।
जवाब देंहटाएंसंजय जी बहुत उम्दा और ताज़ी ग़ज़ल कही ... बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल।
जवाब देंहटाएंपढ़ कर अच्छा लगा...
जवाब देंहटाएंwaah...waah...
जवाब देंहटाएंमोहरा, अफवाहें फैला कर
जवाब देंहटाएंबात करे क्या आँख मिला कर
औरत को माँ-बहिन कहेगा
लेकिन, थोड़ा आँख दबाकर
पर्वत को राई कर देगा
अपने तिल का ताड़ बना कर
छोटी बहर में बहुत अच्छी गज़लें
दोनो बहुत बढिया रचनाएं हैं।
जवाब देंहटाएंदोनों गजलें उम्दा है. बधाई.
जवाब देंहटाएंaccha likha hai sanjay ji
जवाब देंहटाएंaap hamare portal ke liye bhi kuch likhiye....www.aajkikhabar.com
regards
chandrasen
(chandrasen verma via email)
Lajawab ... dono bahut hi anupam gazlen hain ....
जवाब देंहटाएंvaah kya baat hai ,,,,jab bhi aap kahte ho -kahte ho dil kholkar , nazrana yee aapka - bole sab se dol kar,,,,, kamna mumbai
जवाब देंहटाएंkamaal ka likha hai aapne dhero shubhkaamna !
जवाब देंहटाएंऔरत को माँ-बहिन कहेगा
जवाब देंहटाएंलेकिन, थोड़ा आँख दबाकर
मैं इक ज़िन्दा ताजमहल हूँ
आँखों में दिल लाओ बाबा
दोनों ही ग़ज़ल और इसके सभी शेर कमाल के लिक्खे हैं आपने....पर ये दोनों शेर ...ओह्ह्ह !!!
उम्दा गज़ले,बधाई
जवाब देंहटाएंउम्दा रचनाओं के लिए संजय ग्रोवर जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंdono rachna behad umda, daad kubool karen.
जवाब देंहटाएंआपकी दोनों रचनाएँ अच्छी लगीं। ब्लॉगर पर टिप्पणी करते समय कुछ एरर मेसेज आया, इसलिए मेल पर टिप्पणी दे रहा हूँ। मेरी बधाई एवं शुभकामनाएँ स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएं-भूपेन्द्र
(via email)
आग दूर तक फ़ैलानी है
जवाब देंहटाएंदिल को और जलाओ बाबा
उपर वाला थक कर सोया
ज़ोर से मत चिल्लाओ बाबा
bahut hi khoobsurat gajal...
आदरणीय संजय जी की दोनों ही ग़ज़लें उम्दा और यथार्थ बयान करती हुई. इतनी उम्दा ग़ज़लों को लिए दिल से आभार स्वीकार कीजियेगा..बधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगीं दोनों ही गज़लें ...खासकर ये शेर--
जवाब देंहटाएंऔरत को माँ-बहिन कहेगा
लेकिन, थोड़ा आँख दबाकर...
प्रभावपूर्ण गज़ल, धन्यवाद संजय जी.
जवाब देंहटाएंसच माफ़िक ना आता हो तो
जवाब देंहटाएंअफ़वाहें फैलाओ बाबा
behtrin gazal sir........shukriya in gazlon ke liye aapka........
मैं इक ज़िन्दा ताजमहल हूँ
जवाब देंहटाएंआँखों में दिल लाओ बाबा
आग दूर तक फ़ैलानी है
दिल को और जलाओ बाबा
बहुत ख़ूब
क्या कहने,उमदा अश’आर हैं
दाद हाज़िर है क़ुबूल फ़रमाएँ
बेहतरीन लाजवाब!
जवाब देंहटाएंDhanywaad sanjay ji
जवाब देंहटाएंaapki gajle bhi pasand aayi
ashok
asshok jamnani
VIA EMAIL
संजय जी,
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाएँ यथार्थ को अभिव्यक्त करती हैं। सुन्दर हैं।
शकुन्तला बहादुर
Shakuntala Bahadur
VIA EMAIL
अरे साहब ! इतने प्यारे ग़ज़लगो हैं आप , नहीं जानता था । किसी एक शे'र को कोट् नहीं करूंगा , तमाम अश्आर दाद के मुस्तहक़ हैं ।
जवाब देंहटाएंआइंदा भी अच्छी ग़ज़लें पढ़ने , सुख़नवरी की प्यास बुझाने की हसरत में आते रहना पड़ेगा आपके यहां । क़लम की जीनत सलामत रहे ।
मौका मिले तो शस्वरं पर भी तशरीफ़ फ़रमाएं , अभी बह्रे हज़ज में दो ग़ज़लें मुहब्बत के नाम लगा रखी हैं , जिनमें से एक मेरी मादरी ज़ुबान राजस्थानी में है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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