फ़ेस बुक पर एक दोस्ताना बहस
Sanjay Grover : परिभाषा में बंधते ही प्रगतिशीलता रुढ़ि बन जाती है।
Sat at 12:10pm Friends of Friends • Comment •LikeUnlike
Babykumari Kumari, Vijay Krishna Mishra, Ajay Kumar and 2 others like this.
Arkjesh Kumar कोई उदाहरण ? Sat at 1:13pm
Sanjay Grover : zarur deNge. Sat at 2:47pm •
Ernest Albert : @arkjesh ji,
e.g love is blind
non-alignment is the best policy
'we must consign our dead in ganga ma'
'earn max punnya will get manas chola'
(so much punnya after the firangi left that from 34 crores we have crossed 127 crore mark),
i could go on n on.
Sat at 7:18pm •
Anjule Maurya : हर विचारधारा के साथ ये समस्या है ...जहान उसके चाहने वाले बढ़ते हैं..विचारधरा उनसे और समर्पित होने की मांग करती जाती है...एक दिन वों भी आता है जब आपने आगे किसी और विचारधारा का कुछ भी सुनने से इंकार करदेती है...फिर वहीँ से वों प्रगतिशील विचार धारा rudhwadhi बन जाती है...पता नहीं क्यों लेकिन होता अक्सर यही है..
Sat at 8:05pm •
Aradhana Chaturvedi : @ Sanjay Grover पर मानव मन परिभाषाएँ बनाने से बाज भी तो नहीं आता.
Sat at 10:12pm •
Arkjesh Kumar @ Ernest albert
आपके दिए हुए उदाहरण प्रगतिशीलता के नहीं रुढि के ही हैं ।
कोई भी विचार जब समय और परिस्थति के अनुसार स्वयं को अपडेट नहीं करता तो वह रुढि बन जाता है ।
रुढि बदलाव की और रूढ़िवादी, बदलाव करने वालों के दुश्मन बन जाते हैं ।
हर "वाद" प्रगतिशीलता का दुश्मन होता है ।
प्रगतिशील व्यक्ति के लिए मनुष्य और समाज का हित किसी वाद , सिद्धांत या परंपरा से बड़ा होता है ।
नए फैशन के कपड़े या विचारधारा को पहनने से भी कोई प्रगतिशील नहीं होता ।
प्रगतिशील किसी की दी हुई परिभाषा से नहीं बल्कि स्वविवेक से जीता है ।
उदाहरण अभी भी बाकी है :-)
Sat at 10:27pm
Ajay Kumar : # Great.WELL SAID arkjesh. I liked that.
Sun at 9:24am
Sanjay Grover : आम उदाहरणों से बात करता हूं। जब हम बड़े हो रहे थे चारों तरफ़ यही माना जाता था कि जो अंग्रेजी बोलता है, आधुनिक होता है और तरक्की करता है। तरक्की की बात तो समझ में आती है, हालांकि उसकी भी अपनी-अपनी परिभाषाएं हैं। अगर किसी समाज में चोरी-चकारी को मान्यता और प्रतिष्ठा प्राप्त है और व्यवसाय और नौकरी में भी उसे आवश्यक माना जाता है तो बड़ी संभावना इसी बात की है कि वैसे ही लोग तरक्की करेंगे। लेकिन मैं देखता कि अंग्रेजी बोलने वाले दहेज लेते-देते हैं, मूर्ति को दूध पिलाते हैं, स्त्रियों को सामाजिक मान्यताओं के बाहर जाकर कुछ करने नहीं देना चाहते, बच्चों को डाक्टर, इंजीनियर, सी.ए....आदि से अलग कुछ बनने नहीं देना चाहते, तो मैं उलझन में पड़ जाता। भाषा सिर्फ माध्यम है, बिना विचार और तर्क के आधुनिकता कैसे आ सकती है ? वहां अंग्रेजी को आधुनिकता के रुप में एक आम स्वीकृति थी। हिंदी के लिए बात करते हुए मुझे हंसी भी उड़वानी पड़ती, अकेला भी पड़ जाना होता था। भीड़ उस वक़्त भी अंग्रेजी के साथ थी। ज़्यादातर लोगों को नहीं मालूम था कि वे अंग्रेजी का समर्थन भीड़ की वजह से करते हैं। अगर फिल्म इण्डस्ट्री में या किसी उद्योगपति की बेटी स्कर्ट पहन ले तो इसमें कोई आधुनिकता नहीं है क्यों वहां तो यह आम चलन है। कोई किसी गांव में जींस पहनना शुरु कर देता है तो इसे हम प्रगतिशीलता इतने तक ही मान सकते हैं कि उसने भीड़ के खिलाफ जाने का साहस किया। अगर जींस पहनने के अलावा उसके तमाम व्यवहार और विचार पहले जैसे हैं तो जींस और धोती में क्या फर्क हुआ ? थोड़े दिन में सारा गांव जींस पहनने लगेगा मगर बाक़ी सब यथावत चलता रहेगा। हिंदुस्तान में आज प्रगतिशीलता के नाम पर यही तो हो रहा है। लड़कियां स्कर्ट पहन रहीं हैं, लड़के प्रेम कर रहे हैं, बुड्ढे इंटरनेट पर बैठ रहे हैं मगर अंधविश्वास ख़त्म नहीं हो रहा, बाबा और बाबाई चैनल बढ़ते जा रहे हैं, न्यूज़ चैनल अंधविश्वासों को हवा दे रहे हैं। करवाचैथ तो छोड़िए, सती प्रथा और बुरके तक की वकालत होने लगी है। बुरका और घूंघट भी किसी के लिए प्रगतिशीलता हो सकती है बशर्ते कि वह इन्हें किसी समाज, भीड़, धर्म और प्रतिष्ठा गिर जाने के डरों या दबावों की वजह से नहीं बल्कि अपनी सुविधा के मद्दे-नज़र अपनाए जा रहे हो। जैसे कि मुझे गर्मियों में जींस, कुर्ता और हवाई चप्पल में सुविधा लगती है तो मैं पूना से लेकर अलीगढ़ तक इन्हीं कपड़ों में घूम आता हूं। मुझे परवाह नहीं कि इनमे से क्या पूरब का है, क्या पश्चिम का है,ं क्या फैशन में है, क्या नहीं है, दोस्त क्या कहेंगे, रिश्तेदार क्या कहेंगे, वगैरह.........
(बाक़ी ब्रेक के बाद....) Sun at 11:00am
Sanjay Grover : @Ernest Albert
mujhe lagta hai aapne sirf paribhashayeN samne rakhi haiN, unke ghalat hote jane ke udaharan ko zyada spasht nahiN kiya. ya to maiN aapki bat nahiN samajh paya ya Arkjesh.
Sun at 11:13am
Aradhana Chaturvedi : @ Sanjay Grover मुझे भी यही लगता है कि आज अंग्रेजीदां लोग ज्यादा रूढ़िवादी होते हैं. मैंने यहाँ दिल्ली की कानवेंट एजुकेटेड लड़कियों को करीब से देखा है, उनका एक ही सपना होता है- किसी अमीर लड़के से शादी करना, और कैनेडा चले जाना. जबकि पहनावा देखो तो ऐसा लगेगा कि इनसे अधिक आधुनिक तो और कोई हो ही नहीं सकता. पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और अन्धविश्वास में ये लड़कियाँ यू.पी., बिहार की लड़कियों से दस गुना आगे हैं. कुँवारी लड़कियाँ भी करवा चौथ का व्रत इतनी खुशी-खुशी रखती हैं कि आश्चर्य होता है..हमारे उत्तर प्रदेश की भी कॉनवेंटेड लड़कियों का यही हाल है..हद है. Sun at 11:47am
Arkjesh Kumar @ संजय जी
बढ़िया बता रहे हैं , जारी रहिए ।
हमारा क्लीन शेव होना भी उस समय अपने दायरे में एक प्रगतिशील कदम था । काफी साहसी भी :-) अब लोग मुछमुँडोँ को देखकर उतने असहज नहीं होते गाँवों में भी । लेकिन आज से दस साल पहले लड़के को क्लीन शेव देखकर लोग लानत की द्रिष्टि से देखते थे । भले ही दिलीप कुमार के दीवाने हों ।
इस विषय पर हमने काफी लम्बीँ बहसेँ भी की लोगों से । अब उन तर्कोँ को याद करके हँसी भी आती है ।
Sun at 2:48pm
Arkjesh Kumar @ आराधना
अच्छा उदाहरण है ।
कान्वेन्ट की लड़कियों को अच्छा पति पाने की ख्वाहिश नहीं होनी चाहिए क्या :-)
और रही बात अंग्रेजी की तो वह हमारे सामने ग्यान और विचार का व्यापक फलक खोलती है । अब यह हमारे ऊपर है कि हम किधर आँख बंद करते हैं और किधर खोलते हैं ।
यह कहिए कि सिर्फ कोई भाषा इतनी सक्षम नहीं होती कि वह किसी को प्रगतिशील बना सके ।
Sun at 3:10pm
Aradhana Chaturvedi : @ arkjesh, बात अच्छा पति पाने की नहीं है. एक अच्छा जीवनसाथी सभी को चाहिये होता है. बात सिर्फ़ इसी बात के पीछे पड़े रहना है. जैसे ज़िन्दगी में यही सबसे बड़ी बात यही हो. पालन-पोषण ही ऐसे होता है उनका कि सिर्फ़ दुल्हन बनने के लिये तैयार किया जाता है. हाँ, ये बात हो सकती है--- कोई भाषा इतनी सक्षम नहीं होती कि वह किसी को प्रगतिशील बना सके ।
Sun at 6:35pm
Sanjay Grover : @ arkjesh,आराधना ने अपने कमेंट में अच्छा नहीं अमीर शब्द का इस्तेमाल किया था। ज़रुरी नहीं कि अमीर पति अच्छा भी हो। हां, यह भी ज़रुरी नहीं कि वह बुरा हो।
Sun at 7:49pm
Arkjesh Kumar मेरे कमेँट में भी अच्छा की जगह अमीर पढ़ा जाए
Sun at 10:46pm
Sanjay Grover :-) Yesterday at 8:57am @Anjule Maurya...पता नहीं क्यों लेकिन होता अक्सर यही है..se sahmat.
Yesterday at 12:18pm
Sanjay Grover : अर्कजेश की बात ‘प्रगतिशील स्वविवेक से जीता है’ को बढ़ाते हुए कहूंगा कि जैसे ही प्रगति महज़ भीड़ से संचालित होने लगती है, रुढ़ि बनने लगती है। जैसे कि एक बेटी कल अपनी मां से कहे, ‘‘ मम्मी, आजकल मेरी सारी ही सहेलियां लिव-इन कर रही हैं, मुझे भी कर लेने दो।’’ मां, ‘‘ अच्छा ! हां, कल रिच्चा की मम्मी भी आयी थीं, कह रही थी रिच्चा ने भी किसी से लिव इन कर लिया है। सुनते हो, जब उसकी सारी फ्रेंडस् लिव इन कर रहीं हैं तो एक बार उसको भी कर लेने दो न !’’
‘‘ चल बेटा तेरे पापा को तो मैं मना लूंगी, पर ध्यान रखना, करवाचाौथ कभी मत भूलना....और सुबह उठकर पति के पांव ज़रुर छूना...और बेटा लिव इन के बाद भी पति का घर ही पत्नी का घर होता है.....जहां एक बार लिव इन करने जाओ, अर्थी वहीं से बाहर आनी चाहिए.....
एक पुराना चुटकुला याद आ गया जो बात को और साफ़ करेगा:
गृहस्वामी: पंडजी, वैज लेंगे या नान-वेज ?
पंडजी: नान-वेज चल जाएगा बेटा, पर ध्यान रहे, उसमें प्याज़ नहीं होना चाहिए
Yesterday at 3:02pm
Aradhana Chaturvedi : बिल्कुल, लिव इन भी एक संस्था का रूप लेकर शादी जैसी बन जायेगी, अगर आपने जैसा बताया है, वैसा ही हुआ तो...मतलब लिव इन अब फ़ैशन में आ गया है इसलिये हमें भी करना है... बहरहाल, तो मैं ये देख रही हूँ कि ज्यादातर लोग शादी इसलिये करते हैं क्योंकि तीस के ऊपर होते ही आपके ऊपर सवालों की गोलियाँ ही नहीं लाठी, बम और कट्टे तक चलने लगते हैं, जैसे कि आपने शादी न करके कोई बड़ा अपराध कर दिया हो. औरतों को ज्यादा झेलना पड़ता है, पर पुरुषों को भी कम नहीं.
Yesterday at 3:03pm
Arkjesh Kumar : इस मकाम पर चर्चा यह ध्वनित कर रही है कि फैशन देखादेखी है या कोई काम इसलिए करना कि ज्यादातर लोग वैसा कर रहे हैं । लिव इन मेँ लिवने के बाद भी यदि कुंडली , दहेज वगैरह की शहीदी प्रक्रिया ही दुहरानी है , तो फिर यह सिर्फ शादी के पहले की सुविधापूर्ण व्यवस्था है । और लिव इन के बाद विवाह का रिश्ता बनावटी होगा ।
Yesterday at 8:40pm
Arkjesh Kumar शादी न करना कोई आलोचनात्मक बात नहीं है । फिर भी इस तथ्य से कौन इंकार करेगा कि स्त्री पुरुष का साथ रहना एक प्राकृतिक आवश्यकता है । इसी के लिए शादी का विधान किया गया था । आज शादी की जटिलताओँ की वजह से लोग शादी को तो इंकार कर रहे हैं । लेकिन शादी से इतर स्त्री पुरुष के साथ रहने को समाज सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रहा ।
फिर लिव इन मेँ भी वही स्त्री के अधिकार , संबंध विच्छेद , और बच्चे से संबंधित कानूनी पेँच शुरू हो गए हैं ।
तो शादी से आप इंकार कर सकते हैं लेकिन उसके विकल्प की आवश्यकता से कोई इंकार नहीं कर सकता ।
और इसके विकल्प की समाज द्वारा स्वीकार्यता गैर शादीशुदा लोगों के लाभार्थ जल्द से जल्द बननी चाहिए ।
Yesterday at 9:06pm
इस विषय में आपके विचार जानना ज़्यादा महत्वपूर्ण होगा.....
No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
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अरे !!! इस बहस को एक साथ देखने पर बहुत रोचक लग रही है. वैसे मैं एक बार पहले भी इसे पूरा पढ़ चुकी हूँ. पर एक अच्छा प्रयास है, हमारे बीच हुई बातचीत को ज्यादा लोगों तक पहुँचाने का.
जवाब देंहटाएंI totally agree with you. Pragatisheelta is a political fraud. These people have two faces-they want others to follow Maxism but they will live a capitalist. You can see Premchand's GODAN.
जवाब देंहटाएंKamal Kishore Goyanka
यही तो खालिश अपनी तरह कि इंडियन प्रगतिशीलता है.इसके वजूद से इंकार नहीं करेंगे अब घर वाले.मगर होगी ये रिलेशनशिप भी अपने धार्मिक मंत्रो के जरिये ही परवाना चढ़ेगी .पड़ोसिनो में बहस होगी देखो उसकी मामी प्रगतिशील नहीं है बेचारी का रो रो के बुरा हाल हूवा पड़ा मगर कसे कसी माँ बाप हैं लिव इन करने ही नहीं दिया अपनी बेटी को,दूसरी पड़ोसन हाँ में हाँ मिलते कहेगी-अरे ये पलड फैशन वाले हैं इन्हें क्या पता इस के बारे में..सही कह रही हो मेरी गुड्डी के पापा भी नहीं मान रहे थे मगर माने साफ कह दिया देखो जी हम हम तो अपनी बेटी का लिव इन रिलेशनशिप ही करेंगे..नहीं तो शोसिती में कितनी हसी उड़ेगी..तभी पीछे से आवाज उभरेगी-आरी सुनती हो गुड्डी कि मम्मी लड़की को पसंद करने लड़के के मामी पापा आरहे हैं जल्दी से उसे सजा सवार दो और ये बात उन्हें साफ तोंर से पता चलना चाहिए कि अपनी गुड्डी बहुत अच्छे से खाना बना लेती है लिव इन या कुछ और करना तो उसे वही है ना...
जवाब देंहटाएंप्रगति और शील दोनों में क्या संबंध है ?
जवाब देंहटाएंशादी एक सामूहिक दबाव का केंद्र है और क्योंकि बहुमत शादीशुदा लोगों का है तो वो वैसा ही करेंगे, जैसे अपने देश की जनता चुनाव में वोट देती है और अपना भविष्य चुनती है .
अरे पकड़ो पकड़ो कैसे छड़ा या छड़ी घूम रहा/रही है .(कोई गड़बड़ तो नहीं ?)
अच्छी बहस की है दोस्तों.
जवाब देंहटाएंबहस तो मजेदार है। सुनते हैं, लोग क्या कहते हैं ?
जवाब देंहटाएंइस बहस को यहॉं पर vyavasthit roop men dekhakar achha laga
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया, शानदार और रोचक बहस है! आपने बिल्कुल सही फ़रमाया है! आपने सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुन्दरता से प्रस्तुत किया है!
जवाब देंहटाएंशीर्षक अति सारगर्भित है...इस से पूर्णतः सहमत हूँ....
जवाब देंहटाएंयद्यपि बहस कुछ हल्की हो चली है और इसमें उठाये गए कतिपय मुद्दों से सहमत नहीं हूँ...पर फिर भी यह बहुत रोचक है....
जारी रखें....
@रंजना जी,
जवाब देंहटाएंपहले तो शालीनतापूर्वक की गयी आपकी सभी टिप्पणियों के लिए आभार व्यक्त करना चाहूंगा। दूसरे, अगर आप किसी बात असहमत हैं तो खुलकर व्यक्त करें। दोस्ताना माहौल में चल रही एक बहस में आपने भी हिस्सा लिया, मेरे लिए इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या होगी।
@RANGNATH SINGH
yahi guzarish aapse bhi hai.
जिस खुलेपन और अनौपचारिकता में यहां बातचीत हो रही है, प्रगतिशीलता शायद जन्म भी ऐसी जगह से लेती है। रोचक...! सचमुच का संवाद घर !
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