शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

अंधेरों का कोरस यानि कि एक लीचड़ पैरोडी यानिकि डों‘ट टेक सीरियसली......



यारों सब धुंआं करो



मिलकर धुआं करो


बचे-ख़ुचे पर्यावरण को


धकेलो, दफ़ा करो


यारों सब धुंआं करो......






लोगों को दमा करो


चाहे अस्थमा करो


कानों को फ़ाड़ो बम से


अमन प दावा करो


यारों सब धुंआं करो....






पार्क को तबाह करो


तिसपे वाह-वाह करो


रोशनी को आग़ में डालो


नाचो, स्वाह-स्वाह करो


यारों सब धुंआं करो....






ओज़ोन पे आह करो


मौजों पे वाह करो


शांति को तलाक दे दो


शोर से निकाह करो


यारों सब धुंआं करो....






मिठाई जमा करो


ठूंसो-ठांसो, ठां करो


सुबह फ़िर हवा करो


और फ़िर दवा करो


यारों सब धुंआं करो....






(बतर्ज़: यारों सब दुआ करो....)

28 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बिलकुल सही लिखा है. माआजा अ गया पढ़कर. जरुरत है आज के युवा इसे पढें और सिख लें.....

    जवाब देंहटाएं
  2. लोगों को दमा करो
    चाहे अस्थमा करो
    कानों को फ़ाड़ो बम से
    अमन प दावा करो
    यारों सब धुंआं करो....


    बहुत खूब ... क्या बात है
    दीपावली पर्व का बहुत अच्छा खाका खींचा है
    बस गुरुदेव कुछ कमी सी है
    'तीन पत्ती' या 'कट पत्ती' के साथ मदिरा की भी
    झलक होती तो रौशनी का पर्व कम्प्लीट हो जाता

    दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  3. हर फिक्र को धुएं में उड़ाने की अदा....समय पर चोट करती कविता...बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  4. सब धुंआ ही किये जा रहे हैं लोग!!

    सुख औ’ समृद्धि आपके अंगना झिलमिलाएँ,
    दीपक अमन के चारों दिशाओं में जगमगाएँ
    खुशियाँ आपके द्वार पर आकर खुशी मनाएँ..
    दीपावली पर्व की आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!

    -समीर लाल ’समीर’

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढिया पैरोडी की है । यही तो हो रहा है ।
    सब धुआं करो ।

    अब असली कविता भी पढने को मन करता है ।

    हमारी तरफ़ से बिना धुआं की शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  6. दीपावली में आपके दीपों की पंक्तिया
    खूब जगमगाए ..बुराइयों को नष्ट करे ,
    अज्ञान के अँधेरे दूर करे !
    दीपावली की असंख्य शुभ कामनाये !!!

    जवाब देंहटाएं
  7. लोगों को दमा करो
    चाहे अस्थमा करो
    कानों को फ़ाड़ो बम से
    अमन प दावा करो


    हमारी तरफ़ से बिना धुआं की शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  8. बात आपने ठीक ही लिखी है, प्रकाश भाई पर यह पैरोडी मैंने कोई बहुत गंभीर मूड में नहीं लिखी। ‘तीन पत्ती’ या ‘कट पत्ती’ तो ठीक है पर मदिरा शायद इस त्यौहार पर सीधे-सीधे अलाउ नहीं है जैसे होली पर है। वो बात अलग कि है कि अपने यहां परंपरा के हाथीदांत-प्रबंधन में ‘घुसघुसाकर’-छुपछुपाकर’ सब कुछ अलाउ रहता है। व्यवहार में तो ‘दरी के नीचे’ वाली परंपरा ही मान्य और कामयाब है, आपको भी पता है और मुझे भी।
    आप आते हैं तो अच्छा लगता है।

    जवाब देंहटाएं
  9. "...ठूंसो-ठांसो, ठां करो


    सुबह फ़िर हवा करो


    और फ़िर दवा करो

    ..."


    क्या बात है. जबरदस्त.

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह बहुत सही. मज़ा आ गया.
    दीपावली की शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  11. यह दिया है ज्ञान का, जलता रहेगा।
    युग सदा विज्ञान का, चलता रहेगा।।
    रोशनी से इस धरा को जगमगाएँ!
    दीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!

    जवाब देंहटाएं
  12. इस दिवाली में बहुत करार व्यंग लिखा है ...... पर सच लिखा है ........ मुझे तो लगता है इस बात को सीरियसली लेना चाहिए

    आपको और आपके परिवार को दिवाली की शुभकामनाएं ........

    जवाब देंहटाएं
  13. शुभकामनाओं सहित
    देवी नांगरानी

    जवाब देंहटाएं
  14. bhai sahab hum aap mil ke dua kare kee yee sab ab kabhi na dhua kare.umda hai
    www.jungkalamki.blogspot.com
    vivek mishra

    जवाब देंहटाएं
  15. बहुत अच्‍छी पैरोडी है. बधाई.
    साथ ही दीप पर्व की अनेक शुभकामनाएं ..

    जवाब देंहटाएं
  16. Ati sundar...

    कोई पुकार रहा था खुली फ़िज़ाओं से
    नज़र उठाई तो चारो तरफ़ हिसार मिला
    ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
    जो आदमी भी मिला बनके इश्तहार मिला

    जवाब देंहटाएं
  17. aapka salaam mila mujhe. laga anek salaamo me se ek salam yah bhi hae kintu jab aapka blog dekha aur aapka lekhan padha to pata chala ki vo salam jo aapne bheja tha vo ek payam tha mere liye. mujhe mahsoos ho raha hai ki blog ki is mahanadi me mai abhi ek boond bhi nahi . kripya mera margdarshan karte rahe .aapki kavita "yaaron sab dhuaan karo vyangya ki parakastha hai. paryavaran par isse achha, sateek aur asardaar kavita maine aaj tak nahi padhi thi. yaad rakhiye duniya ki mahantam rachnaaen halke mood me hi likhi gayee thi. bhartendu ko andher nagari likhne me sirf ek raat ka samay laga tha.

    जवाब देंहटाएं
  18. Sanjay bhai kavita bahut achhi ban padi hai badhaayi sweekaar karein...

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

Protected by Copyscape plagiarism checker - duplicate content and unique article detection software.

ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

#girls #rape #poetry #poem #verse # लड़कियां # बलात्कार # कविता # कविता #शायरी (1) अंतर्द्वंद (1) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (1) अंधविश्वास (1) अकेला (3) अनुसरण (2) अन्याय (1) अफ़वाह (1) अफवाहें (1) अर्थ (1) असमंजस (2) असलियत (1) अस्पताल (1) अहिंसा (3) आंदोलन (4) आकाश (1) आज़ाद (1) आतंकवाद (2) आत्म-कथा (2) आत्मकथा (1) आत्मविश्वास (2) आत्मविश्वास की कमी (1) आध्यात्मिकता (1) आभास (1) आरक्षण (3) आवारग़ी (1) इंटरनेट की नयी नैतिकता (1) इंटरनेट पर साहित्य की चोरी (2) इंसान (4) इतिहास (2) इमेज (1) ईक़िताब (1) ईमानदार (1) ईमानदारी (2) ईमेल (1) ईश्वर (5) उत्कंठा (2) उत्तर भारतीय (1) उदयप्रकाश (1) उपाय (1) उर्दू (1) उल्टा चोर कोतवाल को डांटे (1) ऊंचा (1) ऊब (1) एक गेंद करोड़ों पागल (1) एकतरफ़ा रिश्ते (1) ऐंवेई (2) ऐण्टी का प्रो (1) औरत (2) औरत क्या करे (3) औरत क्या करे ? (3) कचरा (1) कट्टरपंथ (2) कट्टरपंथी (1) कट्टरमुल्लापंथी (1) कठपुतली (1) कन्फ्यूज़न (1) कमज़ोर (1) कम्युनिज़्म (1) कर्मकांड (1) कविता (68) कशमकश (2) क़ागज़ (1) क़ाग़ज़ (1) कार्टून (3) काव्य (5) क़िताब (1) कुंठा (1) कुण्ठा (1) क्रांति (1) क्रिकेट (2) ख़ज़ाना (1) खामख्वाह (2) ख़ाली (1) खीज (1) खेल (2) गज़ल (5) ग़जल (1) ग़ज़ल (28) ग़रीबी (1) गांधीजी (1) गाना (7) गाय (2) ग़ायब (1) गीत (7) गुंडे (1) गौ दूध (1) चमत्कार (2) चरित्र (4) चलती-फिरती लाशें (1) चांद (2) चालाक़ियां (1) चालू (1) चिंतन (2) चिंता (1) चिकित्सा-व्यवस्था (1) चुनाव (1) चुहल (2) चोरी और सीनाज़ोरी (1) छंद (1) छप्पर फाड़ के (1) छोटा कमरा बड़ी खिड़कियां (3) छोटापन (1) छोटी कहानी (1) छोटी बहर (1) जड़बुद्धि (1) ज़बरदस्ती के रिश्ते (1) जयंती (1) ज़हर (1) जागरण (1) जागरुकता (1) जाति (1) जातिवाद (2) जानवर (1) ज़िंदगी (1) जीवन (1) ज्ञान (1) झूठ (3) झूठे (1) टॉफ़ी (1) ट्रॉल (1) ठग (1) डर (4) डायरी (2) डीसैक्सुअलाइजेशन (1) ड्रामा (1) ढिठाई (2) ढोंगी (1) तंज (1) तंज़ (10) तमाशा़ (1) तर्क (2) तवारीख़ (1) तसलीमा नसरीन (1) ताज़ा-बासी (1) तालियां (1) तुक (1) तोते (1) दबाव (1) दमन (1) दयनीय (1) दर्शक (1) दलित (1) दिमाग़ (1) दिमाग़ का इस्तेमाल (1) दिल की बात (1) दिल से (1) दिल से जीनेवाले (1) दिल-दिमाग़ (1) दिलवाले (1) दिशाहीनता (1) दुनिया (2) दुनियादारी (1) दूसरा पहलू (1) देश (2) देह और नैतिकता (6) दोबारा (1) दोमुंहापन (1) दोस्त (1) दोहरे मानदंड (3) दोहरे मानदण्ड (14) दोहा (1) दोहे (1) द्वंद (1) धर्म (1) धर्मग्रंथ (1) धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री (1) धर्मनिरपेक्षता (4) धारणा (1) धार्मिक वर्चस्ववादी (1) धोखेबाज़ (1) नकारात्मकता (1) नक्कारखाने में तूती (1) नज़रिया (1) नज़्म (4) नज़्मनुमा (1) नफरत की राजनीति (1) नया (3) नया-पुराना (1) नाटक (2) नाथूराम (1) नाथूराम गोडसे (1) नाम (1) नारा (1) नास्तिक (6) नास्तिकता (2) निरपेक्षता (1) निराकार (3) निष्पक्षता (1) नींद (1) न्याय (1) पक्ष (1) पड़़ोसी (1) पद्य (3) परंपरा (5) परतंत्र आदमी (1) परिवर्तन (4) पशु (1) पहेली (3) पाखंड (8) पाखंडी (1) पाखण्ड (6) पागलपन (1) पिताजी (1) पुण्यतिथि (1) पुरस्कार (2) पुराना (1) पेपर (1) पैंतरेबाज़ी (1) पोल (1) प्रकाशक (1) प्रगतिशीलता (2) प्रतिष्ठा (1) प्रयोग (1) प्रायोजित (1) प्रेम (2) प्रेरणा (2) प्रोत्साहन (2) फंदा (1) फ़क्कड़ी (1) फालतू (1) फ़िल्मी गाना (1) फ़ेसबुक (1) फ़ेसबुक-प्रेम (1) फैज़ अहमद फैज़्ा (1) फ़ैन (1) फ़ॉलोअर (1) बंद करो पुरस्कार (2) बच्चन (1) बच्चा (1) बच्चे (1) बजरंगी (1) बड़ा (2) बड़े (1) बदमाशी (1) बदलाव (4) बयान (1) बहस (15) बहुरुपिए (1) बात (1) बासी (1) बिजूके (1) बिहारी (1) बेईमान (2) बेईमानी (2) बेशर्मी (2) बेशर्मी मोर्चा (1) बेहोश (1) ब्लाॅग का थोड़ा-सा और लोकतंत्रीकरण (3) ब्लैकमेल (1) भक्त (2) भगवान (2) भांड (1) भारत का चरित्र (1) भारत का भविष्य (1) भावनाएं और ठेस (1) भाषणबाज़ (1) भीड़ (5) भ्रष्ट समाज (1) भ्रष्टाचार (5) मंज़िल (1) मज़ाक़ (1) मनोरोग (1) मनोविज्ञान (5) ममता (1) मर्दानगी (1) मशीन (1) महात्मा गांधी (3) महानता (1) महापुरुष (1) महापुरुषों के दिवस (1) मां (2) मातम (1) माता (1) मानवता (1) मान्यता (1) मायना (1) मासूमियत (1) मिल-जुलके (1) मीडिया का माफ़िया (1) मुर्दा (1) मूर्खता (3) मूल्य (1) मेरिट (2) मौक़ापरस्त (2) मौक़ापरस्ती (1) मौलिकता (1) युवा (1) योग्यता (1) रंगबदलू (1) रचनात्मकता (1) रद्दी (1) रस (1) रहस्य (2) राज़ (2) राजनीति (5) राजेंद्र यादव (1) राजेश लाखोरकर (1) रात (1) राष्ट्र-प्रेम (3) राष्ट्रप्रेम (1) रास्ता (1) रिश्ता और राजनीति (1) रुढ़ि (1) रुढ़िवाद (1) रुढ़िवादी (1) लघु व्यंग्य (1) लघुकथा (10) लघुव्यंग्य (4) लालच (1) लेखक (1) लोग क्या कहेंगे (1) वात्सल्य (1) वामपंथ (1) विचार की चोरी (1) विज्ञापन (1) विवेक (1) विश्वगुरु (1) वेलेंटाइन डे (1) वैलेंटाइन डे (1) व्यंग्य (87) व्यंग्यकथा (1) व्यंग्यचित्र (1) व्याख्यान (1) शब्द और शोषण (1) शरद जोशी (1) शराब (1) शातिर (2) शायद कोई समझे (1) शायरी (55) शायरी ग़ज़ल (1) शेर शायर (1) शेरनी का दूध (1) संगीत (2) संघर्ष (1) संजय ग्रोवर (3) संजयग्रोवर (1) संदिग्ध (1) संपादक (1) संस्थान (1) संस्मरण (2) सकारात्मकता (1) सच (4) सड़क (1) सपना (1) समझ (2) समाज (6) समाज की मसाज (37) सर्वे (1) सवाल (2) सवालचंद के चंद सवाल (9) सांप्रदायिकता (5) साकार (1) साजिश (1) साभार (3) साहस (1) साहित्य (1) साहित्य की दुर्दशा (6) साहित्य में आतंकवाद (18) सीज़ोफ़्रीनिया (1) स्त्री-विमर्श के आस-पास (18) स्लट वॉक (1) स्वतंत्र (1) हमारे डॉक्टर (1) हयात (1) हल (1) हास्य (4) हास्यास्पद (1) हिंदी (1) हिंदी दिवस (1) हिंदी साहित्य में भीड/भेड़वाद (2) हिंदी साहित्य में भीड़/भेड़वाद (5) हिंसा (2) हिन्दुस्तानी (1) हिन्दुस्तानी चुनाव (1) हिम्मत (1) हुक्मरान (1) होलियाना हरकतें (2) active deadbodies (1) alone (1) ancestors (1) animal (1) anniversary (1) applause (1) atheism (1) audience (1) author (1) autobiography (1) awards (1) awareness (1) big (2) Blackmail (1) book (1) buffoon (1) chameleon (1) character (2) child (2) comedy (1) communism (1) conflict (1) confusion (1) conspiracy (1) contemplation (1) corpse (1) Corrupt Society (1) country (1) courage (2) cow (1) cricket (1) crowd (3) cunning (1) dead body (1) decency in language but fraudulence of behavior (1) devotee (1) devotees (1) dishonest (1) dishonesty (2) Doha (1) drama (3) dreams (1) ebook (1) Editor (1) elderly (1) experiment (1) Facebook (1) fan (1) fear (1) forced relationships (1) formless (1) formless god (1) friends (1) funny (1) funny relationship (1) gandhiji (1) ghazal (20) god (1) gods of atheists (1) goons (1) great (1) greatness (1) harmony (1) highh (1) hindi literature (4) Hindi Satire (11) history (2) history satire (1) hollow (1) honesty (1) human-being (1) humanity (1) humor (1) Humour (3) hypocrisy (4) hypocritical (2) in the name of freedom of expression (1) injustice (1) inner conflict (1) innocence (1) innovation (1) institutions (1) IPL (1) jokes (1) justice (1) Legends day (1) lie (3) life (1) literature (1) logic (1) Loneliness (1) lonely (1) love (1) lyrics (4) machine (1) master (1) meaning (1) media (1) mob (3) moon (2) mother (1) movements (1) music (2) name (1) neighbors (1) night (1) non-violence (1) old (1) one-way relationships (1) opportunist (1) opportunistic (1) oppotunism (1) oppressed (1) paper (2) parrots (1) pathetic (1) pawns (1) perspective (1) plagiarism (1) poem (12) poetry (29) poison (1) Politics (1) poverty (1) pressure (1) prestige (1) propaganda (1) publisher (1) puppets (1) quarrel (1) radicalism (1) radio (1) Rajesh Lakhorkar (1) rationality (1) reality (1) rituals (1) royalty (1) rumors (1) sanctimonious (1) Sanjay Grover (2) SanjayGrover (1) satire (30) schizophrenia (1) secret (1) secrets (1) sectarianism (1) senseless (1) shayari (7) short story (6) shortage (1) sky (1) sleep (1) slogan (1) song (10) speeches (1) sponsored (1) spoon (1) statements (1) Surendra Mohan Pathak (1) survival (1) The father (1) The gurus of world (1) thugs (1) tradition (3) trap (1) trash (1) tricks (1) troll (1) truth (3) ultra-calculative (1) unemployed (1) values (1) verse (6) vicious (1) violence (1) virtual (1) weak (1) weeds (1) woman (2) world (2) world cup (1)