No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009
मोहे अगला जनम ना दीजो ।
क्या करे इन हाथों का ? काट डाले इन्हें ? फेंक आए कहीं जाकर ? या हरदम ढंक कर रखे कहीं ? छुपा दे ! या किसी खुरदुरी चीज़ पर तब तक रगड़ता रहे जब तक दूसरे लड़कों की तरह मर्दाने, खुरदुरे, सख्त या गंठीले ना हो जाएं। तनहाई के छोटे से छोटे वक्फ़े में भी ये हीन भावनाएं, ये अपराध-बोध सरल का पीछा नहीं छोड़ते। किसी से हाथ मिलाने से भी डरता है, बचता है सरल। बीच-बीच में सुनने को मिल जो जाता है- ‘अरे यार, तुम्हारे हाथ तो लड़कियों से भी ज़्यादा मुलायम हैं।’'अगर रात अंधेरे में तेरा चेहरा देखे बगैर कोई तुझसे हाथ मिलाए तो यही समझेगा किसी लड़की का हाथ पकड़ लिया है।'
तिस पर दुबला-पतला-पीला शरीर। शर्मीला स्वभाव। तरह-तरह के फोबिया। ज़रा कुछ खट्टा या तला हुआ खाले तो खांसी, ज़ुकाम, पेटदर्द । महीने में 15 दिन बिस्तर पर गुज़रते हैं। धैर्य नाम की चीज़ से सरल का कोई वास्ता है नहीं। लोग उसकी चुप्पी और अवसाद को ही उसका धैर्य समझ लेते हैं तो उसका क्या कसूर। अशांति का महासागर ठाठें मारता रहता है सरल की छोटी-सी खोपड़ी में। बिस्तर में रहता है तो तरह-तरह की अच्छी बुरी कल्पनाएं और फंतासियां भी साथ रहती ही हैं।
कैसी-कैसी कल्पनाएं हैं सरल की ! एक ऐसी पोशाक बनवाए जिसमें से उसकी तो एक उंगली तक न दिखे पर वह सबको समूचा देख सके। कोई ऐसी कार मिल जाए उसे कि वह तो अंदर से सबको देखले पर उसकी किसी को झलक तक न मिले।
एक तो पड़ा-पड़ा जासूसी उपन्यास पढा करता है ऊपर से जाने किसने दे दिए हैं उसे ये फोबियाओं के उपहार। कहां से क्यों आ गया यह जानलेवा अपराध-बोघ! भयानक असुरक्षा की भावना। इस तरह लोगों से छुपकर, डरकर, शरमा कर अंधेरे कमरों की ओट में कैसे काटेगा वह अपनी ज़िंदगी !
(जारी)
(अगला पन्ना पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........
#girls #rape #poetry #poem #verse # लड़कियां # बलात्कार # कविता # कविता #शायरी
(1)
अंतर्द्वंद
(1)
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
(1)
अंधविश्वास
(1)
अकेला
(3)
अनुसरण
(2)
अन्याय
(1)
अफ़वाह
(1)
अफवाहें
(1)
अर्थ
(1)
असमंजस
(2)
असलियत
(1)
अस्पताल
(1)
अहिंसा
(3)
आंदोलन
(4)
आकाश
(1)
आज़ाद
(1)
आतंकवाद
(2)
आत्म-कथा
(2)
आत्मकथा
(1)
आत्मविश्वास
(2)
आत्मविश्वास की कमी
(1)
आध्यात्मिकता
(1)
आभास
(1)
आरक्षण
(3)
आवारग़ी
(1)
इंटरनेट की नयी नैतिकता
(1)
इंटरनेट पर साहित्य की चोरी
(2)
इंसान
(4)
इतिहास
(2)
इमेज
(1)
ईक़िताब
(1)
ईमानदार
(1)
ईमानदारी
(2)
ईमेल
(1)
ईश्वर
(5)
उत्कंठा
(2)
उत्तर भारतीय
(1)
उदयप्रकाश
(1)
उपाय
(1)
उर्दू
(1)
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
(1)
ऊंचा
(1)
ऊब
(1)
एक गेंद करोड़ों पागल
(1)
एकतरफ़ा रिश्ते
(1)
ऐंवेई
(2)
ऐण्टी का प्रो
(1)
औरत
(2)
औरत क्या करे
(3)
औरत क्या करे ?
(3)
कचरा
(1)
कट्टरपंथ
(2)
कट्टरपंथी
(1)
कट्टरमुल्लापंथी
(1)
कठपुतली
(1)
कन्फ्यूज़न
(1)
कमज़ोर
(1)
कम्युनिज़्म
(1)
कर्मकांड
(1)
कविता
(68)
कशमकश
(2)
क़ागज़
(1)
क़ाग़ज़
(1)
कार्टून
(3)
काव्य
(5)
क़िताब
(1)
कुंठा
(1)
कुण्ठा
(1)
क्रांति
(1)
क्रिकेट
(2)
ख़ज़ाना
(1)
खामख्वाह
(2)
ख़ाली
(1)
खीज
(1)
खेल
(2)
गज़ल
(5)
ग़जल
(1)
ग़ज़ल
(28)
ग़रीबी
(1)
गांधीजी
(1)
गाना
(7)
गाय
(2)
ग़ायब
(1)
गीत
(7)
गुंडे
(1)
गौ दूध
(1)
चमत्कार
(2)
चरित्र
(4)
चलती-फिरती लाशें
(1)
चांद
(2)
चालाक़ियां
(1)
चालू
(1)
चिंतन
(2)
चिंता
(1)
चिकित्सा-व्यवस्था
(1)
चुनाव
(1)
चुहल
(2)
चोरी और सीनाज़ोरी
(1)
छंद
(1)
छप्पर फाड़ के
(1)
छोटा कमरा बड़ी खिड़कियां
(3)
छोटापन
(1)
छोटी कहानी
(1)
छोटी बहर
(1)
जड़बुद्धि
(1)
ज़बरदस्ती के रिश्ते
(1)
जयंती
(1)
ज़हर
(1)
जागरण
(1)
जागरुकता
(1)
जाति
(1)
जातिवाद
(2)
जानवर
(1)
ज़िंदगी
(1)
जीवन
(1)
ज्ञान
(1)
झूठ
(3)
झूठे
(1)
टॉफ़ी
(1)
ट्रॉल
(1)
ठग
(1)
डर
(4)
डायरी
(2)
डीसैक्सुअलाइजेशन
(1)
ड्रामा
(1)
ढिठाई
(2)
ढोंगी
(1)
तंज
(1)
तंज़
(10)
तमाशा़
(1)
तर्क
(2)
तवारीख़
(1)
तसलीमा नसरीन
(1)
ताज़ा-बासी
(1)
तालियां
(1)
तुक
(1)
तोते
(1)
दबाव
(1)
दमन
(1)
दयनीय
(1)
दर्शक
(1)
दलित
(1)
दिमाग़
(1)
दिमाग़ का इस्तेमाल
(1)
दिल की बात
(1)
दिल से
(1)
दिल से जीनेवाले
(1)
दिल-दिमाग़
(1)
दिलवाले
(1)
दिशाहीनता
(1)
दुनिया
(2)
दुनियादारी
(1)
दूसरा पहलू
(1)
देश
(2)
देह और नैतिकता
(6)
दोबारा
(1)
दोमुंहापन
(1)
दोस्त
(1)
दोहरे मानदंड
(3)
दोहरे मानदण्ड
(14)
दोहा
(1)
दोहे
(1)
द्वंद
(1)
धर्म
(1)
धर्मग्रंथ
(1)
धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री
(1)
धर्मनिरपेक्षता
(4)
धारणा
(1)
धार्मिक वर्चस्ववादी
(1)
धोखेबाज़
(1)
नकारात्मकता
(1)
नक्कारखाने में तूती
(1)
नज़रिया
(1)
नज़्म
(4)
नज़्मनुमा
(1)
नफरत की राजनीति
(1)
नया
(3)
नया-पुराना
(1)
नाटक
(2)
नाथूराम
(1)
नाथूराम गोडसे
(1)
नाम
(1)
नारा
(1)
नास्तिक
(6)
नास्तिकता
(2)
निरपेक्षता
(1)
निराकार
(3)
निष्पक्षता
(1)
नींद
(1)
न्याय
(1)
पक्ष
(1)
पड़़ोसी
(1)
पद्य
(3)
परंपरा
(5)
परतंत्र आदमी
(1)
परिवर्तन
(4)
पशु
(1)
पहेली
(3)
पाखंड
(8)
पाखंडी
(1)
पाखण्ड
(6)
पागलपन
(1)
पिताजी
(1)
पुण्यतिथि
(1)
पुरस्कार
(2)
पुराना
(1)
पेपर
(1)
पैंतरेबाज़ी
(1)
पोल
(1)
प्रकाशक
(1)
प्रगतिशीलता
(2)
प्रतिष्ठा
(1)
प्रयोग
(1)
प्रायोजित
(1)
प्रेम
(2)
प्रेरणा
(2)
प्रोत्साहन
(2)
फंदा
(1)
फ़क्कड़ी
(1)
फालतू
(1)
फ़िल्मी गाना
(1)
फ़ेसबुक
(1)
फ़ेसबुक-प्रेम
(1)
फैज़ अहमद फैज़्ा
(1)
फ़ैन
(1)
फ़ॉलोअर
(1)
बंद करो पुरस्कार
(2)
बच्चन
(1)
बच्चा
(1)
बच्चे
(1)
बजरंगी
(1)
बड़ा
(2)
बड़े
(1)
बदमाशी
(1)
बदलाव
(4)
बयान
(1)
बहस
(15)
बहुरुपिए
(1)
बात
(1)
बासी
(1)
बिजूके
(1)
बिहारी
(1)
बेईमान
(2)
बेईमानी
(2)
बेशर्मी
(2)
बेशर्मी मोर्चा
(1)
बेहोश
(1)
ब्लाॅग का थोड़ा-सा और लोकतंत्रीकरण
(3)
ब्लैकमेल
(1)
भक्त
(2)
भगवान
(2)
भांड
(1)
भारत का चरित्र
(1)
भारत का भविष्य
(1)
भावनाएं और ठेस
(1)
भाषणबाज़
(1)
भीड़
(5)
भ्रष्ट समाज
(1)
भ्रष्टाचार
(5)
मंज़िल
(1)
मज़ाक़
(1)
मनोरोग
(1)
मनोविज्ञान
(5)
ममता
(1)
मर्दानगी
(1)
मशीन
(1)
महात्मा गांधी
(3)
महानता
(1)
महापुरुष
(1)
महापुरुषों के दिवस
(1)
मां
(2)
मातम
(1)
माता
(1)
मानवता
(1)
मान्यता
(1)
मायना
(1)
मासूमियत
(1)
मिल-जुलके
(1)
मीडिया का माफ़िया
(1)
मुर्दा
(1)
मूर्खता
(3)
मूल्य
(1)
मेरिट
(2)
मौक़ापरस्त
(2)
मौक़ापरस्ती
(1)
मौलिकता
(1)
युवा
(1)
योग्यता
(1)
रंगबदलू
(1)
रचनात्मकता
(1)
रद्दी
(1)
रस
(1)
रहस्य
(2)
राज़
(2)
राजनीति
(5)
राजेंद्र यादव
(1)
राजेश लाखोरकर
(1)
रात
(1)
राष्ट्र-प्रेम
(3)
राष्ट्रप्रेम
(1)
रास्ता
(1)
रिश्ता और राजनीति
(1)
रुढ़ि
(1)
रुढ़िवाद
(1)
रुढ़िवादी
(1)
लघु व्यंग्य
(1)
लघुकथा
(10)
लघुव्यंग्य
(4)
लालच
(1)
लेखक
(1)
लोग क्या कहेंगे
(1)
वात्सल्य
(1)
वामपंथ
(1)
विचार की चोरी
(1)
विज्ञापन
(1)
विवेक
(1)
विश्वगुरु
(1)
वेलेंटाइन डे
(1)
वैलेंटाइन डे
(1)
व्यंग्य
(87)
व्यंग्यकथा
(1)
व्यंग्यचित्र
(1)
व्याख्यान
(1)
शब्द और शोषण
(1)
शरद जोशी
(1)
शराब
(1)
शातिर
(2)
शायद कोई समझे
(1)
शायरी
(55)
शायरी ग़ज़ल
(1)
शेर शायर
(1)
शेरनी का दूध
(1)
संगीत
(2)
संघर्ष
(1)
संजय ग्रोवर
(3)
संजयग्रोवर
(1)
संदिग्ध
(1)
संपादक
(1)
संस्थान
(1)
संस्मरण
(2)
सकारात्मकता
(1)
सच
(4)
सड़क
(1)
सपना
(1)
समझ
(2)
समाज
(6)
समाज की मसाज
(37)
सर्वे
(1)
सवाल
(2)
सवालचंद के चंद सवाल
(9)
सांप्रदायिकता
(5)
साकार
(1)
साजिश
(1)
साभार
(3)
साहस
(1)
साहित्य
(1)
साहित्य की दुर्दशा
(6)
साहित्य में आतंकवाद
(18)
सीज़ोफ़्रीनिया
(1)
स्त्री-विमर्श के आस-पास
(18)
स्लट वॉक
(1)
स्वतंत्र
(1)
हमारे डॉक्टर
(1)
हयात
(1)
हल
(1)
हास्य
(4)
हास्यास्पद
(1)
हिंदी
(1)
हिंदी दिवस
(1)
हिंदी साहित्य में भीड/भेड़वाद
(2)
हिंदी साहित्य में भीड़/भेड़वाद
(5)
हिंसा
(2)
हिन्दुस्तानी
(1)
हिन्दुस्तानी चुनाव
(1)
हिम्मत
(1)
हुक्मरान
(1)
होलियाना हरकतें
(2)
active deadbodies
(1)
alone
(1)
ancestors
(1)
animal
(1)
anniversary
(1)
applause
(1)
atheism
(1)
audience
(1)
author
(1)
autobiography
(1)
awards
(1)
awareness
(1)
big
(2)
Blackmail
(1)
book
(1)
buffoon
(1)
chameleon
(1)
character
(2)
child
(2)
comedy
(1)
communism
(1)
conflict
(1)
confusion
(1)
conspiracy
(1)
contemplation
(1)
corpse
(1)
Corrupt Society
(1)
country
(1)
courage
(2)
cow
(1)
cricket
(1)
crowd
(3)
cunning
(1)
dead body
(1)
decency in language but fraudulence of behavior
(1)
devotee
(1)
devotees
(1)
dishonest
(1)
dishonesty
(2)
Doha
(1)
drama
(3)
dreams
(1)
ebook
(1)
Editor
(1)
elderly
(1)
experiment
(1)
Facebook
(1)
fan
(1)
fear
(1)
forced relationships
(1)
formless
(1)
formless god
(1)
friends
(1)
funny
(1)
funny relationship
(1)
gandhiji
(1)
ghazal
(20)
god
(1)
gods of atheists
(1)
goons
(1)
great
(1)
greatness
(1)
harmony
(1)
highh
(1)
hindi literature
(4)
Hindi Satire
(11)
history
(2)
history satire
(1)
hollow
(1)
honesty
(1)
human-being
(1)
humanity
(1)
humor
(1)
Humour
(3)
hypocrisy
(4)
hypocritical
(2)
in the name of freedom of expression
(1)
injustice
(1)
inner conflict
(1)
innocence
(1)
innovation
(1)
institutions
(1)
IPL
(1)
jokes
(1)
justice
(1)
Legends day
(1)
lie
(3)
life
(1)
literature
(1)
logic
(1)
Loneliness
(1)
lonely
(1)
love
(1)
lyrics
(4)
machine
(1)
master
(1)
meaning
(1)
media
(1)
mob
(3)
moon
(2)
mother
(1)
movements
(1)
music
(2)
name
(1)
neighbors
(1)
night
(1)
non-violence
(1)
old
(1)
one-way relationships
(1)
opportunist
(1)
opportunistic
(1)
oppotunism
(1)
oppressed
(1)
paper
(2)
parrots
(1)
pathetic
(1)
pawns
(1)
perspective
(1)
plagiarism
(1)
poem
(12)
poetry
(29)
poison
(1)
Politics
(1)
poverty
(1)
pressure
(1)
prestige
(1)
propaganda
(1)
publisher
(1)
puppets
(1)
quarrel
(1)
radicalism
(1)
radio
(1)
Rajesh Lakhorkar
(1)
rationality
(1)
reality
(1)
rituals
(1)
royalty
(1)
rumors
(1)
sanctimonious
(1)
Sanjay Grover
(2)
SanjayGrover
(1)
satire
(30)
schizophrenia
(1)
secret
(1)
secrets
(1)
sectarianism
(1)
senseless
(1)
shayari
(7)
short story
(6)
shortage
(1)
sky
(1)
sleep
(1)
slogan
(1)
song
(10)
speeches
(1)
sponsored
(1)
spoon
(1)
statements
(1)
Surendra Mohan Pathak
(1)
survival
(1)
The father
(1)
The gurus of world
(1)
thugs
(1)
tradition
(3)
trap
(1)
trash
(1)
tricks
(1)
troll
(1)
truth
(3)
ultra-calculative
(1)
unemployed
(1)
values
(1)
verse
(6)
vicious
(1)
violence
(1)
virtual
(1)
weak
(1)
weeds
(1)
woman
(2)
world
(2)
world cup
(1)
interesting....
जवाब देंहटाएंरोचक!
जवाब देंहटाएंजाने कितनों की आह बयाँ होगी इस लेखमाला से।
जवाब देंहटाएं... जिन्दगी के सर्द रुखसारों को देखने, टटोलने और उकेरने की हिम्मत की है आप ने। प्रतीक्षा रहेगी।
मन के नीम अँधेरे कोने से उभरे शब्द,
जवाब देंहटाएंये कैसा बिम्ब बुनते हैं कि पढ़ता हूँ और फिर दोबारा पढ़ता हूँ.
रोचक लगा .. अगली कडी का इंतजार रहेगा !!
जवाब देंहटाएंAage jaanne ki chaah jaga di aapne...
जवाब देंहटाएंNeeraj
रोचक ..
जवाब देंहटाएंरोचक बिम्ब बुनते हैं आप.
जवाब देंहटाएंभयानक असुरक्षा की भावना। ...ati bhayanak hoti hai ...!
जवाब देंहटाएंDilchasp !!
जवाब देंहटाएंdaayri ke panne sanjida hain
जवाब देंहटाएंये भय ये दुविधा , ये घुटन भरी जिन्दगी !
जवाब देंहटाएंये जिन्दगी ऐसी क्यों है ! मेरे साथ ही ऐसा क्यों है !
इस चरित्र की संवेदनाओं को बखूबी बयां किया है ।
अपनी डायरी में यही सब लिखता है वह ..
हर व्यक्ति जब मरता है, तब वह यही कहता है. किन्तु जन्म लेने के बाद फिर मटरगश्ती शुरू. फिर जब अंत काल तक रास्ता नहीं ढूढ़ पते हैं, तभी उसे ग्लानि के कारण दूसरा जन्म लेना पड़ता है. फेल तुम होते हो, फिर इस दुनिया में रोने पीटने और शिकायत करने से क्या लाभ. कौन सुनने वाला है. जैसी तुम्हारी अदा है, तुम सुनाते रहो, और खुश हो लो. और जब सुनाते सुनाते थक जाओगे और मरोगे तब दुबारा जन्म नहीं होगा. क्योंकि तब तुम्हे अकल आ जायेगी.
जवाब देंहटाएंश्री कृष्ण
नकली सभ्यता से बच के रहना ही
जवाब देंहटाएंठीक है !आपने जरूरी सवाल
उठाये ! जागते रहो !
धन्यवाद !
ग्रोवर जी,आप ने जो चरित्र प्रस्तुत किया है वह एक कहानी का हिस्सा भी हो सकता है और जीवन चरित्र भी हो सकता है संभावनाओं भरे सरल के इस चरित्र को अभी रूप लेना है पड़ता रहूँगा और आप को राय भी दूंगा ,फ़िलहाल बधाई.
जवाब देंहटाएंआगे का पढ़कर कुछ कहूँगी
जवाब देंहटाएंआगे के पन्ने पढ़ कर ही पता चलेगा कि आखिर माजरा क्या है..
जवाब देंहटाएंकुछ ताजा कुछ बासी कल्पनाएं हमारे लिए एकदम ताजा ही हैं। इन्हें हमारे साथ बांटने के लिए आपका आभार।
जवाब देंहटाएं------------------
हाजिर है एक आसान सी पक्षी पहेली।
भारतीय न्यूक्लिय प्रोग्राम के जनक डा0 भाभा।
गजब शुरुआत ! वाकया बहुतों का है ।
जवाब देंहटाएंआगत प्रतीक्षित । आभार ।
संजय जी मेरे ब्लॉग पर आने और इतनी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार
जवाब देंहटाएंआपके लेख में नायक है तो सरल पर जटिलतायों के साथ अवतरित हुआ है आगे जानने की उत्कंठा है
रचना दीक्षित
bhai sahab mai phir blog par aa gya hoon .please seee
जवाब देंहटाएंजब आगाज ये है...रोचक!!
जवाब देंहटाएं29th अक्तूबर से लेकर 9th नवम्बर तक का अरसा चुप्पी के लिए काफी है...अब आगे का जारी कब करेंगे...सब्र का बांध सरकारी इन्जिनिअर्स द्वारा बनाया हुआ है...बस अब टूटा की तब टूटा ही समझिये...
जवाब देंहटाएंनीरज
कलाकारों की उंगलियां कोमल ही होती हैं। कई कलमकारों ने कोमल उंगलियों से सशक्त रचनाएं गढ़ी हैं, जैसे यह रचना है।
जवाब देंहटाएंbehad umda lekhan
जवाब देंहटाएंkafi rochak lag raha hai ..........agali kadi ka intzaar.
जवाब देंहटाएं