सोमवार, 28 सितंबर 2009

मौलिकता ससुरी होती ही है अनगढ़


मौलिकता तो वो है मेरे दोस्त

जिसे जानकर तुम्हारे छक्के छूट जाएं

हवा ख़राब हो जाए

सारी दुनिया से तुम्हारा विश्वास उठ जाए



अपनी सारी ज़िन्दगी पर

दोबारा सोचने को मजबूर हो जाओ तुम



जिसे सुनते ही

पहले-पहल यही कहो तुम

कुतर्क करता है साला

अनगढ़ है इसका सारा सृजन



यहाँ तुम बिल्कुल सही हो मेरे दोस्त

सारे गढ़े गए को ध्वस्त करके ही

फ़ूटते हैं मौलिकता के अंकुर

जो दलीलें तुमने न कभी पढ़ी न सुनी

वही तुम्हे लगती हैं कुतर्क

( पर इसका क्या करें कि ज़्यादातर वही होती हैं मौलिक

और तर्क कुतर्क की परिभाषाएं आज तक नहीं बन पायीं )



दुनिया में

बिलकुल दुनिया की ही तरह

होकर और रहकर भी

दुनिया से अलग क्यों दिखना चाहते हो मेरे दोस्त

क्यों ओढ़ना चाहते हो सम्मानों की शाल

क्या छुपा लेगी तुम्हारे पुरस्कारों की ढाल

इनके बिना ख़ुदको निर्वस्त्र और अविश्वसनीय

क्यों समझते हो मेरे दोस्त



अपने लिए गढ़े गए सुरक्षित कोने में

यह कौन-सी बदबू है

जो तुम्हे तुम्हारी उपलब्धियों का मज़ा नहीं लेने देती



गढ़े गए मूल्य

गढी गयी साजिशें

गढ़ी गयी सफ़लता की कसौटियां

गढ़ी गयी मंज़िल की परिकल्पनाएं

गढ़ा गया सामाजिक ढांचा

गढ़े गए अच्छाई और बुराई के मानक

और गढ़े हुए तुम

आखि़र समझोगे भी कैसे

अपनी बेचैनी को

और इसकी अविश्वसनीयता को



पहले अनगढ़ तो बनो मेरे दोस्त

पर मुसीबत तो यह है कि

अनगढ़ तो बना भी नहीं जा सकता

और बनाया भी नहीं जा सकता

क्योंकि मौलिकता बहुत सारी

कथित सुंदर चीज़ों के ढेर से नहीं बनती

बल्कि

बहुत सारी असुंदर और गढ़ी गयी चीज़ों के

न होने से होती है



-संजय ग्रोवर



(‘युद्धरत आम आदमी’ में प्रकाशित)

रचना तिथि: 04-05-2007

21 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर भाव हैं।
    असत्य पर सत्य की जीत के पावन पर्व
    विजया-दशमी की आपको शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बेहतरीन भाव एवं अभिव्यक्ति, बधाई.

    विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
  3. सच में कहा है आपने "मौलिकता ससुरी होती ही है अनगढ़" ।
    बहुत हीं लाजवाब रचना । आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह..... वहुत खूब ...
    वहुत ही सुन्दर विचार है,अमूल्य......
    जब कभी सच को बिना किसी हेर-फेर के साथ कहा जाता है तो वह अमृत तुल्य हो जाता है

    जवाब देंहटाएं
  5. मौलिकता प्रायः अनगढ ही होती है । साथ ही अडगड भी । इन अर्थों में कि वह परम्परा के गढे गढाये खांचे में फ़िट नहीं होती । मौलिकता, मौलिकता के लिये नहीं होती । यह विकास की प्रक्रिया का एक साधन है ।

    आपकी बात सही है । मौलिकता विकास का पर्याय है ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी कविता सशक्त है क्योंकि इसने मुझे सोचने की सामग्री दी, मेरे दिलो-दिमाग मे उथल पुथल मचाई। मैं आपसे सहमत हूँ कि मौलिकता का एक पक्ष यह भी है जिसे आपने इस कविता में उतारा है, पर मौलिकता सदा ही अनगढ़ नहीं होती। कई बार तो उसका सहज प्राकृतिक रूप, गढ़े - तराशे रूप से कही बेहतर और चकित करने वाला होता है। सोचकर देखिएगा....
    शुभकामनाओं सहित,
    दीप्ति

    जवाब देंहटाएं
  7. संजय भाई कविता में आक्रोश और समझाइश का सामनजशय खूब हुआ है शब्द और भाव अपने ठिकाने पर है निम्न पंक्तियाँ अच्छी लगी...बधाई,
    दुनिया में

    बिलकुल दुनिया की ही तरह

    होकर और रहकर भी

    दुनिया से अलग क्यों दिखना चाहते हो मेरे दोस्त

    क्यों ओढ़ना चाहते हो सम्मानों की शाल

    क्या छुपा लेगी तुम्हारे पुरस्कारों की ढाल

    इनके बिना ख़ुदको निर्वस्त्र और अविश्वसनीय

    क्यों समझते हो मेरे दोस्त

    जवाब देंहटाएं
  8. maiN aapse bilkul sahmat huN दीप्ति ji. Magar vah roop bhi सहज प्राकृतिक hi hai jaisaki aapne bhi kaha. aati rahiye.

    जवाब देंहटाएं
  9. संजय जी !आपके ब्लॉग पर घुमने में आनन्द आया !
    काफी बेलोस ! बिंदास ! उन्मुक्त !
    हमारी शुभ कामनाये आपके साथ हैं !
    हमारे ब्लॉग पर भी डालें फेरा !!!

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत दिनों बाद आपके दर आया और मौलिकता का स्वाद पाया ....बहुत खूब ..आभार ...

    जवाब देंहटाएं
  11. कुल मिलाकर बड़ी कोम्प्लीकेटेड चीज है ये ससुरी मौलिकता

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत सुंदर कविता है ।

    मेरे भी मौलिकता को लेकर कुछ ऐसे ही भाव हैं ।

    मौलिकता पर कुछ हमने भी रचा है
    कभी हमारे दर पर आ कर देख जाइए

    http://gunjanugunj.blogspot.com

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  13. मेरे दोस्त मौलिकता का जन्म तब होता है जब आदमी अपने मूल व्यक्तित्व से कट जाय जो शायद कुछ ही लोग तक सीमित होता है.मौलिकता तलाशने से ज्यादा उचित है अपने मूल को उभारना

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  14. मौलिकता अनगढ़ होती है इसीलिये तो कई बार प्रभावित नही करती.

    जवाब देंहटाएं
  15. सच !
    मौलिकता ससुरी होती ही है अनगढ़
    वाह संजय जी वहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  16. क्योंकि मौलिकता बहुत सारी
    कथित सुंदर चीज़ों के ढेर से नहीं बनती
    बल्कि
    बहुत सारी असुंदर और गढ़ी गयी चीज़ों के
    न होने से होती है...


    शुक्रिया अनुराग जी का शुभचिंतक बनने के लिए ......!!

    लाजवाब पद्य रचना ....!!~

    इतना अच्छा लिखते हैं आज पता चला ......!!

    एक सशक्त और प्रभावशाली रचना के लिए बधाई ........!!

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  17. bahut hi sahi rachna hai bhai!
    Bhut gahraai hai soch me... sabdo ka sahi istmal kiya hai...
    bhadhai ho ...

    जवाब देंहटाएं
  18. meri bhi prashansaa sweekaar karen itani saaf aur sashakt kavitaa ke liye sanjay...

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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