ग़ज़ल
हिन्दुस्तान में हिन्दी जैसी उसकी हालत अपने घर में
जैसे शीशा देख रहा हो अपनी सूरत इक पत्थर में
अपने-अपने समय को देखो अपनी-अपनी घड़ी चलाओ
यारो धोखा खा जाओगे देखोगे गर घंटाघर में
अपने पुरखे नहीं रहे अब ऐसा कहना ठीक न होगा
हमने अकसर देखा उनको घुड़की देते उस बंदर में
देश का सौदा करने वाले सारे लोग नहीं इक जैसे
बेच रहे कुछ इसे थोक में बेच रहे हैं कुछ फुटकर में
मंज़िल भी थी आँख के आगे और इरादे भी थे पक्के
फिर भी भटक गया मन यारों रस्ते इतने मिले सफर में
-संजय ग्रोवर
No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
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जवाब देंहटाएंमंज़िल भी थी आँख के आगे और इरादे भी थे पक्के
जवाब देंहटाएंफिर भी भटक गया मन यारों रस्ते इतने मिले सफर में....
बेहतरीन ऐसा लगा कि कोई मेरी दास्ताँ सुना रहे हैं....आभार ...
बहुत गज़ब!!
जवाब देंहटाएंहिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मंज़िल भी थी आँख के आगे और इरादे भी थे पक्के
जवाब देंहटाएंफिर भी भटक गया मन यारों रस्ते इतने मिले सफर में
bahut sundar rachna...
बेहद खूबसूरत गजल । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder gajal hai dil ko chu gai......
जवाब देंहटाएं