1.
मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा
वो खुदाओं के शहर में आदमी बन कर रहा
ज़िन्दगी से दोस्ती का ये सिला उसको मिला
ज़िन्दगी भर दोस्तों में अजनबी बन कर रहा
उसकी दुनिया का अंधेरा सोच कर तो देखिए
वो जो अंधों की गली में रोशनी बन कर रहा
सनसनी के सौदेबाज़ों से लड़ा जो उम्र-भर
हश्र ये खुद एक दिन वो सनसनी बन कर रहा
एक अंधी दौड़ की अगुआई को बेचैन सब
जब तलक बीनाई थी मैं आखिरी बन कर रहा
2
या तो मैं सच कहता हूँ
या फिर चुप ही रहता हूँ
या तो मैं सच कहता हूँ
या फिर चुप ही रहता हूँ
डरते लोगों से डर कर
सहमा-सहमा रहता हूँ
सहमा-सहमा रहता हूँ
बहुत नहीं तैरा, लेकिन
खुश हूँ, कम ही बहता हूँ
खुश हूँ, कम ही बहता हूँ
बाहर दीवारें चुन कर
भीतर-भीतर ढहता हूँ
भीतर-भीतर ढहता हूँ
कुछ अनकही भी कह जाऊँ
इसीलिए सब सहता हूँ
इसीलिए सब सहता हूँ
३.
हक़ीकत में नहीं कुछ भी दिखा है
क़िताबों में मगर सब कुछ लिखा है
मुझे समझा के वो मज़हब का मतलब-
डर और लालच में आए दिन बिका है
जो रात और दिन पढ़ा करते हो पोथे
कभी उनका असर ख़ुदपर दिखा है !
जब हाथों से नहीं कुछ कर सका वो
तो बोला येही क़िस्मत में लिखा है
असल में रीढ़ ही उसकी नहीं है
वो सदियों से इसी फन पे टिका है
डर और लालच में आए दिन बिका है
जो रात और दिन पढ़ा करते हो पोथे
कभी उनका असर ख़ुदपर दिखा है !
जब हाथों से नहीं कुछ कर सका वो
तो बोला येही क़िस्मत में लिखा है
असल में रीढ़ ही उसकी नहीं है
वो सदियों से इसी फन पे टिका है
{फन=हुनर, फन=नाग का फन, फन=(फन=FUN)मज़ा
(बारी-बारी से तीनों अर्थों में पढ़ें।)
(बारी-बारी से तीनों अर्थों में पढ़ें।)
4.
समंदर सी आंखें उधर तौबा तौबा
इधर डूब जाने का डर तौबा तौबा
न कर ये, न कर वो, न कर तौबा तौबा
यूँ गुज़री है सारी उमर, तौबा तौबा
यूँ गुज़री है सारी उमर, तौबा तौबा
वो नज़रें बचाकर नज़र से हैं पीते
लगे ना किसी की नज़र, तौबा तौबा
लगे ना किसी की नज़र, तौबा तौबा
झुके थे वो जितना, हुआ नाम उतना
था घुटनों में उनका हुनर, तौबा तौबा
था घुटनों में उनका हुनर, तौबा तौबा
मैं टेढ़ी-सी दुनिया में सीधा खड़ा हँू
गो दुखने लगी है कमर, तौबा तौबा
गो दुखने लगी है कमर, तौबा तौबा
यूँ ज़ालिम ने सारे, चुराए हैं नारे
कि करने लगा है ग़दर तौबा तौबा
कि करने लगा है ग़दर तौबा तौबा
5.
कोई भी तयशुदा क़िस्सा नहीं हँू
किस्सी साजिश का मैं हिस्सा नहीं हँू
किसी की छाप अब मुझपर नहीं है
मैं ज़्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हँू
मैं ज़्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हँू
तुम्हारी और मेरी दोस्ती क्या
मुसीबत में, मैं ख़ुद अपना नहीं हँू
मुसीबत में, मैं ख़ुद अपना नहीं हँू
मुझे मत ढूंढना बाज़ार में तुम
किसी दुकान पर बिकता नहीं हँू
किसी दुकान पर बिकता नहीं हँू
मैं ज़िन्दा हँू मुसलसल यँू न देखो
किसी दीवार पर लटका नहीं हँू
किसी दीवार पर लटका नहीं हँू
मुझे देकर न कुछ तुम पा सकोगे
मैं खोटा हँू मगर सिक्का नहीं हँू
मैं खोटा हँू मगर सिक्का नहीं हँू
तुम्हे क्यंू अपने जैसा मैं बनाऊँ
यक़ीनन जब मैं ख़ुद तुमसा नहीं हँू
यक़ीनन जब मैं ख़ुद तुमसा नहीं हँू
लतीफ़ा भी चलेगा गर नया हो
मैं हर इक बात पर हंसता नहीं हँू
मैं हर इक बात पर हंसता नहीं हँू
ज़मीं मुझको भी अपना मानती है
कि मैं आकाश से टपका नहीं हँू
कि मैं आकाश से टपका नहीं हँू
हज़ारों साजिशें हैं रास्तों में
मैं थमता हूँ मगर रुकता नहीं हूँ
मैं थमता हूँ मगर रुकता नहीं हूँ
--संजय ग्रोवर
(अगली किसी पोस्ट में व्यंग्य ‘‘..राजेंद्र यादव......’’ की संदर्भ सहित व्याख्या.)
भाई संजय ग्रोवर जी
जवाब देंहटाएंएक दम ताज़ा हवा के झोंके-सी ग़ज़लें
.
सभी उम्दा हैं ,लेकिन पहली, तीसरी और पाँचवीं बहुत ही ज़्यादा पसन्द आईं
मुझे आपकी और ग़ज़लों की प्रतीक्षा रहेगी
द्विजेन्द्र द्विज
www.dwijendradwij.blogspot.com
BAHUT-BAHUT SHUKRIYA, DWIJ SAHEB..
जवाब देंहटाएंअच्छी गजलें हैं। कुछ शेरों ने प्रभावित किया। खास कर ये -
जवाब देंहटाएंउसकी दुनिया का अंधेरा सोच कर तो देखिए
वो जो अंधों की गली में रोशनी बन कर रहा
या तो मैं सच कहता हूँ
या फिर चुप ही रहता हूँ
जब हाथों से नहीं कुछ कर सका वो
तो बोला येही क़िस्मत में लिखा है
झुके थे वो जितना, हुआ नाम उतना
था घुटनों में उनका हुनर, तौबा तौबा
मुझे मत ढूंढना बाज़ार में तुम
किसी दुकान पर बिकता नहीं हूं
आपको पढना अच्छा
har gazal aapka mann ban baitha hai,bahut hi badhiyaa....in panktiyon ne mujhe moh liya,
जवाब देंहटाएंडरते लोगों से डर कर
सहमा-सहमा रहता हूँ
आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं संजय।
जवाब देंहटाएंमुझे मत ढूंढना बाज़ार में तुम
जवाब देंहटाएंकिसी दुकान पर बिकता नहीं हँू
क्या बात है ! बहुत खूब ! हमारे शहर में एक नामचीन शायर हैं - जनाब नवाज़ देवबंदी साहब! उनके सम्मान में एक कार्यक्रम आयोजित हुआ, मुख्य अतिथि थे मौ. आज़म खां (उन दिनों उनके नाम का सिक्का उ.प्र. में खूब चलता था) मंत्री जी ढाई घंटा तो लेट पधारे । भाषण दिये गये और शायर साहब को अल्टीमेटली जब माइक नसीब हुआ तो मंत्री जी की ’गाड़ी का टैम होगया’ और वह दरवाज़े की ओर बढ़े। नवाज़ देवबंदी साहब ने माइक से मंत्री जी को आवाज़ दी - "हुज़ूर, जाते - जाते एक शेर सुनते जाइये।" शेर था -
"बादशाहों की करें इंतज़ार,
इतनी फुरसत कहां फ़कीरों को !!"
आपकी उम्दा अभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई।
BAHUT KHUB, SINGHAL SAHEB.
जवाब देंहटाएंSHUKRIYA.
VISHNU BAIRAAGI JI,RASHMI PRABHA JI
जवाब देंहटाएंaur MANOSHI JI KA BHI SHUKRIYA.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी और मेरी दोस्ती क्या
जवाब देंहटाएंमुसीबत में, मैं ख़ुद अपना नहीं हँू
ye lines bahot achhi lagi...
Beautiful lines, you write so well!
जवाब देंहटाएंसंजय ग्रोवर साहब
जवाब देंहटाएंआप लिखते नहीं बस कमाल करते हैं !
एक पोस्ट में ही पाँच लाजवाब गजलें !
पता नहीं आप इजाजत देते कि नहीं
इसलिए बिना पूछे पहली.....दूसरी और
चौथी गजल डायरी में नोट कर ली मैंने !
गजलों के कई शेर ऐसे हैं कि बरबस
दिल वाह ,,,,वाह कह उठता है !
: -
ज़िन्दगी से दोस्ती का ये सिला उसको मिला
ज़िन्दगी भर दोस्तों में अजनबी बन कर रहा
उसकी दुनिया का अंधेरा सोच कर तो देखिए
वो जो अंधों की गली में रोशनी बन कर रहा
बहुत अच्छि ग़ज़लें हैं.
जवाब देंहटाएंबाहर दीवारें चुन कर
जवाब देंहटाएंभीतर-भीतर ढहता हूँ
वाह!
सबसे पहले तो देरी से आने के लिए माफ़ी चाहूंगी...मेरा ब्लोग्स पढने का कोई नियत तरीका नहीं होता है, कभी किसी ब्लॉग पर चली गई तो घंटों अटक गई, कभी एक दो पोस्ट्स पढने बैठी की कोई काम आ गया. नियमित लिखने की कोशिश तो करती हूँ, पढ़ना नहीं हो पाता. आपकी ये रचना पढ़ी थी पर सोचा कुछ और पढ़ लूँ फ़िर कमेन्ट लिखूंगी. यूँ तो हर शेर बहुत खूबसूरत है, पर पहला शेर लाजवाब है...खुदाओं के शहर में आदमी बन के रहना इतना आसान नहीं होता होगा.
जवाब देंहटाएंतुम्हें क्यूं अपना जैसा बनाऊं,यक़ीनन जब मैं ख़ुद तुमसा नहीं हूं।
जवाब देंहटाएंउम्दा शे"र , बेहतरीन ग़ज़लें । बधाई व धन्यवाद।