No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
वे जो स्कूल-कॉलेज में पढ़ाते भी हैं और स्टेशनरी भी चुराते हैं, जो बाढ़ और अकाल के नाम पर दफ़्तर में आई राशि ख़ुद खा जाते हैं, जो टैक्स नहीं देते, जो भरपूर ब्लैक-मनी होते हुए भी घर में हवा-पानी के लिए छोड़ी गई जगह में कमरे बना लेते हैं फिर शहर को कंक्रीट का जंगल भी बताकर कविताएं लिखते हैं, जो जंतर-मंतर और रामलीला ग्राउंड में आंदोलन करते हैं पर भ्रष्टाचार का मतलब तक नहीं समझते, जो पुरस्कार लेने के लिए बड़े-बड़े आदमियों की संस्तुतियां कराते हैं पर इमेज एक बेचारे आदमी की बनाए रखते हैं, जो जितने ज़्यादा और जितनी जल्दी छोटे काम करते हैं उतनी जल्दी बड़े आदमी बन जाते हैं, जो चोरी-छुपे यौन-संबंध बनाते हैं और साथ में बेबाक़ होने का श्रेय भी ले लेते हैं, जो दहेज जैसी बुराईओं को दहेजवाली शादियों में जाकर हटाना चाहते हैं, जो ख़ूब अच्छा लिखते और भाषण देते हैं पर उस लिखे या भाष्य के उनके जीवन में कोई चिन्ह तक दिखाई नहीं देते, जो पड़ोसी या टीचर का लिखा भाषण 115वीं बार पढ़ते हैं, जो लोगों को बिना मांगे भी रिश्वत ऑफ़र करते हैं, जो नंगे आदमी के दिवस पर सूट पहनते हैं, शराब न पीनेवाले का दिवस भरपूर शराब पीकर मनाते हैं, जो अहिंसावादी का दिवस लठैतों से लैस होकर मनाते हैं, फ़िल्में न देखनेवाले को फ़िल्म देखकर श्रद्धांजलि देते हैं, अनशन करनेवाले को भरपेट खाकर फिर उसका दिवस मनाकर डकार जाते हैं ....... आज का दिन उन्हीं के लिए है। वे सुबह से रात देर तक भाषण देंगे, महापुरुषों की कहानियां सुनाएंगे, बच्चों को लड्डू बांटेगे और फिर पिकनिक मनाने चले जाएंगे। और बाक़ी सारे दिन तो हैं ही उन्हीं के। मैं तो मरने से पहले ही मर जाऊं अगर ऐसे लोग मेरा कुछ मनाएं। भाषण ख़त्म हुआ। अब जाकर ऐश करो जैसे हर साल करते हो।
-संजय ग्रोवर
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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....