क्या आपने ट्रॉल को देखा है ?
तो उनके बारे में सुना तो होगा !
सुना है आजकल काफी मशहूर हो चले हैं।
कई सेलेब्रिटीं कहती रहतीं हैं-‘क्या बताऊं यार, मेरे पीछें तो
आजकल ट्रॉल पड़े हैं:(
कहने का मन होता है-‘फिर तो काफ़ी मशहूर हों आप!’
ट्रॉल बदतमीज़ी करते होंगे पर कई साल से मुल्क़ में जो वातावरण
बना है, ट्रॉल्स ही कई लोगों को हीरो/शहीद भी बनाते हैं।
कभी-कभी ट्रॉल्स के नाम भी दिलचस्प होते हैं, जैसे-‘आई लव यू’,
‘रोटी-रोज़ी’, ‘एक्स-वाई-ज़ेड’........
एक मित्र ने दिखाया, ‘देखो आजकल कितने लोग मुझे ट्रॉल कर रहे
हैं...........’
दूसरा मित्र ट्रॉल्स के नाम देखकर सोच में पड़ गया, बोला-‘सच बतईयो,
कहीं नाम बदल-बदलकर तू ख़ुद ही ख़ुदको ट्रॉल
तो नहीं कर लेता......’
बताइए कितना गड़बडझाला मचा दिया है इंटरनेट की दुनिया में ट्रॉल्स
ने।
लेकिन कइयों का कैरियर भी तो यहीं से चमकता है।
मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि हर मशहूर आदमी की मशहूरी में ट्रॉल्स
का योगदान होता है। पर कइयों के में होता भी होगा। तिकड़मबाज़ी से हम परहेज़ भी कहां करते
हैं।
मैं कल्पना करता हूं कि आप गाड़ी में जा रहें हैं। अगले ही स्टेशन
पर ट्रॉल करवाने का शौक़ीन एक जत्था, कोट-पैंट-टाई पहने, गाड़ी में घुस आता है, ट्रॉल के कुछ शौक़ीन खिड़कियों पर खड़े हैं।
‘ए भाई साहब, ए बहिनजी, ए मैडम, थोड़ा ट्रॉल करो न बाबा, टी आर
पी का सवाल है.....’
‘आजकल चैनल बहुत हो गए, भैया, काम करनेवाले भी बहुत हो गए, अपने
हिस्से में ज़्यादा ट्रॉल नहीं आता, मुन्नी, मैं क्या करुं ?’
‘यह बच्चा किसका है?’ खिड़की में से आवाज़ आती है, वहां भी ट्रॉल
करवाने के इच्छुक खड़े हैं, उन्हीं में से एक कह रहा है-‘बच्चे से थोड़ा सुस्सू ही करा
दो न आंटी, हम अपने हिसाब से पेश कर देंगे कि देखो बच्चे भी किस तरह से ट्रॉल करते
हैं, कितना सताते हैं अत्याचारी....’
‘लेकिन आपका सूट तो बिलकुल नया है,-आप कहते हैं,--‘इसपे सुस्सू
कैसे करा दें.......’
‘अरे बस, करा दो आंटी, नया सूट सिलवाया ही इसीलिए है।’
आजकल कई संस्थायें फ़ॉलोअर्स बेचती हैं, क्या पता ट्रॉल्स भी बिकते
हों ! सोचिए, आप आटा मल रहें हैं या पकौड़े तल रहे हैं कि कॉलबैल बजती है! आप जैसे-तैसे
दरवाज़ा खोलते हैं कि एक व्यक्ति कहता है-‘भाई साहब ट्रॉल्स ले लो, सस्ते लगा दूंगा।
बिलकुल सच्चे ट्रॉलों जैसे ट्रॉल करते हैं।’
‘काम ही सस्ता करते हैं, सस्ते तो बिकेंगे ही’-आप सोचते हैं।
मंगल बाज़ार लगा है, रात के ग्यारह-बारह बजे हैं। ट्रॉल्स् पड़े-खड़े
सड़ रहे हैं। ठेलीवाला कहता है-‘रात का बखत है, एक किलो ले लो, जितने बचे हैं सब डाल
दूंगा।’
कोई दोस्त आपसे मिलता है। उसके साथ एक और व्यक्ति है जिसका परिचय
वह यह कहकर आपसे कराता है-‘इनसे मिलिए, हमारे पुराने मित्र हैं, क्या ज़बरदस्त ट्रॉल
करते हैं, कई लोगों का कैरियर बनाया है इन्होंने।’
एक पुरानी परिचित महिला कहती है-‘मेरे बेटे की जॉब लग गई। आजकल
एक विशेष पद का सृजन किया गया है-‘ट्रॉल’, बड़े-बड़ों को ट्रॉल करेगा मेरा बेटा। छोटों
को ट्रॉल करके बड़ा बनाएगा।’
एक दिन आएगा जब लोग अपने बच्चों का नाम भी ऐसा ही रखेंगे-‘ये
मेरी लड़की ट्रॉली, और ये मेरी बुआ का लड़का ट्रालू। कित्ते प्यारे लगते हैं न!’
एक भिखारी किसीसे कहता है-‘अरे भीख नहीं देते तो थोड़ा ट्रॉल ही
कर दो !’
‘हट बे! हमारे पास फ़ालतू टाइम नहीं कि मुफ्त में लोगों को ट्रॉल
करतें फिरें’-जवाब मिलता है। पता चलता है कि भिखारी से कम तो ये भी नहीं है।
ट्रॉल के शौक़ीन लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही है। कोई उन्हें ट्रॉल
नहीं करता] इस नाराज़गी में उन्हानें लोगों को ट्रॉल करना शुरु कर दिया है।
-संजय ग्रोवर
21-05-2019
वर्तमान माहौल पर दिलचस्प और तीखा व्यंग्य । आभार ।
जवाब देंहटाएंBahut-bahut shukriya, Shastri ji.
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पक्ष-विपक्ष दोनों के लिए राजनीति का नया दौर शुरू - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंAapka bahut-bahut dhanywad, kumarendra ji.
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