ग़ज़ल
मैं अपने देश में रहा
मैं पशोपेश में रहा
सदा तक़लीफ़ में रहा
ज़रा आवेश में रहा
वही होगा मेरा रक़ीब
जो कई वेश में रहा
मैं क्यों ईमानदार हूं
बहुत वो तैश में रहा
न मैं अमीर में रहा
न ही दरवेश में रहा
-संजय ग्रोवर
15-03-2019
मैं अपने देश में रहा
मैं पशोपेश में रहा
सदा तक़लीफ़ में रहा
ज़रा आवेश में रहा
वही होगा मेरा रक़ीब
जो कई वेश में रहा
मैं क्यों ईमानदार हूं
बहुत वो तैश में रहा
न मैं अमीर में रहा
न ही दरवेश में रहा
-संजय ग्रोवर
15-03-2019
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-03-2019) को "पन्द्रह लाख कब आ रहे हैं" (चर्चा अंक-3277) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शामिल करने के लिए बहुत शुक्रिया.
हटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
iwillrocknow.com
बहुत शुक्रिया
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बुरा मानना हो तो खूब मानो, होली है तो है... ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंशामिल करने के लिए बहुत शुक्रिया.
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