‘क्या लाए ?’
‘जी, जो भी बन पड़ा ले आया हूं।’
‘गुड, देखो हमारे यहां अपना पक्ष चुनने की पूरी स्वतंत्रता है, चाहो तो इसे मेरी दायीं जेब में डाल दो, चाहो तो बायीं में।’
‘जी, मैं जानता हूं कि रास्ते अलग़-अलग़ हैं पर गंतव्य एक ही है।’
‘शाबाश! बाहर लोगों को बताना मत भूलना कि मुझे अपना पक्ष चुनने का पूरा मौक़ा दिया गया।’
‘जी मैं ज़रुर बताऊंगा जैसे आपने मुझे बताया।’
-संजय ग्रोवर
04-03-2015
‘जी, जो भी बन पड़ा ले आया हूं।’
‘गुड, देखो हमारे यहां अपना पक्ष चुनने की पूरी स्वतंत्रता है, चाहो तो इसे मेरी दायीं जेब में डाल दो, चाहो तो बायीं में।’
‘जी, मैं जानता हूं कि रास्ते अलग़-अलग़ हैं पर गंतव्य एक ही है।’
‘शाबाश! बाहर लोगों को बताना मत भूलना कि मुझे अपना पक्ष चुनने का पूरा मौक़ा दिया गया।’
‘जी मैं ज़रुर बताऊंगा जैसे आपने मुझे बताया।’
-संजय ग्रोवर
04-03-2015
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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....