बुधवार, 14 दिसंबर 2011

नाथूराम, अहिंसा और इतिहास

लघुकथा


जब तक अंग्रेज भारत में रहे, नाथूराम का आंदोलन पूरी तरह अहिंसक रहा। इतना कि देश में किसी को पता भी नहीं था कि यहा कोई नाथूराम रहता है।
अंग्रेजों के जाते ही और भारत के आज़ाद होते ही नाथूराम मुखर होकर आंदोलित हो गया। उसकी पिस्तौल एकाएक जागरुक हो गयी। गोलियां आज़ादी के गीत गाने लगीं। जिस नाथूराम ने कभी किसी अंग्रेज का बाल भी बांका नहीं किया था उसने बिना किसी सुरक्षा के चलने वाले निहत्थे बूढ़े पर गोलियां दाग़ दीं।
इस तरह नाथूराम इतिहास में शामिल हो गया।
नाथूराम के जीवन से हमें शिक्षा मिलती है कि इतिहास तो कमज़ोर आदमी का मकान है, इसमें कभी भी घुसपैठ की जा सकती है।
यह शिक्षा भी मिलती है कि इतिहास में शामिल होने के लिए हमें कुछ भी कर डालना चाहिए।
नाथूराम का जीवन बहुत शिक्षाप्रद रहा। संभवतः आज भी बहुत-से आंदोलनकारी उसके जीवन से शिक्षा लेते होंगे।

किसी ताज़ा आंदोलन में कोई नाथूराम गांधी टोपी लगाए अहिंसा पर उपदेश देता मिल जाए तो भी कोई हैरानी की बात न होगी।



-संजय ग्रोवर

17 टिप्‍पणियां:

  1. जितना धारदार, उतना ही विचारणीय व्‍यंग्‍य।

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  2. देश में ऐसे हजारों नाथू राम और भगत सिंह के भक्त रातों रात उग आते हैं....
    अच्छी कहानी सर,..बिलकुल संवाद घर के तेवर वाली..... मारक...

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  3. well couldn't comprehend, the reason behind was...Gandhiji had said "India will divide on my dead body"...India became two with loss and nothing gain and he survived...well he was not man of his own words......
    sorry, I don't believe in killing but sometimes for further no loss, someone had to do that...

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  4. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-729:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  5. रसायन कुमार जी, क्या सब कुछ करने का ठेका गांधी जी ने लिया था ? जो लोग भारत को दो नहीं एक रखने की बात करते हैं, उनका कितनी और कैसी एकता में विश्वास है, आपसे ज़्यादा किसे पता होगा। क्या गांधीजी को मारने से भारत एक हो गया ? क्या नाथूराम को पहले से पता था कि गांधी जी ऐसा होने देंगे, इसलिए वह पूरे स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान घर बैठा हलवा-पूड़ी खाता रहा ? षड्यंत्रों को शहादत कब तक बताते रहेंगे ?

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  6. मैं न गाँधीवादी हूँ, और ना ही विरोधी मगर मैं नाथु राम को बुरा भी नहीं मानती हाँ उसने एक निहाते बुजुर्ग पर गोलियां दागी यह ज़रूर बहुत बुरी बात है मगर यदि विचार धारा को ध्यान में रखा जाये तो मुझे उसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  7. झटके वाला व्‍यंग्‍य। , बहुत खुबसूरत

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  8. @पल्लवी, मैं आपकी विचारधारा से सहमत नहीं हूं।

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  9. jis des ke log kud bukhe mar rehe ho wo banda ane dushman deah ko 66 crores Rs. dan de de.......or jis adar par des batta ho........pher une yha rukne de to............koi bhi nathram jasi harkat kar sakta ha..........aaj hum ye baat nahi kar sakte(ye baat galat ho jayege) ki unko nikal do........per us samah ye baat the...........

    or deshbakth ya deskbakti ka matlab ye nahi ha jiska parchar ho raha ha wo ke deshbakh ha.........or jiska parchar nahi ho raha wo kuch nahi kar raha tha ya bajiya kha raha tha phela.....................

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  10. dushman desh ? us waqt to vah desh ka hissa tha, aapne use pahle hi dushman man liya tha ? yah to saampradayik mansikta ka hi sabut hai. aapke pas koi sabut hai ki paisa diya gaya tha ?
    prachar ? jo log aandolano ke liye pure media ko bhatka sakte hain, sirf afwaho ke bal par duniya bhar ke patthro ko dudh pila sakte hain, ve prachar ki kami ka rona ro rahe hain ?

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  11. Hum aaj azad hain kyuki Nathuram jaise bohot sare yuvak swatantrata ki ladhayi main shamil the or woh sirf bapu ki wajah se... Nathuram koi ghar me ghus kar nahi baithe the... lekin aaj hindustan-pakistan alag hain sirf ek nirnay ki wajah se aur usi nirnay ki wajah se Nathuram ka janm hua. Woh ek saccha desh bhakt tha... Aur aankh mund kar swatantrata ki ahimsa wadi ladhayi main kud pada tha. Aaj hum ke PC ke samne baith ke uske mann ki duvidha ko nahi samaj sakte... Iss liye dusro ke likhaye itihaas samjho aur apna apna dimag lagao.

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  12. p.c. ke saamne baithke nahin samajh sakte to kahan baith ke samajh sakte hain? aapne kahaan baithke ya khade ho kar samjha hai ?
    angejo ke hote, gulami me rahte koi duvidha hi nahi huyi, aazad hote hi duvidha shuru ho gayi? aur goli mar di? yah kaun-sa tarika huya duvidha dur karne ka ? aap bhi apni duvidhaye aise hi dur karte hai kya?

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  13. न नाथूराम, न गाँधी- दोनों ही व्यक्ति नहीं - विचारधारा के नाम हैं, वो भला कब मरा करती है.

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  14. सोच की स्‍वतंत्रता का अधिकार सार्वजनिक सोच से भिन्‍न परिणाम दे तो विरोध अवश्‍यंभावी है।
    जिस महात्‍मा गॉंधी से ब्रिटिश हुकूमत पंगा नहीं लेती थी उसे इस प्रकार मार देना एक कायर ही कर सकता था या कोई कान्‍ट्रैक्‍ट किलर। महात्‍मा गॉंधी की हत्‍या के लिये नाथूराम नहीं एक सोच जि़म्‍मेदार थी और अब इस विषय पर चर्चा निर्रथक हो चुकी है।
    इतिहास में तो हिटलर और हलाकू भी दर्ज हैं, नाथूराम भी सही।

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  15. मुझे यह देखकर आश्चर्य हो रहा है कि जिन्होंने आज तक पीसी के सामने बैठकर हिन्दी लिखना नहीं सीखा है, वे देशभक्ति की परिभाषा गढ़ रहे हैं। हद है ऐसी शर्मपेक्षता की। पता नहीं लोग किस मुगालते में हैं और एक कातिल और बर्बर हैवान की वकालत तक कर रहे हैं। ऐसे ही गंदे लोगों की गंदी मानसिकता के कारण देश में वैमनस्यता फैलती आयी है। मोदीवादियों के अकल के मोतियाबिंद का इलाज कराना होगा, अन्यथा देश अफगानिस्तान बन जायेगा।

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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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