सोमवार, 21 दिसंबर 2009

उदारता क्या है ?


लगभग सभी धर्मों के मानने वाले यह दावा करते हैं कि धर्म इंसान को उदार, सहिष्णु और मानवीय बनाता है। मेरे मन में अकसर कुछ सवाल उठते हैं। चूंकि मैंने इन सवालों को आज तक किसी दूसरी जगह नहीं पढ़ा, इसलिए मन हुआ कि इन्हें आपके सामने रखूं। यह मेरी एकतरफा सोच हो सकती है कि ये सवाल भी व्यक्ति को उदार बनाने की दिशा में ही एक छोटा-मोटा क़दम हो सकते हैं। इसलिए आपकी राय भी इन सवालों को प्रासंगिक या अप्रासंगिक बनाएगी। बचपन से लेकर आज तक कई तरह के आस्तिकों और नास्तिकों से वास्ता रहा है। मुझ एक भी उदाहरण याद नहीं आता जब किसी नास्तिक ने किसी आस्तिक पड़ोसी पर एतराज़ किया हो, झगड़ा किया हो कि जागरन, कीर्तन या नमाज मेरे विश्वासों के खि़लाफ है इसलिए आप इसे करना बंद कर दें। हालांकि बारीकी से अध्ययन करें तो कोई दो नास्तिक या दो आस्तिक भी बिलकुल एक जैसे नहीं होते। मैंने कभी अखबार में नहीं पढ़ा या रेडियो-टी.वी. पर नहीं देखा-सुना कि नास्तिकों का कोई गुट क्रोधित होकर भागा गया हो और उसने आस्तिकों के किसी आयोजन में जाकर तोड़-फोड़ की हो। मेरे सुनने में आज तक नहीं आया कि ‘लिव इन’ करने वाले युवाओं या विवाह संस्था में विश्वास न करने वाले लोगों ने शादीशुदा लोगों पर जाकर दबाव डाला हो कि आप अपनी शादी तोड़ दें नहीं तो हम आपको पीटेंगे, आपका मुंह काला करेंगे। वेलेंटाइन मनाने वाले या प्यार करने वाले लोगों ने कभी किसी को धमकाया हो कि आप सब भी ये सब करो नहीं तो आप पागल हो, हास्यास्पद हो, समाज विरोधी हो और आप फलां मोहल्ला, शहर, देश, प्रदेश छोड़ कर चले जाओ। क्या आपने कभी सुना है कि किसी स्कर्ट या नेकर पहनने वाले ने कहा है कि कुर्त्ता-पायजामा, धोती-बंडी जैसे कपड़े अश्लील हैं, हमारे जैसे कपड़े पहनो नहीं तो हम तुम्हारे कपड़े फाड़ डालेंगे, ये-वो कर देंगे ! क्या आपने कभी सुना कि वस्त्र-विहीन आकृतियां बनाने वाले किसी पेण्टर ने या उसके समर्थकों ने वस्त्रदार पेंटिंग बनाने वालों पर आपत्ति की हो, उनकी पेंटिंग फाड़ डालीं हों ! पक्ष-विपक्ष में कई उदाहरण रखे जा सकते हैं। पर मुझे लगता है कि मेरी बात स्पष्ट हो गयी है और ज़्यादा शब्द या जगह ख़र्च करने का कोई अर्थ नहीं है।
इस लेखक की ज़िंदगी का अधिकांश हिस्सा कुर्त्ता-पायजामा/जींस, हवाई चप्पल और साइकिल के साथ बीता है पर इसे किसी के भी कुछ और पहनने-ओढ़ने-चलाने पर कोई आपत्ति नहीं है।

उम्मीद है उदारता को लेकर दृष्टि विकसित करने में आप मेरी मदद करेंगे।



-संजय ग्रोवर

48 टिप्‍पणियां:

  1. आपके उधाहरण सटीक हैं...और उदारता का असली चेहरा दिखाते हैं...बहुत अच्छी पोस्ट...
    नीरज

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बहुत सुंदर आलेख! बात को बहुत ही शालीनता और सुंदरता के साथ रखा गया है।
    एक बात मुझे समझ नहीं आई कि कौन नास्तिक है और कौन आस्तिक? इन दोनों शब्दों के मानक अर्थ क्या हैं?

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  4. आपके लेख ने खुली आंखों में रोशनी डाल दी। वास्तव में ये सवाल पूरी सृष्टि की समस्याओं के निराकरण की मार्गदर्शिका है, बल्कि इसी आलेख को समस्या निवारण शब्दकोश की तरह अपना लिया जाये, तो हर देश अपनी वर्तमान गति से कम से कम 20000 गुना ज्यादा तेजी से विकास करेगा। उत्पादकता को पंख लग जायेंगे और सारी वर्जनाएं टूट कर धाराशायी हो जायेंगी। हर तरह की जड़ता एकाएक समाप्त हो जायेगी। बशर्ते इस सिद्धांत का प्रतिपादन भी उसी अनुपात में सिखाया जाये।

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  5. Aapne thik kaha,Dwivediji,gahrai meN jaayeN to MANAK ARTH dhundhna kafi mushqil hai aur iske liye alag se shayad 10-5 posts likhni padeNgi.

    Is post meN aam prachalit arthoN ke sandarbh meN hi bat ki gayi hai.

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  6. यदि आप किसी एकको उदार और दूसरे को अनुदार कहना चाहते हैं, तो मामला फ़िर उलझ जायेगा. सारा मामला समझ का है.... फ़िर कभी. साधक-उम्मेद

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  7. बहुत बडिया आलेख है । आजकल का धर्म मानव को उदार नहीं बना रहा हम धर्म के मर्म से कुछ भटक से गये हैं शायद इस लिये धर्म के नाम पर ही अधिक झगडे जो रहे हैं। आपकी पोस्ट विचार्णीय ह धन्यवाद्

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  8. " क्या आपने कभी सुना कि वस्त्र-विहीन आकृतियां बनाने वाले किसी पेण्टर ने या उसके समर्थकों ने वस्त्रदार पेण्टिग बनाने वालों पर आपत्ति की हो, उनकी पेण्टिग फाड़ डालीं हों "
    इसका उल्टा जरूर हुआ है .

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  9. .... नजरिया प्रभावशाली जान पडता है !!!!

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  10. बहुत उदार कहाने वाले हिन्दुत्व का भी उदाहरण देखिये, तुलसी बाबा कहते हैं-
    जाके प्रिय न राम वैदेही
    तजिये ताहि कोटि बैरी सम
    जद्यपि प्रम सनेही
    तज्यो पिता प्रह्लाद, विभीषण बन्धु, भरत महतारी
    बलि गुरू तज्यो, कंत ब्रज बालन, भय मृदुमंगलकारी
    अर्थात जिसके प्रिय राम और वैदेही नहीं हैं उसे करोडों दुश्मनों के बराबर समझ कर त्याग दो भले ही वह परम स्नेही ही क्यों न हो। जिस तरह कि प्रह्लाद ने पिता को विभीषण ने भाई को, भरत ने माँ को, बलि ने गुरु को और बृज बालाओं ने अपने पतियों को त्याग दिया था। इस्लाम ने तो बहुत सारी हदें ही पार कर दीं हैं। जैनों में भी पहला शब्द अरि हंत ही सिखाया जाता है जिसका मतलब होता है अपने शत्रुओं को मारने वाला जबकि लोकायत में कहा गया है "यावत जीवेत सुखम जीवेत" और सुख से जीने की कल्पना करंर वाला शांति पसन्द करता है।

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  11. आपने बिल्कुल सही लिखा है. वस्तुतः सामान्य जनमानस कभी भी अनुदार नहीं होता. भारत में विभिन्न धर्म, संप्रदाय, वर्ण और जाति के लोग मिलकर एक साथ रहते आये हैं. अब भी हम उदार और सहिष्णु हैं. बस, इस बात को स्वीकार करने की ज़रूरत है.

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  12. बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति है संजय भाई टिप्‍पणियों में भी विषय का अच्‍छा विमर्श हुआ है. धन्‍यवाद.

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  13. अत्यंत ही सार्थक और गंभीर विषय पर आपने दृष्टिपात किया है....
    वस्तुतः धर्म शब्द साधारनतया जिस अर्थ और प्रयोजन में प्रयुक्त होता है,वह धर्म है ही नहीं...वह तो एक उन्माद ,मानसिक संकीर्णता और धर्म के नाम पर अहिंसक प्रवृत्ति में निवृत्त होना ,अपनी कुत्सित कुंठाओं का निराकरण करना है...
    धर्म और मानवीयता ही एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द हैं...बल्कि यदि यह कहें कि मानवीयता की उच्चतम पराकाष्ठा धर्म है तो अधिक सही होगा...धर्म तो एक ही है पूरे संसार में...बाकी तो सब पंथ हैं...

    shree neeraj goswami ji ke blog par aapke pustak aur usme ullikhit rachnaon ko padh aapke lekhni ke prati man natmastak ho gaya...

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  14. उदारता जो भी हो , वांछनीय है । आपने जो कहना चाहा , झलक रहा है । उदार मनुष्‍य कटटर नहीं हो सकता । उदार मनुष्‍य किसी सिद्धांत से इतना नहीं चिपकेगा कि मरने मारने पर उतारु हो जाय । उदार मनुष्‍य आपको खडा देखकर , खिसककर बैठने की जगह दे देगा । उदार मनुष्‍य आपके विचारों से सहमत न होते हुए भी आपका सम्‍मान करेगा । उदार पडोसी आपके ऐतराज करने पर अपने पार्टी म्‍यूजिक की आवाज कम कर देगा ।

    यह सब समझने के लिए कोई बडे सिद्धांतों की जरुरत ही नहीं है ।
    यह सबको पता है । बस तथाकथति रक्षार्थ संगठन बिचौलियों ने सब चौपट कर रखा है ।

    उदार मनष्‍य समझदार होगा और अक्‍ल के पीछे लटठ वगैरह लेकर नहीं दौडेगा । कुल मिलाकर उदार मनुष्‍य अपने कमतर प्रदर्शन स्‍तर पर भी जियो और जीने दो की भावना रखता है ।

    किसी भी ब्रांड का आदमी हो यदि वह इंसानियत को सर्वोपरि मानता है तो वह उदार है ।

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  15. आपने बहुत अच्छी और सच्ची बात कही। काश! आपसे ज़्यादातर लोग
    सहमत होते। तो यह दुनिया और सुन्दर होती।

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  16. ये सवाल सवाल करने पर विवश तो करते ही हैं ...!!

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  17. क्‍या ब्‍लॉग जगत में उपस्थित कट्टरपंथी संजय भाई की बात सुन रहे हैं!!!

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  18. आजकल हर परिभाषा, हर वस्तु स्वार्थ के चश्मे से देखी जाती है, यही सारी गडबडियों की जड़ है।

    --------
    मानवता के नाम एक पत्र।
    इतनी सी है पहेली, आप तो पहचान ही लेंगे।

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  19. बहुत सलीके से और सुंदरता से बात रखी आपने. बहुत धन्यवाद.

    रामराम.

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  20. अरे वाह ग्रोवर जी! आप को आज पहली बार पढ़ा... नीरज जी का शुक्रिया... आप तक पहुंचाने के लिये...
    चलिये आज से हम आप और आप हमारी जमात में जुड़ गये... पागल पागल से टकरा गया...

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  21. अरे वाह ग्रोवर जी! आप को आज पहली बार पढ़ा... नीरज जी का शुक्रिया... आप तक पहुंचाने के लिये...
    चलिये आज से हम आप और आप हमारी जमात में जुड़ गये... पागल पागल से टकरा गया...

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  22. अरे वाह ग्रोवर जी! आप को आज पहली बार पढ़ा... नीरज जी का शुक्रिया... आप तक पहुंचाने के लिये...
    चलिये आज से हम आप और आप हमारी जमात में जुड़ गये... पागल पागल से टकरा गया...

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  23. यही है उदारता की अपनी बात सलीके से कहिये.

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  24. संजय जी,

    आपका लेख पढ़ा....कोई धर्म नहीं सिखाता कि दूसरों के प्रति उदार मत हो...पर धर्म के नाम पर ही लोग एक दूसरे के प्रति अनुदार हो कर झगड़ते हैं या यूँ कहें कि लोग अपना उल्लू साधते हैं.. आम लोग ऐसे लोगों के प्रभाव में आ जाते हैं. और रही वेलेटाइन मनाने वालों कि बात तो जो नहीं मनाता वो ज़रूर जा कर उपद्रव करता है कि ये नहीं होना चाहिए. असल में उदार और अनुदार होने का प्रश्न बहुत पेचीदा है...बस कामना यही करनी चाहिए कि हम अनुदार ना हों....
    शुभकामनायें

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  25. आज की सामाजिक परिस्थिति में बहुत ही स्पष्ट और अच्छा विचार है ............ उदारता इंसान को इंसान के करीब ले कर आएगी ...... सार्थक लेख ..........

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  26. उदारता क्या है ?

    मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना. ये तो हमने और आपने अपने - अपने लिए धर्म का निर्माण कर लिया है.

    बहुत बढ़िया आलेख.

    बधाई...!

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  27. संजय भाई

    हालाँकि आलेख अच्छा है पर उदारता का यह मामला बहुत गम्भीरता का विषय है। यह बात सही है किसी नास्तिक ने किसी आस्तिक को नास्तिकता अपनाने पर ज़ोर नहीं दिया होगा (उल्टा भी सही है)। किंतु एक प्रकार के आस्तिकों का एक गुट तो दूसरे प्रकार के आस्तिकों के गुट की ऎसी तैसी करने मे तो लगा ही रहता है। वहाँ हमारी सारी उदारता की ऎसी तैसी हो जाती है। मतलब आप समझ ही गये होंगे.

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  28. bahut hi acchi post ..aapki soch ko salam sir


    ------ eksacchai { AAWAZ }

    http://eksacchai.blogspot.com

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  29. आपने बड़ी सार्थक बात कही . टिप्पणियों में देखा इस विचार को चार चाँद लगते .हम सब उदार ही होते हैं , तथाकथित धर्म ,मजहब की दहलीज़ पर खड़े होने के पहले .आस्तिकों के धर्म मजहब को बाँटते देखता हूँ . नास्तिकों को जोड़ते ,इंसानों को .बस

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  30. नीरज जी के ब्लौग से आपकी ग़ज़लों के जादू में डूबा खिंचा चला आया संजय जी और यहाँ आकर देखता हूँ कि आपकी कलम का तिलिस्म तो कातिलाना है।
    अब मार्क कर लिया है आपको। ग़ज़लों का दीवाना हूँ और आपकी किताब "खुदाओं के शहर.." मँगवाना चाहता हूँ। कितनी राशि भेजनी होगी और किस पते पर और कैसे। दूसरी बात कि मैं सेना में हूँ तो मेरा पता कुछ अजीब सा है जिस पर कुरियर नहीं आता।

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  31. ग्रोवर जी बात आपकी ठीक है पर कुछ उदाहरण जँचे नही । मसलन नग्न तसवीर बनाने वाले किसी को कहते नही कि तुम भी ऐसी ही तसवीरें बनाओ पर दूसरे के श्रध्देय की नग्न तसवीरें बनायेंगे तो आपत्ती तो होगी ही ऐसे तो भ्रष्टाचारी भी आम आदमी को नही कहते कि तुम भी भ्रष्ट हो तो क्या भ्रष्ट आचार सही हो जायेगा । अति सर्वत्र वर्जयेत । आज ही आपकी किताब के लिये ऑर्डर किया है ।

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  32. आशाजी, यहां मैंने श्रद्धेय की तस्वीरों की तो बात ही नहीं की।
    भ्रष्टाचारी सीधे-सीधे भले न कहता हो मगर भ्रष्टों के समाज में ईमानदार उपहास, उपेक्षा, अपमान, मानसिक प्रताड़ना और अकेलेपन का शिकार अकसर होता है। दूसरे जब आप किसी दफ्तर में काम के लिए जाते हैं तो भ्र्रष्टाचारी यह नहीं देखता-पूछता कि आप ईमानदार हैं या बेईमान, उसे आपकी ईमानदारी का पता लग भी जाए तो भी वह आपको बिना कुछ लिए नहीं छोड़ देने वाला। अपरोक्ष रुप से कर वह वही रहा है।

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  33. agar ye sirf behes ya apne vicharrakhne wali baat hai to theek hi hai par is sab ke karan men jana ho to behes lambi ho sakti hai halan ki main bhi koi bahoot dharmik ya bahoot satvik naheen hoon aou mere andar tamam vahi av gun hain jo kisi sadharan insan men hote hain par kabhi kabhi vichar karne se esa lagta hai ki jab hum jaise sadharan insan ka jina haram ho sakta hai to in logoon ne samaj ke reformation ki baat sonchi aour kuch karne ka bida uthaya un logoon ko kin kin paristithiyoon ka samna karna pada hoga ram buddh mahaveer muhommed nanak kabeer osho sukrat nutan ainstine ese tamam log hain jinhone manav matr ke kalyan ke bare men soncha shayed aap aur hum unke muqabile men kuch bhi na kar parahe hain par is samaj ko kiya kaha jaye jo bas ek dookan bhar ban kar karobar fhailane men lag jata hai kal shayed aap ke peeche aap ke naam ki bhi koi dukan khul jaye par is men aap ke pryas ka kiya dosh aap ke vicharoon ka kiya dosh jub bhi aap ke man men koi naya vichar aata hai aap kisi na kisi maddhyam se use dosroon tak pahuchana chahete hain shayed humare pehle waloon ne bhi yahi kiya ho baad men hum ne apni apni dukan to banani hi thi

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  34. संजय भाई आप नें बहुत सटीक टिप्पणी की है.धर्म क्या है यह सचमुच एक यक्ष सवाल है जो मुझे भी अक्सर झकझोरता रहता है।यदि आजकल के धर्माधिकारियों की दृष्टी से सोचें तो शायद धर्म उदारता,सहिष्णुता,और मानवियता के आस-पास भी नहीं फटकता।हां अगर आपका धर्म देश सेवा या समाज सेवा है तब यह संभव हो सकता है...लेकिन ये चीज़ें तो उन के सेलेबस का हिस्सा ही नहीं फिर ?????

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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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