शनिवार, 15 नवंबर 2008

अपने दिल की बात




मित्रों,देख रहा हूँ कि एक दुनिया है जो नेट के अंदर है और वहाँ ब्लाॅग की अद्भुत विधा विकसित हो चुकी है( हांलांकि आजकल इसके अंत की घोषणाओं की शुरुआत हो चुकी है ) जहाँ हमारे ढंग से या मिलते-जुलते ढंग से सोचने वाले कई एक लोग मौजूद हैं। अगर हम नेट से बाहर की दुनिया देखें जहाँ ‘साहित्यिकों’ में भी उदारतापूर्ण ढंग से सोचने वाले ढूंढने पड़ते हों ( इसकी एक वजह हमारी अपनी कई तरह की सीमाएं भी होती हैं,तकनीकी समेत), वहाँ ब्लाॅग एक बहुत बड़ी राहत है, रोशनी है, सहारा है। यहाँ अनुराग अन्वेषी के ब्लाॅग पर ‘ईश्वर पर एक जिरह’ संभव है। यहाँ आकांक्षा की कविता पर सीधे-सीधे, ‘अनएडीटेड’ कमेंट संभव है। इसके अलावा, हिन्दी ब्लाॅग की दुनिया में हमारे मित्रों ने तकनीक से संबंधित बहुत ही महत्वपूर्ण व श्रमसाध्य काम तो किए ही हैं, उन्हें निस्वार्थ भाव से दूसरों के साथ साझा भी कर रहे हैं। जिन मित्रों से सहयोग, सलाहें, समाधान, सुझाव, प्रेम, प्रेरणा, प्रोत्साहन और अपने चिट्ठों पर आने के आमंत्रण मिल रहे हैं उनमें अनुराग अन्वेषी जी सहित श्यामल सुमन, कविता वाचक्न्वी, सारथी, प्रदीप मानोरिया, संगीता पुरी, शास्त्री, भूतनाथ, अमित सागर, अभिषेक, रचना गौड़ ‘भारती’ और नारद मुनि शामिल हैं। मैं सभी चिट्ठों पर जाने की कोशिश कर रहा हूँ। मित्रों, 15-11-2008 के आस-पास यह चिट्ठा और इसके लिए उखाड़-पछाड़/तांक-झांक शुरु की थी। तब से लेकर अब तक जानकारियों में कुछ इज़ाफ़ा तो हुआ है। जिसके चलते चिट्ठे की पहली पोस्ट के उस हिस्से को हटाकर जो कि रोमनी हिन्दी में लिखा गया था, इन्हीं पंक्तियों को लगा रहा हूँ। हाँ, कैलियोस्कैनी में लिखा गया हिस्सा यथावत रहेगा, ताकि सनद रहे।अगली पोस्ट में आकांक्षा और अन्वेषी जी की ‘ईश्वर पर एक जिरह’ को आगे बढ़ाने की कोशिश करुंगा।






2 टिप्‍पणियां:

  1. संजय जी,पहले तो नए ब्लॊग की शुभकामनाएँ।
    हिन्दी में लिखने के लिए कोई बहुत बड़ी मेहनत नहीं करनी पड़ती है। विस्तार से जानना हो तो http://groups.yahoo.com/group/HINDI-BHARAT/
    याहू समूह से जुड़ना लाभप्रद होगा।

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  2. kavitaji,
    vinamra nivedan ke liye dhanyawad.
    hindi ka jugad anurag anveshi ji ki prerna se ho gaya hai. bas inscript Keyboard ke layout ki kami rah gayi hai.aapki salahoN par bhi amal karne ki koshish karunga.

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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