कई दिल्ली वालों की सबसे बड़ी महानता यह है कि वे दिल्ली में पैदा हो गए। हांलांकि इसमें उनका अपना किया-धरा कुछ नहीं है। माँ-बाप ने दिल्ली में पैदा कर दिया तो दिल्ली में पैदा हो गए और दिल्ली का होने पर गर्व करने लगे। माँ-बाप अगर होनोलुलु, झुमरीतलैय्या या टिम्बकटू में पैदा कर देते तो वे वहाँ पैदा हो जाते और वहाँ के होने पर गर्व करने लगते। इसमें उनकी ग़लती भी क्या है! सभी तो यही करते हैं।
कई बार माँग उठ चुकी है कि दिल्ली में बाहर के लोगों का आना रोका जाए। क्योंकि ये दिल्ली में गन्दगी फैलाते हैं। इनमें ज्यादातर लोग बिहार व उत्तर प्रदेश के हैं। बिहारी लोगों व बिहारी शब्द से कई दिल्ली वालों को एक खास क़िस्म की एलर्ज़ी है। इतनी कि वे बिहारी शब्द का इस्तेमाल गाली के तौर पर ही ज्यादा करते हैं। दिल्ली के लोग दिल्ली की सभ्यता-संस्कृति को लेकर अत्यंत भावुक व संवेदनशील हो जाते हैं। एक बार मैंने देखा कि एक पीली टीशर्ट धारी दिल्ली वाला एक आदमी को इसलिए बिहारी कह कर चिढ़ा रहा था कि उसने गुलाबी टीशर्ट पहन रखी थी।
बहरहाल एक दिन अपनी खोपड़ी के पृष्ठ भाग पर थप्पड़ मारते हुए मैं ये सोचने बैठा कि दिल्ली में कौन दिल्ली का है और कौन नहीं! जैसे-जैसे सोचता गया वैसे-वैसे उलझन बढ़ती गई। कोई यू.पी. से आकर यहाँ जम गया तो कोई बिहार से आकर बस गया। कोई जम्मू-कश्मीर से पधारा है तो कोई आँध्र प्रदेश से आया है। यहाँ तक कि आज जो लोग दिल्ली में बाहर से आने वालों को रोकने की माँग कर रहे हैं उनमें से भी बहुत से खुद दिल्ली में बाहर से आए हैं यानि कि शरणार्थी हैं। मैं सोचता हँू कि अगर विभाजन के तुरंत बाद इस सोच पर अमल किया गया होता तो ये सब चक्कर ही न पड़ता। बहरहाल, अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है।
ये खुशी की बात है कि दिल्ली के लोग सफाई-पसंद होते जा रहे हैं। वैसे भी दिल्ली के कई लोग बड़े जुझारु प्रवृत्ति के हैं। एक-दो रुपए के लिए ग़रीब रिक्शाचालक से लड़ते या पचास पैसे के लिए बस-कण्डक्टर से झगड़ते उन्हें देखा जा सकता है। यह बात अलग है कि बढ़ते भ्रष्टाचार, व्याभिचार, हत्या, लूट-खसोट, जैसी बड़ी बुराईयों के खिलाफ लड़ने के लिए उनके पास वक्त की कमी रहती है। उस वक्त वे अकसर ‘बिज़ी’ होते हैं।
कई दिल्लीवालानुसार बहुत से बिहारियों की बहुत बड़ी कमी यह है कि वे गंदे रहते हैं। हांलांकि वे अकसर पंजाबियों, दिल्ली वालों व अन्य प्रदेशों के व्यवसायियों व उद्योगपतियों के यहाँ काम करते हैं। तो क्या हुआ? अगर वे चाहें तो गंदगी कम कर सकते हैं। वे चाहें तो कल-कारखानों से निकलने वाले कूड़े-कचरे को खा-पीकर खत्म कर सकते हैं। (विष पीकर नीलकण्ठ बन सकते हैं। हांलांकि उनकी पूजा तब भी कोई शायद ही करे।) या छुट्टी के दिनों में घर जाते समय साथ ले जा सकते हैं। वैसे पहले प्रस्ताव में ज्यादा दम है क्योंकि कूड़े-कचरे को खाने से कई बिहारियों के भी कई दिल्ली वालों जैसी तोंदें निकल आएंगी। और वे एक स्तर पर उनकी बराबरी कर सकेंगे। हो सकता है तब दिल्ली वाले उन्हें थोड़ा-बहुत पसंद करने लगें।
यह कुछ इस तरह होगा जैसे लालू किसी दिन अच्छी-खासी अंग्रेजी सीख कर, सूट-टाई पहन कर ‘हाऊ-डू-यू-डू’ करते हुए दिल्ली आ धमकें। निश्चय ही दिल्लीवासी तब उनका स्वागत करेंगे। सिर्फ यही तो कमी है लालू में। बाक़ी घोटालों-घपलों, तानाशाही, वंशवाद आदि गुणों में तो वे भी काँग्रेस व बीजेपी के नेताओं की तरह राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं। मात्र अंग्रेजी कम जानने की वजह से एक भव्य व्यक्तित्व को मिट्टी में मिला देना उचित नहीं। फिर दिल्ली वाले तो अंग्रेजी के मुरीद हैं। स्व. कृश्न चंदर ने अपने उपन्यास ‘एक गधे की आत्म-कथा’ में एक जगह उपन्यास के नायक गधे के मुँह से कहलवाया है कि दिल्ली के दतरों में अंग्रेजी बोलने पर काम आसानी से हो जाता है फिर भले ही बोलने वाला गधा ही क्योें न हो। वैसे दिल्ली में ऐसे ‘परम्पराप्रिय’ लोग भी काफी मात्रा में हैं जो ‘ब्लड’ को ‘बल्ड’, ‘पार्क’ को ‘पारक’ व ‘स्मार्ट’ को ‘समारट’ कहते हैं।
दिल्ली में बहुत से लोगों ने कुत्ते भी पाले हुए हैं। जिन्हें वे सुबह-शाम पार्कों में सूसू-पाॅट्टी इत्यादि कराने ले जाते हैं। कई दिल्ली वालों की बिहारियों से नाराज़गी की वजह यह भी हो सकती है कि हर जगह बिहारी ही गंदगी कर देंगे तो उनके कुत्ते क्या करेंगे। इस मामलें में मेरी पूरी सहानुभूति दिल्ली के कुत्तों के साथ है। बिहारियों व उत्तर प्रदेशियों को दिल्ली तुरंत खाली कर देनी चाहिए ताकि वहाँ पालतू कुत्ते पूरी शानो-शौकत से हग-मूत सकें, ‘एन्जाॅय’ कर सकें। कई दिल्ली वालों को जितनी एलर्जी बिहारियों व उत्तर प्रदेशियों से है उतनी तो उन्हें चोरों, डाकुओं, ठगों, स्मगलरों, माफियाओं, नेताओं, काॅलगर्लों आदि से भी नहीं है। बिहारियों को अगर दिल्ली में रहना ही है तो उन्हें अपना संकोची व मेहनती स्वभाव छोड़ कर बेशर्मी की हद तक बोल्ड और हैवानियत की हद तक असंवेदनशील बनना पड़ेगा। किसी भी जगह की संस्कृति में घुले-मिले बिना आप वहाँ के निवासियों के दिलों में जगह नहीं बना सकते।
इस तरह हम देखते हैं कि दिल्ली में बीस-तीस या चालीस साल पहले विभिन्न स्थानों से आए दिल्ली के बिहारी या बाहरी फिलहाल दिल्ली में आ रहे ताज़ा बिहारियों व बाहरीयों पर भारी पड़ रहे हैं।
-संजय ग्रोवर
ठीक कहा आपने। दिल्ली ही क्यों महाराष्ट्र, आसाम और अन्य जगहों में भी तो यही हो रहा है। जबकि सच यह है कि किसी भी राज्य, जिला, गाँव, सम्प्रदाय के सभी लोग बुरे नहीं होते हैं। कहते हैं कि-
जवाब देंहटाएंनफरत के दायरों से निकलकर तो देखिये।
सचमुच खुदा की बस्ती में कोई बुरा नहीं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
हिन्दुस्तान हिन्दुस्तानियों का है, किसी व्यक्ति विशेष का नहीं है!!
जवाब देंहटाएं-- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
bhaayi aapkaa gussa bahut acchha laga...agar saare bihaariyon ko vakayi gussa aa jaye..khaas-kar bihaari netaaon ko to bihaar ko vaapas udyog-sthaan banaakar dilli yaa mumbai-vaasiyon ko aayinaa dikhaa den...magar pataa nahin ye kab ho paayegaa...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है। आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी बडी प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत मना आपका हार्दिक स्वागत है ... समय निकल कर मेरे ब्लॉग पर दस्तक दें
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका.
जवाब देंहटाएंवाजिब है प्रतिक्रया आपकी. स्वागत.
जवाब देंहटाएंचिट्ठा जगत में आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंभावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है ।
लिखते रहिए लिखने वाले की मंज़िल यही है ।
कविता,गज़ल,शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है
मेरे द्वारा संपादित पत्रिका भी देखें
www.zindagilive08.blogspot.com
hindustani ko kahi bhee jane or jeene ka adhikar hai. narayan narayan
जवाब देंहटाएंaap ne to khush kar diya....
जवाब देंहटाएंमुझे तो भारतीय होने पर गर्व है भाई। अब इंग्लेण्ड में पैदा होता तो ब्रिटिश कहलाने में गर्व करता ना।
जवाब देंहटाएंएकदम सटीक लेख. मैं भी दिल्ली में पिछले पाँच साल से रह रही हूँ और ये सारा तमाशा देख रही हूँ...बहुत ही व्यंग्यात्मक तरीके से आपने लिखा है कि यहाँ के लोग बिहारियों से जितनी नफ़रत करते हैं, उतनी चोर, डाकुओं, लुटेरों से भी नहीं...बहुत अच्छा लेख है...और हाँ, ये तो बताइये कि आप इतने दिनों से ब्लॉगर पर हैं, तो कुछ लोग आज आपका स्वागत क्यों कर रहे हैं.
जवाब देंहटाएं@mukti,
जवाब देंहटाएंYah shruaati post hai, 17 nov. 2008 ko post ki gayi.
कई बार तो हमने देखा है कई बिहारी लोग भी जरा बोलने का लहजा सुधार लेने के बाद ...किसी बिहारी का मजाक उड़ाने का अधिकार पा जाते हैं...वैसे जो लीग खुद शरणार्थी होते हैं...उन्हें दूसरे शरणार्थी से पारम्परिक जलन होती है...सो इसलिए लोग दूसरे का विरोध करने उतार आए हैं...
जवाब देंहटाएंVery good. However, this is not against the migration but the culture. First of all it is a fact that every one migrates as our culture has become so. The migration for hunger and earning. People from all states migrate to other parts of India and it is a democratic right.
जवाब देंहटाएंBut, yes but why the North Indians are singled out and blamed? No one talks about the people from other parts of the country. There is a cause and everyone knows this. Chidambaram was right when he expressed his concern about the rising crime graph of New Delhi. First in Punjab, then in Maharastra, Chhatishgarh, Assam and who knows the future. Only to respect the democratic right, we cannot crush the truth.
Up and Bihar should do something to create jobs in their own state to accommodate their burgeoning population. BIMARU state as stated in our economic articles.
People of North India are hard working, pain staking but something is there that hides their plus points.
Thanks