ग़ज़ल
वो महज़ इक आदमी है बस
और उसमें क्या कमी है बस
उम्रे-दरिया के तजुर्बों पर
अब तो काई-सी जमी है बस
आंसुओं का बह चुका दरिया
आंख में थोड़ी नमी है बस
हर बरस आता है इक तूफ़ां
जोश सारा मौसमी है बस
इन डरे लोगों के हिस्से में
इक मरी-सी ज़िंदगी है बस
-संजय ग्रोवर
वो महज़ इक आदमी है बस
और उसमें क्या कमी है बस
उम्रे-दरिया के तजुर्बों पर
अब तो काई-सी जमी है बस
आंसुओं का बह चुका दरिया
आंख में थोड़ी नमी है बस
हर बरस आता है इक तूफ़ां
जोश सारा मौसमी है बस
इन डरे लोगों के हिस्से में
इक मरी-सी ज़िंदगी है बस
-संजय ग्रोवर
waah...
जवाब देंहटाएंbahut badhiya
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