ग़ज़ल
ज़िंदगी की जुस्तजू में ज़िंदगी बन जा
ढूंढ मत अब रोशनी, ख़ुद रोशनी बन जा
रोशनी में रोशनी का क्या सबब, ऐ दोस्त!
जब अंधेरी रात आए, चांदनी बन जा
गर तक़ल्लुफ़ झूठ हैं तो छोड़ दे इनको
मैंने ये थोड़ी कहा, बेहूदगी बन जा
हर तरफ़ चौराहों पे भटका हुआ इंसान-
उसको अपनी-सी लगे, तू वो गली बन जा
कुंओं में जीते हुए सदियां गई ऐ दोस्त
क़ैद से बाहर निकल, फिर आदमी बन जा
गर शराफ़त में नहीं पानी का कोई ढंग
बादलों की तर्ज़ पे आवारगी बन जा
-संजय ग्रोवर
ज़िंदगी की जुस्तजू में ज़िंदगी बन जा
ढूंढ मत अब रोशनी, ख़ुद रोशनी बन जा
रोशनी में रोशनी का क्या सबब, ऐ दोस्त!
जब अंधेरी रात आए, चांदनी बन जा
गर तक़ल्लुफ़ झूठ हैं तो छोड़ दे इनको
मैंने ये थोड़ी कहा, बेहूदगी बन जा
हर तरफ़ चौराहों पे भटका हुआ इंसान-
उसको अपनी-सी लगे, तू वो गली बन जा
कुंओं में जीते हुए सदियां गई ऐ दोस्त
क़ैद से बाहर निकल, फिर आदमी बन जा
गर शराफ़त में नहीं पानी का कोई ढंग
बादलों की तर्ज़ पे आवारगी बन जा
-संजय ग्रोवर
हर तरफ़ चौराहों पे भटका हुआ इंसान-
जवाब देंहटाएंउसको अपनी-सी लगे, तू वो गली बन जा
कुंओं में जीते हुए सदियां गई ऐ दोस्त
क़ैद से बाहर निकल, फिर आदमी बन जा
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..
साधू साधू
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की जुस्तजू में ज़िंदगी बन जा
जवाब देंहटाएंढूंढ मत अब रोशनी, ख़ुद रोशनी बन जा
प्रभावशाली पंक्तियाँ.... अच्छी लगी यह ग़ज़ल
बढ़िया गजल!
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