भैंस हमें दूध देती है।
गाय हमें दूध देती हैं।
बकरी हमें दूध देती हैं।
गाय हमें दूध देती हैं।
बकरी हमें दूध देती हैं।
दूध तो देती हैं पर यह कैसे पता चलता है कि ‘हमें’ देतीं हैं !
अगर हम जबरन बांध-बूंधकर इनका दूध न निकालें तो क्या वे हमारे घर पर देने आ जाएंगीं कि अंकल, जब तक दूध नहीं लोगे, कॉल-बैल से खुर नहीं हटाऊंगी।
कया ये इंसान से भी ज़्यादा मानवीय हैं ? इंसान तो अपना दूध किसी को देता नहीं।
इंसान तो बड़ा चालू है। भैंस का दूध कुत्ते को पिला देता है। मदरडेयरी का पूजास्थल पर चढ़ा देता हैं।
कभी बचपन में किसी निबंध तक में नहीं पढ़ा कि शेरनी ‘हमें’ दूध देती है!
रीछनी ‘हमें’ दूध देती है!
भेड़ियाइन ‘हमें’ दूध देती है!
इंसान तो बड़ा चालू है। भैंस का दूध कुत्ते को पिला देता है। मदरडेयरी का पूजास्थल पर चढ़ा देता हैं।
कभी बचपन में किसी निबंध तक में नहीं पढ़ा कि शेरनी ‘हमें’ दूध देती है!
रीछनी ‘हमें’ दूध देती है!
भेड़ियाइन ‘हमें’ दूध देती है!
बेचारी सीधी-सादी गाय-भैंस-बकरी!
कभी किसी मीडिया मैन ने भी जाकर उनसे नहीं पूछा कि ‘माताजी, यह दूध आप किसे देती हैं!? ज़रा टेस्ट कराओ तो ‘ख़ाना-पकाना भारतवाला’ में तुम्हारी भी रैसिपी दिखा देंगे।
‘कैसा बुद्धू है, कि घाघ है रे, यहां बिना रैसिपी दिखाए ही जान के लाले पड़े हैं और ये....... गाय-भैंस सोचेंगीं।
कभी किसी मीडिया मैन ने भी जाकर उनसे नहीं पूछा कि ‘माताजी, यह दूध आप किसे देती हैं!? ज़रा टेस्ट कराओ तो ‘ख़ाना-पकाना भारतवाला’ में तुम्हारी भी रैसिपी दिखा देंगे।
‘कैसा बुद्धू है, कि घाघ है रे, यहां बिना रैसिपी दिखाए ही जान के लाले पड़े हैं और ये....... गाय-भैंस सोचेंगीं।
सोचने की बात है कि गाय-भैंस-बकरी अगर दूध हमें देतीं हैं तो अपने बछड़ों और मेमनों को क्या देतीं हैं ? उन्हें क्या कैश पकड़ा देतीं हैं कि ‘बेटा ये लो 20 रु., बाज़ार से मदर डेयरी की थैली लेकर सरकंडा लगाकर चूस लेना! अपन का दूध तुपन के लायक नहीं है, इंसान को ही माफ़िक आता है।’
शेरनी का दूध इंसान को सूट नहीं करता क्या!?
यू तो वह मुर्गी के अंडे भी झट से चट कर जाता है!
कल्पना कीजिए कि एक टूटे टिन शेड के नीचे एक पतली रस्सी से एक शेरनी बंधी है। नीचे भगौना तैयार है। एक श्वाला (ग्वाले का काल्पनिक दोस्त) दूध दुहने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है।
‘‘गगुर्रर्रर्रर्र...’’
कहां गया श्वाला? कहां गई रस्सी? कहां है दूध?
यू तो वह मुर्गी के अंडे भी झट से चट कर जाता है!
कल्पना कीजिए कि एक टूटे टिन शेड के नीचे एक पतली रस्सी से एक शेरनी बंधी है। नीचे भगौना तैयार है। एक श्वाला (ग्वाले का काल्पनिक दोस्त) दूध दुहने के लिए हाथ आगे बढ़ाता है।
‘‘गगुर्रर्रर्रर्र...’’
कहां गया श्वाला? कहां गई रस्सी? कहां है दूध?
इंसान को गाय-भैंस-बकरी का दूध ही सूट करता है।
-संजय ग्रोवर
bahut achchha
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा है
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा अभी कल ही मेरी बेटी डिस्कवरी देख रही थी उसमे जिराफ का बच्चा अपने माँ का दूध पी रहा था उसने कहा क्या जिराफ भी दूंध देता है मैंने कहा हा तो उसने कहा की हम भी जिराफ का ही दूध पीते है :))
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने. गाय भैंस बकरी दूध देती है. स्त्री त्याग करती है, लज्जा उसका गहना है.. पुरुष से त्याग करवाकर देख लो, पुरुष को लज्जा ओढा पहनकर देख लो.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
आपसे सहमत हूं, मगर यहां संदर्भ वह नहीं है।
हटाएंगाय-भैंस-बकरी कमज़ोर हैं।
शेरनी-रीछनी-भेड़ियाइन ताक़तवर हैं।
ताक़तवर को हाथ लगाने की हमारी हिम्मत नहीं होती जबकि कमज़ोर का दूध निकालकर हम यह भी घोषित कर सकते हैं कि जैसे वह हमें अपनी मर्ज़ी से दूध देते हों।
यहां मेरा आशय स्त्री या पुरुष से नहीं है, वरना मैंने शेरनी की जगह शेर या बैल की बात की होती।
बहुत सही कहा आपने. गाय भैंस बकरी दूध देती है. स्त्री त्याग करती है, लज्जा उसका गहना है.. पुरुष से त्याग करवाकर देख लो, पुरुष को लज्जा ओढा पहनकर देख लो.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
बहुत सही कहा आपने. गाय भैंस बकरी दूध देती है. स्त्री त्याग करती है, लज्जा उसका गहना है.. पुरुष से त्याग करवाकर देख लो, पुरुष को लज्जा ओढा पहनकर देख लो.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
आपसे सहमत हूं, मगर यहां संदर्भ वह नहीं है।
हटाएंगाय-भैंस-बकरी कमज़ोर हैं।
शेरनी-रीछनी-भेड़ियाइन ताक़तवर हैं।
ताक़तवर को हाथ लगाने की हमारी हिम्मत नहीं होती जबकि कमज़ोर का दूध निकालकर हम यह भी घोषित कर सकते हैं कि जैसे वह हमें अपनी मर्ज़ी से दूध देते हों।
यहां मेरा आशय स्त्री या पुरुष से नहीं है, वरना मैंने शेरनी की जगह शेर या बैल की बात की होती।