ग़ज़ल
बस विचार के इक-दो फंदे डालेगा
भाषा से वो पूरा स्वेटर बुन देगा
चित्त-पट्ट में बिल्ली का क्या बिगड़ेगा
चूहा-दौड़ में चूहे का दम निकलेगा
जब मंथन करने वाले ज़हरीले हों
अमृत निकलेगा भी तो क्या कर लेगा
ईमां की भी दुक्कानें खुल जाएंगीं
बेचने वाला हर इक शय को बेचेगा
घर-दफ़्तर में वो जो सोया रहता है
मिला जो मौक़ा, भीड़ में घुसकर नाचेगा
इन सारे लोगों को मैं पहचानता हूं
नयी शक्ल में अक्ल का मेला निकलेगा
गर मंथन करने वाला ज़हरीला है
ज़हर निकालेगा और अमृत कह देगा
यह सवाल और वह सवाल पूछेगा तुमसे
तुम पूछोगे तो वो उठकर चल देगा
इसे काटने वाले जाने किधर गए
वक्त हमें भी चुपके-चुपके काटेगा
-संजय ग्रोवर
वाह...........
जवाब देंहटाएंबेमिसाल गज़ल...
गर मंथन करने वाला ज़हरीला है
ज़हर निकालेगा और अमृत कह देगा
बहुत खूब..
सादर.
यह सवाल और वह सवाल पूछेगा तुमसे
जवाब देंहटाएंतुम पूछोगे तो वो उठकर चल देगा bahut achche.....
बेहतरीन गज़ल. बहुत शुक्रिया इस पेशकश के लिये.
जवाब देंहटाएंबहुत वदिया ग्रोवर जी .....:))
जवाब देंहटाएंdhaardaar hai gazal...
जवाब देंहटाएंbodh sateek...
करारे कटाक्ष.... बधाई
जवाब देंहटाएंसभी शेर बेहद अर्थपूर्ण. बधाई स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंVaakai behatareen abhivyakti hai... teekhe tevar... mitra Sanjay aap jo bhi ho, badhaai... lage raho... ham hai, kadardaan......
जवाब देंहटाएंACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE . ` AE `
जवाब देंहटाएंKAA QAAFIYA AAPNE KHOOB NIBHAAYAA HAI .
ग़ज़ब की ग़ज़ल! पहले कभी नहीं पढ़ी ऐसी।
जवाब देंहटाएंमेरी एक दोस्त जदीद ग़ज़ल पर पी.एच.डी. कर रही है। आपकी ग़ज़लों पर ख़ास तौर पर काम करना चाहती है। आप देना चाहेंगे ?
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया! मगर आपने कोई लिंक या ईमेल नहीं दिया !? शायद भूल गयीं हैं! चलिए बात-चीत के लिए मेरा ईमेल नोट कर लीजिए- sanjay.grover01@gmail.com
जवाब देंहटाएंरचना जबरदस्त है, गजल के बारे में गजल वाले बताएंगे
जवाब देंहटाएंवाह!! बहुत उम्दा!
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की ग़ज़ल!
जवाब देंहटाएंBahut Umda
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