बुधवार, 29 फ़रवरी 2012

कि शायर अपनी बरबादी से ही आबाद होते हैं


ग़ज़ल

मिले हमको ख़ुशी तो हम बड़े नाशाद होते हैं
कि शायर अपनी बरबादी से ही आबाद होते हैं


ये सच्चाई का पारस इस तरह चीज़ें बदलता है
तुम्हारे संग मेरी ज़द में आकर दाद होते हैं


दिखे जो मस्लहत तो पल में सब कुछ भूल जाते हैं
वो जिनको ज़िंदगी के सब पहाड़े याद होते हैं


किसी दिन तुम ख़ुदी को, ख़ुदसे पीछे छोड़ जाते हो
वो सब जो तुमसे आगे थे, तुम्हारे बाद होते हैं


वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं


-संजय ग्रोवर


नाशाद= दुखी, संग=पत्थर, ज़द=दायरा, पहुंच, रेंज, मस्लहत=फ़ायदा,

(हांलांकि अलग़-अलग़ डिक्शनरियों में ज़द शब्द के अलग़-अलग़ अर्थ जैसे चुगना, चोट, प्रहार-सीमा, लक्ष्य आदि दिए गए हैं मगर जब आप वाक्य-प्रयोग देखेंगे तो वही अर्थ ज़्यादा नज़दीक पाएंगे जो ऊपर दिए गए हैं।)

14 टिप्‍पणियां:

  1. वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं
    तरीके ..... इन्ही में छुपे हैं असली चेहरे...

    जवाब देंहटाएं
  2. दिखे जो मस्लहत तो पल में सब कुछ भूल जाते हैं
    वो जिनको ज़िंदगी के सब पहाड़े याद होते हैं,,,,,,
    sahi , hamesha ki tarah satik, paina aur gahra ....

    जवाब देंहटाएं
  3. मिले हमको ख़ुशी तो हम बड़े नाशाद होते हैं
    कि शायर अपनी बरबादी से ही आबाद होते हैं

    वाह ....बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  4. bahut khub !

    मिले हमको ख़ुशी तो हम बड़े नाशाद होते हैं
    कि शायर अपनी बरबादी से ही आबाद होते हैं

    वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं

    जवाब देंहटाएं
  5. किसी दिन तुम ख़ुदी को, ख़ुदसे पीछे छोड़ जाते हो
    वो सब जो तुमसे आगे थे, तुम्हारे बाद होते हैं
    क्या बात है ! ग्रोवर साहब पहली बार पढ़ा आपको लगा देर हो गयी ..... नायाब शेरो के कलमकार को मुबारकबाद देते हुए ख़ुशी हो रही है .....शुक्रिया जी /

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा मंच-805:चर्चाकार-दिलबाग विर्क>

    जवाब देंहटाएं
  7. वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते
    बेहतरीन शेर।

    जवाब देंहटाएं
  8. वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं...

    javab nahi....

    जवाब देंहटाएं
  9. वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं

    gajab ...maja aa gaya ye sher padhkar to..bandhai ho

    जवाब देंहटाएं
  10. वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं

    laajavab sher

    जवाब देंहटाएं
  11. वो गिन-गिनकर मेरी नाक़ामियों को याद करते हैं
    मुझे उनके तरक्क़ी के तरीक़े याद होते हैं

    बहुत खूब !
    इला

    जवाब देंहटाएं
  12. दिखे जो मस्लहत तो पल में सब कुछ भूल जाते हैं
    वो जिनको ज़िंदगी के सब पहाड़े याद होते हैं
    vah ..............bahut sunder
    rachana

    जवाब देंहटाएं
  13. किसी दिन तुम ख़ुदी को, ख़ुदसे पीछे छोड़ जाते हो
    वो सब जो तुमसे आगे थे, तुम्हारे बाद होते हैं

    ...bahut badaa sach jisey ham aksar mehsoos hi nahi kar paatey....aapki shaayri behad oomdaa hai.
    -renu ahuja. www.kavyagagan.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

Protected by Copyscape plagiarism checker - duplicate content and unique article detection software.

ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

#girls #rape #poetry #poem #verse # लड़कियां # बलात्कार # कविता # कविता #शायरी (1) अंतर्द्वंद (1) अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (1) अंधविश्वास (1) अकेला (3) अनुसरण (2) अन्याय (1) अफ़वाह (1) अफवाहें (1) अर्थ (1) असमंजस (2) असलियत (1) अस्पताल (1) अहिंसा (3) आंदोलन (4) आकाश (1) आज़ाद (1) आतंकवाद (2) आत्म-कथा (2) आत्मकथा (1) आत्मविश्वास (2) आत्मविश्वास की कमी (1) आध्यात्मिकता (1) आभास (1) आरक्षण (3) आवारग़ी (1) इंटरनेट की नयी नैतिकता (1) इंटरनेट पर साहित्य की चोरी (2) इंसान (4) इतिहास (2) इमेज (1) ईक़िताब (1) ईमानदार (1) ईमानदारी (2) ईमेल (1) ईश्वर (5) उत्कंठा (2) उत्तर भारतीय (1) उदयप्रकाश (1) उपाय (1) उर्दू (1) उल्टा चोर कोतवाल को डांटे (1) ऊंचा (1) ऊब (1) एक गेंद करोड़ों पागल (1) एकतरफ़ा रिश्ते (1) ऐंवेई (2) ऐण्टी का प्रो (1) औरत (2) औरत क्या करे (3) औरत क्या करे ? (3) कचरा (1) कट्टरपंथ (2) कट्टरपंथी (1) कट्टरमुल्लापंथी (1) कठपुतली (1) कन्फ्यूज़न (1) कमज़ोर (1) कम्युनिज़्म (1) कर्मकांड (1) कविता (68) कशमकश (2) क़ागज़ (1) क़ाग़ज़ (1) कार्टून (3) काव्य (5) क़िताब (1) कुंठा (1) कुण्ठा (1) क्रांति (1) क्रिकेट (2) ख़ज़ाना (1) खामख्वाह (2) ख़ाली (1) खीज (1) खेल (2) गज़ल (5) ग़जल (1) ग़ज़ल (28) ग़रीबी (1) गांधीजी (1) गाना (7) गाय (2) ग़ायब (1) गीत (7) गुंडे (1) गौ दूध (1) चमत्कार (2) चरित्र (4) चलती-फिरती लाशें (1) चांद (2) चालाक़ियां (1) चालू (1) चिंतन (2) चिंता (1) चिकित्सा-व्यवस्था (1) चुनाव (1) चुहल (2) चोरी और सीनाज़ोरी (1) छंद (1) छप्पर फाड़ के (1) छोटा कमरा बड़ी खिड़कियां (3) छोटापन (1) छोटी कहानी (1) छोटी बहर (1) जड़बुद्धि (1) ज़बरदस्ती के रिश्ते (1) जयंती (1) ज़हर (1) जागरण (1) जागरुकता (1) जाति (1) जातिवाद (2) जानवर (1) ज़िंदगी (1) जीवन (1) ज्ञान (1) झूठ (3) झूठे (1) टॉफ़ी (1) ट्रॉल (1) ठग (1) डर (4) डायरी (2) डीसैक्सुअलाइजेशन (1) ड्रामा (1) ढिठाई (2) ढोंगी (1) तंज (1) तंज़ (10) तमाशा़ (1) तर्क (2) तवारीख़ (1) तसलीमा नसरीन (1) ताज़ा-बासी (1) तालियां (1) तुक (1) तोते (1) दबाव (1) दमन (1) दयनीय (1) दर्शक (1) दलित (1) दिमाग़ (1) दिमाग़ का इस्तेमाल (1) दिल की बात (1) दिल से (1) दिल से जीनेवाले (1) दिल-दिमाग़ (1) दिलवाले (1) दिशाहीनता (1) दुनिया (2) दुनियादारी (1) दूसरा पहलू (1) देश (2) देह और नैतिकता (6) दोबारा (1) दोमुंहापन (1) दोस्त (1) दोहरे मानदंड (3) दोहरे मानदण्ड (14) दोहा (1) दोहे (1) द्वंद (1) धर्म (1) धर्मग्रंथ (1) धर्मनिरपेक्ष प्रधानमंत्री (1) धर्मनिरपेक्षता (4) धारणा (1) धार्मिक वर्चस्ववादी (1) धोखेबाज़ (1) नकारात्मकता (1) नक्कारखाने में तूती (1) नज़रिया (1) नज़्म (4) नज़्मनुमा (1) नफरत की राजनीति (1) नया (3) नया-पुराना (1) नाटक (2) नाथूराम (1) नाथूराम गोडसे (1) नाम (1) नारा (1) नास्तिक (6) नास्तिकता (2) निरपेक्षता (1) निराकार (3) निष्पक्षता (1) नींद (1) न्याय (1) पक्ष (1) पड़़ोसी (1) पद्य (3) परंपरा (5) परतंत्र आदमी (1) परिवर्तन (4) पशु (1) पहेली (3) पाखंड (8) पाखंडी (1) पाखण्ड (6) पागलपन (1) पिताजी (1) पुण्यतिथि (1) पुरस्कार (2) पुराना (1) पेपर (1) पैंतरेबाज़ी (1) पोल (1) प्रकाशक (1) प्रगतिशीलता (2) प्रतिष्ठा (1) प्रयोग (1) प्रायोजित (1) प्रेम (2) प्रेरणा (2) प्रोत्साहन (2) फंदा (1) फ़क्कड़ी (1) फालतू (1) फ़िल्मी गाना (1) फ़ेसबुक (1) फ़ेसबुक-प्रेम (1) फैज़ अहमद फैज़्ा (1) फ़ैन (1) फ़ॉलोअर (1) बंद करो पुरस्कार (2) बच्चन (1) बच्चा (1) बच्चे (1) बजरंगी (1) बड़ा (2) बड़े (1) बदमाशी (1) बदलाव (4) बयान (1) बहस (15) बहुरुपिए (1) बात (1) बासी (1) बिजूके (1) बिहारी (1) बेईमान (2) बेईमानी (2) बेशर्मी (2) बेशर्मी मोर्चा (1) बेहोश (1) ब्लाॅग का थोड़ा-सा और लोकतंत्रीकरण (3) ब्लैकमेल (1) भक्त (2) भगवान (2) भांड (1) भारत का चरित्र (1) भारत का भविष्य (1) भावनाएं और ठेस (1) भाषणबाज़ (1) भीड़ (5) भ्रष्ट समाज (1) भ्रष्टाचार (5) मंज़िल (1) मज़ाक़ (1) मनोरोग (1) मनोविज्ञान (5) ममता (1) मर्दानगी (1) मशीन (1) महात्मा गांधी (3) महानता (1) महापुरुष (1) महापुरुषों के दिवस (1) मां (2) मातम (1) माता (1) मानवता (1) मान्यता (1) मायना (1) मासूमियत (1) मिल-जुलके (1) मीडिया का माफ़िया (1) मुर्दा (1) मूर्खता (3) मूल्य (1) मेरिट (2) मौक़ापरस्त (2) मौक़ापरस्ती (1) मौलिकता (1) युवा (1) योग्यता (1) रंगबदलू (1) रचनात्मकता (1) रद्दी (1) रस (1) रहस्य (2) राज़ (2) राजनीति (5) राजेंद्र यादव (1) राजेश लाखोरकर (1) रात (1) राष्ट्र-प्रेम (3) राष्ट्रप्रेम (1) रास्ता (1) रिश्ता और राजनीति (1) रुढ़ि (1) रुढ़िवाद (1) रुढ़िवादी (1) लघु व्यंग्य (1) लघुकथा (10) लघुव्यंग्य (4) लालच (1) लेखक (1) लोग क्या कहेंगे (1) वात्सल्य (1) वामपंथ (1) विचार की चोरी (1) विज्ञापन (1) विवेक (1) विश्वगुरु (1) वेलेंटाइन डे (1) वैलेंटाइन डे (1) व्यंग्य (87) व्यंग्यकथा (1) व्यंग्यचित्र (1) व्याख्यान (1) शब्द और शोषण (1) शरद जोशी (1) शराब (1) शातिर (2) शायद कोई समझे (1) शायरी (55) शायरी ग़ज़ल (1) शेर शायर (1) शेरनी का दूध (1) संगीत (2) संघर्ष (1) संजय ग्रोवर (3) संजयग्रोवर (1) संदिग्ध (1) संपादक (1) संस्थान (1) संस्मरण (2) सकारात्मकता (1) सच (4) सड़क (1) सपना (1) समझ (2) समाज (6) समाज की मसाज (37) सर्वे (1) सवाल (2) सवालचंद के चंद सवाल (9) सांप्रदायिकता (5) साकार (1) साजिश (1) साभार (3) साहस (1) साहित्य (1) साहित्य की दुर्दशा (6) साहित्य में आतंकवाद (18) सीज़ोफ़्रीनिया (1) स्त्री-विमर्श के आस-पास (18) स्लट वॉक (1) स्वतंत्र (1) हमारे डॉक्टर (1) हयात (1) हल (1) हास्य (4) हास्यास्पद (1) हिंदी (1) हिंदी दिवस (1) हिंदी साहित्य में भीड/भेड़वाद (2) हिंदी साहित्य में भीड़/भेड़वाद (5) हिंसा (2) हिन्दुस्तानी (1) हिन्दुस्तानी चुनाव (1) हिम्मत (1) हुक्मरान (1) होलियाना हरकतें (2) active deadbodies (1) alone (1) ancestors (1) animal (1) anniversary (1) applause (1) atheism (1) audience (1) author (1) autobiography (1) awards (1) awareness (1) big (2) Blackmail (1) book (1) buffoon (1) chameleon (1) character (2) child (2) comedy (1) communism (1) conflict (1) confusion (1) conspiracy (1) contemplation (1) corpse (1) Corrupt Society (1) country (1) courage (2) cow (1) cricket (1) crowd (3) cunning (1) dead body (1) decency in language but fraudulence of behavior (1) devotee (1) devotees (1) dishonest (1) dishonesty (2) Doha (1) drama (3) dreams (1) ebook (1) Editor (1) elderly (1) experiment (1) Facebook (1) fan (1) fear (1) forced relationships (1) formless (1) formless god (1) friends (1) funny (1) funny relationship (1) gandhiji (1) ghazal (20) god (1) gods of atheists (1) goons (1) great (1) greatness (1) harmony (1) highh (1) hindi literature (4) Hindi Satire (11) history (2) history satire (1) hollow (1) honesty (1) human-being (1) humanity (1) humor (1) Humour (3) hypocrisy (4) hypocritical (2) in the name of freedom of expression (1) injustice (1) inner conflict (1) innocence (1) innovation (1) institutions (1) IPL (1) jokes (1) justice (1) Legends day (1) lie (3) life (1) literature (1) logic (1) Loneliness (1) lonely (1) love (1) lyrics (4) machine (1) master (1) meaning (1) media (1) mob (3) moon (2) mother (1) movements (1) music (2) name (1) neighbors (1) night (1) non-violence (1) old (1) one-way relationships (1) opportunist (1) opportunistic (1) oppotunism (1) oppressed (1) paper (2) parrots (1) pathetic (1) pawns (1) perspective (1) plagiarism (1) poem (12) poetry (29) poison (1) Politics (1) poverty (1) pressure (1) prestige (1) propaganda (1) publisher (1) puppets (1) quarrel (1) radicalism (1) radio (1) Rajesh Lakhorkar (1) rationality (1) reality (1) rituals (1) royalty (1) rumors (1) sanctimonious (1) Sanjay Grover (2) SanjayGrover (1) satire (30) schizophrenia (1) secret (1) secrets (1) sectarianism (1) senseless (1) shayari (7) short story (6) shortage (1) sky (1) sleep (1) slogan (1) song (10) speeches (1) sponsored (1) spoon (1) statements (1) Surendra Mohan Pathak (1) survival (1) The father (1) The gurus of world (1) thugs (1) tradition (3) trap (1) trash (1) tricks (1) troll (1) truth (3) ultra-calculative (1) unemployed (1) values (1) verse (6) vicious (1) violence (1) virtual (1) weak (1) weeds (1) woman (2) world (2) world cup (1)