सोमवार, 10 जनवरी 2011

आत्मविश्वास की खोज

एक वक्त था जब आत्मविश्वास का ज़िक्र आते ही मैं घबरा जाता था। तब तक मुझे यही पता था कि यह कोई ऐसी दुर्लभ शय है जो मेरे पास नहीं है और इसके बिना ज़िंदगी जो है बेकार है। जो भी मुझसे कहता कि तुममें आत्मविश्वास नहीं है मैं मान लेता कि ज़रुर इसमें बहुत आत्मविश्वास है इसलिए बेधड़क ऊंगली उठा रहा है। तब तक मुझे यही ग़लतफ़हमी थी कि यह कोई ऐसा विश्वास है जो ‘आत्म’ से यानि अपने भीतर से आता है। मैं क़िताबें बहुत पढ़ता था। क़िताबों से जो ‘आत्मविश्वास’ मिलता वह घर से बाहर निकलते ही डगमगाने लगता और मैं कन्फ्यूज़ हो जाता। मैं और ज़्यादा क़िताबें पढ़ता। परेशानी की चरमावस्था में मुझे कुछ ऐसी क़िताबें मिली जिनमें आत्मविश्वास बढ़ाने के नुस्ख़े थे। जहां तक मुझे याद है कोई क़िताब ऐसी नहीं थी जिसमें व्याख्या की गयी हो कि आत्मविश्वास होता क्या है। अकसर यही सलाहें होतीं कि आईने के सामने खड़े होकर 10 बार बोलो कि ‘मुझमें आत्मविश्वास है’ या कॉपी पर बीस बार लिखो कि ‘मुझमें आत्मविश्वास है’। मैं फिर कन्फ़्यूज़ हो जाता कि जो चीज़ मुझे पता ही नहीं कि होती क्या है उसके बारे में कैसे कहूं कि मुझमें है! यह तो सरासर झूठ होगा।
संकट जानलेवा ही नहीं ईमानलेवा भी था।
उन्हीं दिनों मैंने उस आदमी को देखा जो अपनी धुन में मस्त रास्ते से गुज़रता, अकसर किसीको भी सलाम-नमस्ते किए बिना। कुछेक दफ़ा कर भी लेता। अकसर लोग कहते कि देखो कितना अहंकारी है। कुछ लोग यह भी कहते कि इसमें आत्मविश्वास की कमी है। मैं जो कि कुछ मामलों में बचपन से ही बिगड़ैल था, लोगों की बातों पर न जाकर यह सोच बैठता कि किसीको नमस्ते न करके यह आदमी किसी का लेता क्या है! नमस्ते न करना आवश्यक रुप से किसी का अपमान नहीं है, विरोध नहीं है। अहंकारी तो यह तब होता जब यह चाहता कि हर कोई मुझे सलाम करे, इज़्ज़त दे। मैं सोचता कि आखि़र लोग अपनी बात पर इतने दृढ़ और एकमत क्यों हैं कि यही अहंकारी है। सोचते-सोचते मुझे लगने लगा कि यह दृढ़ता इस बात से आ रही है कि ऐसा सोचने वालों की संख्या अपेक्षाकृत बहुत ज़्यादा है और वह अकेला है। मुझे लगा कि वह आदमी अहंकारी या आत्मविश्वासहीन है, यह तो पता नहीं मगर इतना ज़रुर तय है कि लोग अकसर अहंकारी हैं और उनका आत्मविश्वास अपनी समझ से कम और भीड़ की स्वीकृति या सहमति से ज़्यादा आता है।
क्या यही आत्मविश्वास होता है ! यह तो बड़ी अजीब-सी चीज़ है ! मैं फिर परेशान, फिर कन्फ्यूज़ड्। संतोष बस इतना कि चलो मुझे पता तो है कि मैं कन्फ्यूज़ड् हूं और अपने कन्फ्यूज़न को किसी सिद्धांत का (पा) जामा पहनाने की कोशिश नहीं कर रहा।
आगे चलकर तो यह लगने लगा कि अपने आप में विश्वास पूरी तरह खो देना और भीड़ की स्वीकृति की आशा में ख़ुदको बहुमत के रंग में रंगते चले जाना ही आत्मविश्वास का स्रोत और समझ है। आत्मविश्वास चाहे जो भी होता हो मगर दो आत्मविश्वासियों में फ़र्क शायद इतना ही होता है कि उनका भीड़ का चुनाव अलग होता है। किसी को आत्मविश्वास राष्ट्रवादी भीड़ से मिलता है तो किसीको मार्क्सवादी भीड़ से। एक तरह की भीड़ है जो क़ानूनविरोधी खाप पंचायतों के सरपंचो को आत्मविश्वास देती है तो दूसरी तरह की भीड़ है जो दहेज विरोधी और पर्यावरण समर्थक कानूनों को सरेआम तोड़ने वाली शहरी शादियों में शामिल होने वाले प्रगतिशीलों को। वैसे थोड़ा आत्मविश्वास बढ़ाकर सोचें तो क्या ये दो तरह की भीड़ और दो तरह के लोग हैं या एक ही तरह के हैं!
भीड़ की ही ‘प्रेरणा’ है कि बेईमान उस चीज़ से भरा-पूरा है जिसे आत्मविश्वास कहते हैं। ईमानदार इस मामले में अकसर ‘हैंड टू माउथ’ भी नहीं हो पाते। मैंने कभी किसी को कहते नहीं सुना कि दाऊद-वाऊद, हर्षद-वर्षद, राटा-टाडिया-इरला-विरला-फ़लानी-खंुबानी आदि-आदि में आत्मविश्वास की कमी है (कम्बख्तमारे नाम तक नहीं याद रहते मुझे तो)। बहरहाल नाम जो भी हों इन महानात्माओं का आत्मविश्वास शायद यहीं से आता है कि पट्ठे ऊपर से चाहे जो कुछ दिखाएं पर अंदर से ज़्यादातर लोग हैं हमारे ही जैसे।
कई लोगों को आत्मविश्वास पुराने या स्थापित विचारकों के उद्धरणों से मिलता है। हम लेखक जब तक बीस-पच्चीस विचारकों के विचारों के टुकड़े जहां-तहां न ठूंस दें, हमें अपना लेख, लेख ही नहीं लगता। पुराने या स्थापित विचारक का टुकड़ा लेख में सजाते ही लेख को तार्किक माना जाने लगता है भले उस टुकड़े में रत्ती-भर तार्किकता न हो। इसी तरह कई लोगों को पुरानी कहावतों/मुहावरों से आत्मविश्वास मिलता है। एक कहावत अकसर इस्तेमाल होती है-‘प्रेम और जंग में सब जायज़ है।’ मैं सोचता हूं कि अगर प्रेम में सब जायज़ है तो फिर एम. एम. एस. बनाना, प्रेमी की हत्या कर देना और प्रेमिका के मुंह पर तेज़ाब डाल देना भी जायज़ ही है। उसपर इतनी हाय-तौबा क्यों !?
एक मित्र का कहना है कि आत्मविश्वासियों की श्रेणी में वे लोग भी रखे जाते हैं जो दूसरों के बारे में तो सब कुछ जानते हैं या उन्हें लगता है कि जानते हैं मगर अपने और अपने अंधे समर्थकों के बारे में कुछ भी नहीं जानते। उन्हें लगता है दूसरे भी उनके बारे में कुछ नहीं जानते।
कई बार तो लगता है कि मूर्खता, ढिठाई, बेशर्मी, तोतारटंत और आत्मविश्वास पर्यायवाची शब्द हैं।
इस कथन के लिए मैं ख़ुदसे भी उतना ही क्षमाप्रार्थी हूं जितना आपसे, अन्यथा न लें।
आप यह तो नहीं सोच रहे कि अब मुझमें आत्मविश्वास आ गया है ! सच्ची बताऊं तो मुझे अभी तक नहीं पता कि आत्मविश्वास होता क्या है। इतना ज़रुर पता है कि लिखूंगा वही जो महसूस करता हूं।
खुलकर कहूं तो आत्मविश्वास कही जाने वाली चीज़ को मैंने अकसर जिस तरह के लोगों में देखा है, डर लगता है कहीं मुझमें भी न आ जाए !
-संजय ग्रोवर

18 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस बात से पूर्ण सहमति है कि लिखूंगा वही, जो महसूस करता हूँ।

    वास्‍तव में हर व्‍यक्ति अपनी सोच के विस्‍तार के लिए ही लिखता है।

    ---------
    कादेरी भूत और उसका परिवार।
    मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।

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  2. लिखते रहिए, सोच में विस्‍तार आता चला जाएगा।

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  3. फेसबुक पर ट्रेलर ही ऐसा दिखाया आपने के भागा चला आया पूरी फिल्म देखने ....मूर्खता, ढिठाई, बेशर्मी और आत्मविश्वास पर्यायवाची शब्द ह..इतना ज़रुर पता है कि लिखूंगा वही जो महसूस करता हूं।..सीधा साधा सच्चा आलेख लिखा है आपने कन्फ्यूज़न कहाँ है .

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  4. aatm-vishvas meri nazar me satat apne ko vishvas dilana hai ki main bhi kuchh kar sakti hun sabse alag dhang se aur karti bhi hun .confused hona chhodiye-aapka aalekh bhi alag andaj me likha gaya aur sachchayi ke sath .isse bhi aapka aatm vishvas hi jhalakta hai .mere blog''vicharonkachabootra'par aapka hardik swagat hai .

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  5. वो लोग झूठ बोलते हैं जो कहते हैं कि उन्‍हें डर नहीं लगता लेकिन डर के आगे ही जीत है
    आत्‍मविश्‍वास का पारा घटता बढता रहता है मौसम समय के अनुसार

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  6. मुझे मालूम है कि आप नहीं सुधरेंगे !

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  7. मुक्ति, आपमें यह आत्मविश्वास कहां से आया कि सुधरना मुझी को चाहिए, आपको नहीं :)

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  8. Three Idiots ka "awl is well" yaad aa gaya...:)

    aatmviswas khud se aa jata hai...!

    waise aapki baat se sahmat..

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  9. बहुत ही सटीक व्यंग्य लिखा है आपने!

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  10. अच्छा व्यंग्य।
    वैसे बेमौके आत्मविश्वास दगा दे जाता है। इस से बड़ा कोई दगाबाज नहीं।

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  11. There exists a thin borderline between confidence and arrogance. It is sad that in today's context arrogance is taken as confidence. May be that is what prompted you to write this wonderful piece that is indeed worth pondering.

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  12. बात फिर वहीं आ जाती है, परिभाषाओं की दुनिया में जीने वाले, सुविधानुसार परिभाषायें घड़ लेते हैं। जिनमें आत्‍मविश्‍वास की कमी होती है उनके लिये बहुत सी फ़ार्मेसी हैं जो ताकत, जोश, जवानी और आत्‍मविश्‍वास भरे जीवन का ईलाज करने का दावा करती हैं पूरे आत्‍मविश्‍वास से।

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  13. व्यंग्य में ऐसे विषय इससे पहले शायद ही किसीने उठाए हों। एक तार्किक धड़ल्ले के साथ अपनी बात कहते हैं आप। अद्भुत !

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  14. आप के इस शान्दार लेख को पदने के बाद यही समाज आया है की अतामविश्वास बाज़ार में मिलने वाली कोई वास्तु नहीं है, यह तो हमारे अंदर ही है उससे उज्जागर करने की ज़रूत है. बहुत बढ़िया लेख के लिए बधाई सवीकार करे. ..........जोली अंकल

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  15. @सुभाष चंदर
    यह तार्किक धड़ल्ला क्या होता है जी :)
    @संजय ग्रोवर
    लगता है कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास आ गया है आपमें :)
    वैसे शुक्रिया कि सोचने पर मजबूर किया।

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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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