शनिवार, 6 नवंबर 2010

कट्टरपंथी खोपड़ी.....

दोहानुमा




कट्टरपंथी खोपड़ी, प्रगतिशील हैं केश
नीयत छिपती ही नहीं, कितना बदलो वेश




रंगों का आदर करें, रंगों का अपमान
चश्मे वालों को कहाँ दिखते हैं इंसान




भीड़ के ऊपर तू खड़ा, तेरे ऊपर भीड़
चाहे जितना ले सजा, कच्चा तेरा नीड़




नए तुझे और उसे पुराने, जकड़े रहते ग्रंथ
वो भी कट्टरपंथ है, तू भी कट्टरपंथ




नयी हवा ने बीच में, खेला ऐसा खेल
संस्कार की रेल में, मच गई रेलमपेल




उसके पास प्रचार है, तेरे पास विचार
उसके पौबारह हुए, तेरा पड़ा अचार


-संजय ग्रोवर

23 टिप्‍पणियां:

  1. कट्टरपंथी खोपड़ी, प्रगतिशील हैं केश
    नीयत छिपती ही नहीं, कितना बदलो वेश
    वाह सर आज तो आपने धो कर रख दिया सबको..........

    जवाब देंहटाएं
  2. नीयत छिपती ही नहीं, कितना बदलो वेश
    एक से बढकर एक।

    जवाब देंहटाएं
  3. भीड़ के ऊपर तू खड़ा, तेरे ऊपर भीड़
    चाहे जितना ले सजा, कच्चा तेरा नीड़

    सही है

    जवाब देंहटाएं
  4. "उसके पास प्रचार है, तेरे पास विचार
    उसके पौबारह हुए, तेरा पड़ा अचार"
    क्या बात है !‌
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. उदारवाद की परिभाषा क्या है ?

    जवाब देंहटाएं
  6. दोस्त यकीनन
    बहुत ही शानदार लिखा गया है
    तमाचा है..
    बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. भीड़ के ऊपर तू खड़ा, तेरे ऊपर भीड़
    चाहे जितना ले सजा, कच्चा तेरा नीड़
    sacchi sateek baat bade sahityik andaz mein vyakt hui hai!!!

    जवाब देंहटाएं
  8. उसके पास प्रचार है, तेरे पास विचार
    उसके पौबारह हुए, तेरा पड़ा अचार !!

    सही कहा आपने! शत प्रतिशत सहमत्!

    जवाब देंहटाएं
  9. Sanjay jee!!

    भीड़ के ऊपर तू खड़ा, तेरे ऊपर भीड़
    चाहे जितना ले सजा, कच्चा तेरा नीड़

    bahut pyari baat kahi aapne!!
    ek sateek rachna........

    जवाब देंहटाएं
  10. नए तुझे और उसे पुराने, जकड़े रहते ग्रंथ
    वो भी कट्टरपंथ है, तू भी कट्टरपंथ

    नयी हवा ने बीच में, खेला ऐसा खेल
    संस्कार की रेल में, मच गई रेलमपेल
    बहुत बढिया। धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  11. नए तुझे और उसे पुराने, जकड़े रहते ग्रंथ
    वो भी कट्टरपंथ है, तू भी कट्टरपंथ

    उसके पास प्रचार है, तेरे पास विचार
    उसके पौबारह हुए, तेरा पड़ा अचार

    सभी दोहे सामयिक व स्तरीय हैं। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. भीड़ के ऊपर तू खड़ा, तेरे ऊपर भीड़
    चाहे जितना ले सजा, कच्चा तेरा नीड़

    नए तुझे और उसे पुराने, जकड़े रहते ग्रंथ
    वो भी कट्टरपंथ है, तू भी कट्टरपंथ

    wah janab kya khoobsurat assar hai
    daad kubool karen

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  13. भीड़ क ेउपर तू खड़ा तेरे उपर भीड़,

    सुन्दर दोहे। बधाई

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  14. भाई आप ऐसी चोट करते हैं कि चोट खाने वाला भी दाद देकर चला जाता है। बाद में शरीर में कहीं दर्द उठता है तो जान नहीं पाता चोट कब और कहां लगी... :)

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  15. अच्छे विचार सुन्दर दोहे! बधाई!!

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कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

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