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हिम्मत से सच बात कहो तो बुरा मानते हैं लोग, रो-रो के कहने की हमें आदत नहीं रही। "बिच्छू डॉट कॉम" द्वारा लगातार सत्ता एवं व्यवस्था विरोधी खबरें एवं संपादकीय लिखने से सत्ता के दलालों और सत्ता के साकेत में बैठे लोगों के भाट और चारण लगातार मेरे बारे में विष वमन कर रहे हैं। कुछ लोगों को अखबार की आर्थिक व्यवस्था को लेकर चिंता है, तो कुछ महानुभावों को मेरे एवं मेरे परिवार के बारे में जानने की इच्छा है। मुख्यमंत्री निवास के एक अफसर को तो सिर्फ और सिर्फ मेरे बारे में जानने की जिज्ञासा है। ऐसे सभी महानुभावों के लिए संजय ग्रोवर की पांच गजलें प्रस्तुत हैं संपादकीय के रूप में...
एक...
कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूं
किसी साजिश का मैं हिस्सा नहीं हूं
किसी की छाप अब मुझ पर नहीं है
मैं ज्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हूं
तुम्हारी और मेरी दोस्ती क्या
मुसीबत में, मैं खुद अपना नहीं हूं
मुझे मत ढूंढना बाजार में तुम
किसी दुकान पर बिकता नहीं हूं
मुझे देकर न कुछ तुम पा सकोगे
मैं खोटा हूं मगर सिक्का नहीं हूं
तुम्हें क्यूं अपने जैसा मैं बनाऊं
यकीनन जब मैं खुद तुम सा नहीं हूं
लतीफा भी चलेगा गर नया हो
मैं हर इक बात पर हंसता नहीं हूं
जमीं मुझको भी अपना मानती है
कि मैं आकाश से टपका नहीं हूं
कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूं
किसी साजिश का मैं हिस्सा नहीं हूं
किसी की छाप अब मुझ पर नहीं है
मैं ज्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हूं
तुम्हारी और मेरी दोस्ती क्या
मुसीबत में, मैं खुद अपना नहीं हूं
मुझे मत ढूंढना बाजार में तुम
किसी दुकान पर बिकता नहीं हूं
मुझे देकर न कुछ तुम पा सकोगे
मैं खोटा हूं मगर सिक्का नहीं हूं
तुम्हें क्यूं अपने जैसा मैं बनाऊं
यकीनन जब मैं खुद तुम सा नहीं हूं
लतीफा भी चलेगा गर नया हो
मैं हर इक बात पर हंसता नहीं हूं
जमीं मुझको भी अपना मानती है
कि मैं आकाश से टपका नहीं हूं
दो...
जाने मैं किस डर में था
फिर देखा, तो घर में था
जो ढब कट्टर लोगों का है
वही कभी बंदर में था
लोग नए थे बात पुरानी
क्या मैं किसी खण्डहर में था
बच निकला उससे, तो जाना
वो भी इसी अवसर में था
उनके जख्म सजे थे तन पर
मेरा दर्द जिगर में था
जाने मैं किस डर में था
फिर देखा, तो घर में था
जो ढब कट्टर लोगों का है
वही कभी बंदर में था
लोग नए थे बात पुरानी
क्या मैं किसी खण्डहर में था
बच निकला उससे, तो जाना
वो भी इसी अवसर में था
उनके जख्म सजे थे तन पर
मेरा दर्द जिगर में था
तीन...
जिस समाज में कहना मुश्किल है बाबा
उस समाज में रहना मुश्किल है बाबा
तुम्हीं हवा के संग उड़ो पत्तों की तरह
मेरे लिए तो बहना मुश्किल है बाबा
जिस गरदन में फंसी हुई हों आवाजें
उस गरदन में गहना मुश्किल है बाबा
भीड़ हटे तो हम भी देखें सच का बदन
भीड़ को तुमने पहना, मुश्किल है बाबा
अंधी श्रद्धा को, भेड़ों को, तोतों को
गर विवेक हो, सहना मुश्किल है बाबा
गिरे उठें, फिर चलें कि चलते ही जाएं
रुकें, सड़े तो सहना मुश्किल है बाबा
जिस समाज में कहना मुश्किल है बाबा
उस समाज में रहना मुश्किल है बाबा
तुम्हीं हवा के संग उड़ो पत्तों की तरह
मेरे लिए तो बहना मुश्किल है बाबा
जिस गरदन में फंसी हुई हों आवाजें
उस गरदन में गहना मुश्किल है बाबा
भीड़ हटे तो हम भी देखें सच का बदन
भीड़ को तुमने पहना, मुश्किल है बाबा
अंधी श्रद्धा को, भेड़ों को, तोतों को
गर विवेक हो, सहना मुश्किल है बाबा
गिरे उठें, फिर चलें कि चलते ही जाएं
रुकें, सड़े तो सहना मुश्किल है बाबा
चार...
लड़के वाले नाच रहे थे लडक़ी वाले गुमसुम थे
याद करो उस वारदात में अक्सर शामिल हम-तुम थे
बोलचाल और खाल-बाल जो झट से बदला करते थे
सोच-समझ की बात करें तो अभी भी कुत्ते की दुम थे
बाबा, बिक्री, बड़बोलेपन, चमत्कार थे चौतरफा
तर्क की बातें करने वाले सच्चे लोग कहां गुम थे!
उनपे हंसो जो बुद्ध कबीर के हश्र पे असर हंसते हैं
ईमां वाले लोगों को तो अपने नतीजे मालुम थे
अपनी कमियां झुठलाने को तुमने हमें दबाया था
जब हम खुद को जान चुके तब हमने जाना या तुम थे
लड़के वाले नाच रहे थे लडक़ी वाले गुमसुम थे
याद करो उस वारदात में अक्सर शामिल हम-तुम थे
बोलचाल और खाल-बाल जो झट से बदला करते थे
सोच-समझ की बात करें तो अभी भी कुत्ते की दुम थे
बाबा, बिक्री, बड़बोलेपन, चमत्कार थे चौतरफा
तर्क की बातें करने वाले सच्चे लोग कहां गुम थे!
उनपे हंसो जो बुद्ध कबीर के हश्र पे असर हंसते हैं
ईमां वाले लोगों को तो अपने नतीजे मालुम थे
अपनी कमियां झुठलाने को तुमने हमें दबाया था
जब हम खुद को जान चुके तब हमने जाना या तुम थे
पांच..
तुम देखना पुरानी वो चाल फिर चलेंगे
जिसकी लुटी है इज्जत उसको ही सजा देंगे
इक बेतुकी रवायत ऊपर से उनकी फितरत
तकलीफ भी वो देंगे, बदला भी वही लेंगे
वरना वो तुझको हंसके कमजोर ही करेंगे
उन पर जरूर हंसना जो आदतन हंसेंगे
जब आएगी मुसीबत टीवी के शहर वाले
झांकेंगे खिड़कियों से, घर से नहीं निकलेंगे
ये शे"र क्या हैं प्यारे, सब भर्ती का सामां हैं
गर पांच नहीं होंगे तो कैसे ये छपेंगे
वो ही है नूर वाले जो अक्ल के है अंधे
जलवा भी वही लेंगे फतवा भी वही देंगे।
तुम देखना पुरानी वो चाल फिर चलेंगे
जिसकी लुटी है इज्जत उसको ही सजा देंगे
इक बेतुकी रवायत ऊपर से उनकी फितरत
तकलीफ भी वो देंगे, बदला भी वही लेंगे
वरना वो तुझको हंसके कमजोर ही करेंगे
उन पर जरूर हंसना जो आदतन हंसेंगे
जब आएगी मुसीबत टीवी के शहर वाले
झांकेंगे खिड़कियों से, घर से नहीं निकलेंगे
ये शे"र क्या हैं प्यारे, सब भर्ती का सामां हैं
गर पांच नहीं होंगे तो कैसे ये छपेंगे
वो ही है नूर वाले जो अक्ल के है अंधे
जलवा भी वही लेंगे फतवा भी वही देंगे।
कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूं
जवाब देंहटाएंकिसी साजिश का मैं हिस्सा नहीं हूं
किसी की छाप अब मुझ पर नहीं है
मैं ज्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हूं
...badi bebaki se apne apni bat rakh di.kai bar kavitaon ke madhyam se ham achha kah jate hain !!
contact us और about us पन्ने खाली हैं. Dhanush News Network, India का copy right लगा हुआ है नीचे..Bichuchu.com का whois में सर्च करके होस्ट को लिखें.
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया, आकंाक्षा। पर क्या आप मुझे बता सकती हैं कि यह साइट किसकी है और ये साहब कौन हैं ? मैं इनका धन्यवाद करुं या इनसे शिकायत करुं !?
जवाब देंहटाएंलतीफा भी चलेगा गर नया हो
जवाब देंहटाएंमैं हर इक बात पर हंसता नहीं हूं
बच निकला उससे, तो जाना
वो भी इसी अवसर में था
भीड़ हटे तो हम भी देखें सच का बदन
भीड़ को तुमने पहना, मुश्किल है बाबा
बेहतरीन गज़लें
yah Bhopal ke awadhesh bajaj ka news paper aur E news megazine hai.
जवाब देंहटाएंये अवधेश बजाज जी हें पत्रकार हें और बिच्छु.कॉम पोर्टल चला रहें हें .....वाकई आपकी गजलें समय से जिद्द करती हुई अच्छी लगी बधाई...बधाई
जवाब देंहटाएंसंजय जी, इतना सुन्दर और सहज लिखा है, कि निगाहें अपने आप फ़िसलती सी चलतीं हैं.दुष्यंत कुमार की याद दिला गईं आपकी गज़लें..बधाई.
जवाब देंहटाएंप्रेरणा और जानकारी के लिए आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंअछा अनुवाद किया है आपने में माफ़ी चाहता हूँ की मेने आपके कुमेंट्स का जवाब नहीं दिया
जवाब देंहटाएंमेरी साईट को ज्वाइन कीजिये
wwwanimesh-charcha-animesh.blogspot.com
@animesh
जवाब देंहटाएंआपका कमेंट मेरे लिए फिलहाल एक पहेली की तरह है। अनुवाद, कमेंट...आदि कुछ भी मेरी समझ में नहीं आ रहा सिवाय इस बात के कि......
मेरी साईट को ज्वाइन कीजिये
कोई भी तयशुदा किस्सा नहीं हूं
जवाब देंहटाएंकिसी साजिश का मैं हिस्सा नहीं हूं
किसी की छाप अब मुझ पर नहीं है
मैं ज्यादा दिन कहीं रुकता नहीं हूं
संजय जी, गजल के उपरोक्त शेर दिल को छू गये. अपने बारे में बड़ी साफगोई से बात कह गये और मौजूदा हालात पर सवालिया निशान भी खड़े कर दिए. भई, कमाल का जादू है आपकी लेखनी में. बधाई स्वीकारें....