गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है


रेखाकृति: संजय ग्रोवर
ग़ज़ल

लो अब सारी कहानी सामने है
तुम्हारी ही जु़बानी, सामने है

तुम्हारे अश्व खुद निकले हैं टट्टू
अगरचे राजधानी सामने है

गिराए तख़्त, उछले ताज फिर भी
वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है

मेरी उरियानियां भी कम पड़ेंगीं
बशर इक ख़ानदानी सामने है

तेरे माथे पे फिर बलवों के टीके-
बुज़ुर्गों की निशानी सामने है !

अभी जम्हूरियत की उम्र क्या है
समूची ज़िन्दगानी सामने है


-संजय ग्रोवर

(‘द सण्डे पोस्ट’ में प्रकाशित)

15 टिप्‍पणियां:

  1. khubsurat gazal, mubarak sanjay ji aapki gazal pahli baar padhi hai cartoon to dekhe the , aapka ye hunar kabil-e-tareef hai.

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  2. SHUKRIYA SWAPN JI.
    aur....
    वेबपत्रिका
    www.deshkaal.com
    पर पढ़ें संजय ग्रोवर का व्यंग्य
    लिंक है:-
    http://www.deshkaal.com/Details.aspx?nid=34200924557951
    या फिर संजय ग्रोवर या संवादघर को कापी करके गूगल सर्च में पेस्ट करके खोजिए और जानिए सब कुछ।

    जवाब देंहटाएं
  3. तेरे माथे पे फिर बलवों के टीके-
    बुज़ुर्गों की निशानी सामने है !

    kya baat hai..

    जवाब देंहटाएं
  4. संजय जी बेहद अर्थ परक गजल ...हर मतला ...जिन्दगी से रूबरू ...तुम्हारे अश्व खुद निकले हैं टट्टूअगरचे राजधानी सामने है.....बधया बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  5. बिल्कुल संजय जी। आपका ही ब्लॉग है। अनुमति की जरूरत नहीं है।

    जवाब देंहटाएं
  6. अजी जाओ जी जाओ...साडा खिसयानी बिल्ली ने खम्बा नोच नोच पुट सुट्या ते तुसी हूँ ग़ालिब नु लै के हुन् आये हो ....!!

    ग़ज़ल पदन फेर आवांगी तसल्ली नल ...अजे मूड बडा बिगडा होइअया.....!!

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  7. बहुत खूब... दुष्यंत कुमार की याद आ गई..

    जवाब देंहटाएं
  8. गिराए तख़्त, उछले ताज फिर भी
    वही ज़िल्ले-सुब्हानी सामने है

    VAAH

    जवाब देंहटाएं

कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते....

देयर वॉज़ अ स्टोर रुम या कि दरवाज़ा-ए-स्टोर रुम....

ख़ुद फंसोगे हमें भी फंसाओगे!

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ढूंढो-ढूंढो रे साजना अपने काम का मलबा.........

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