सरल कुमार पूर्वाग्रहों से रहित एक सरल स्वभाव का आदमी था। जैसे कि दूसरे रंगों के पहनता था वैसे ही एक दिन उसने नारंगी कपड़े पहन लिए। लोग बोले कि वह फलां दल में शामिल हो गया है। सरल कुमार ने हैरान और परेशान होकर हरे रंग के कपड़े पहन लिए तो लोग कहने लगे कि देखो, पट्ठा अब ढिकां दल में शामिल हो गया है, दल बदलू कहीं का। सरल कुमार ने बाल छोटे करवा लिए। लोग बोले कि बीमार लग रहे हो। सरल कुमार ने लम्बे बाल कर लिए। लोग बोले क्या लड़कियों जैसा हुलिया बना रखा है। ज्यादा हीरो बनता है। सरल कुमार ने पहले जैसे कर लिए, न बड़े न छोटे। लोग बोले कि साला वोई का वोई रहा। इस की जिंदगी में कभी कोई चेन्ज नहीं आ सकता। सरल कुमार धीमे-धीमे सीधी चाल चला। लोग बोले जनानिया है। सरल कुमार तन के चला। लोग कहने लगे कि साले की अकड़ तो देखो। ऐसी काया और कैसी चाल। एक दिन ठोंक दो ससुर को तब मानेगा।सरल कुमार ने विनम्रता से बात की। लोग बोले कि घुग्घू है पट्ठा। बिलकुल भौंदू। कुछ नहीं कर पाएगा ज़िन्दगी भर। सरल कुमार ने दबंग आवाज में, स्पष्ट शब्दों में, ईमानदारी और गंभीरता से अपनी बात को कहा। लोग कहने लगे कि कितना क्रैक आदमी है। सनकी पागल। अपना-पराया नहीं देखता। किसी का लिहाज नहीं करता। साला ईमानदारी के गटर में सड़-सड़ के मरेगा। सरल कुमार ने गुस्सा खा कर एक दिन लोगों को खरी-खरी सुना दी। लोग बोले कि देखो कितना दुष्ट है। एकदम लुच्चा और गुण्डा। साफ मुंह पर कह देता है।
सरल कुमार दिन-रात काम में जुट गया। लोग बोले कि पैसे के पीछे पागल है। सरल कुमार ने थोड़ा वक्त मौज-मस्ती के लिए निकालना शुरू कर दिया। लोग बोले कि निकम्मा है, अय्याश है, हरामखाऊ है। सरल कुमार ने एक जगह नौकरी कर ली। लोग बोले कि बेचारा, इतना बोझ तो नहीं था घर वालों पर कि नौकरी को मजबूर कर दिया। सरल कुमार लड़कियों को नहीं देखता था। लोग कहते थे कि झेंपू है, दम निकलता है, पसीने छूटते है। सरल कुमार कन्याओं को घूरने लगा। लोग बोले कि लुच्चा और लफंगा है कमीना। एक नम्बर का शोहदा। सरल कुमार ने कहा शादी नहीं करूंगा। लोगों में से एक बोला कि नामर्द होगा साला। दूसरा बोला ज्यादा ब्रहम्चारी बनता है।
तीसरा बोला समाज-सेवा का भूत चढ़ा है जनाब को। चैथा बोला आज़ाद पंछी है भई। पांचवां बोला कि ऐसे ही काम चला लेता होगा इधर-उधर से। छठा बोला कि नाकाम इश्क का मारा लगता है। सरल कुमार ने घोषणा की कि शादी करूंगा। लोग बोले कि हम तो पहले ही कहते थे। शुरू-शुरू में तो सब नखरे दिखाते हैं। बिना शादी के कुछ करना कोई इस के बस की बात थी?
सरल कुमार अकेला जा रहा था। लोगों ने कहा कि कोई नहीं पूछता साले को। सरल कुमार मित्र-मंडली के साथ घूम रहा था। लोग बोले कि इसका बस यही काम है। हर समय आवारा लोगों के साथ घूमना, मटरगश्ती करना। सरल कुमार ने अपने हक़ के लिए आवाज उठाई। लोग बोले कि बड़ा नेता बनता है। सरल कुमार चुपचाप रहने लगा। लोग बोले नपुंसक कहीं का।
सरल कुमार ने अपना सिर धुन लिया, माथा पीट लिया, करम ठोंक लिए। लोग बोले कि हम तुम्हारे साथ हैं, चिन्ता मत करो। सब ठीक हो जाएगा। सरल कुमार हंस पड़ा। लोग कहने लगे कि कैसा बेशर्म है, दांत फाड़े जा रहा है।
आखिर सरल कुमार करे तो करे क्या कि लोग उससे कुछ न कहें? अगर आप के पास कोई सुझाव हो तो मुझे भेज दें, मैं सरल कुमार तक पहुंचा दूंगा।
इस दौरान यह शेर पढ़िए:
कुछ लोग थे कि वक्त के सांचे में ढल गए!
कुछ लोग हैं कि वक्त के सांचे बदल गए!!
-संजय ग्रोवर
(24 मई, 1996 को पंजाब केसरी में प्रकाशित)
-संजय ग्रोवर
(24 मई, 1996 को पंजाब केसरी में प्रकाशित)

