No east or west,mumbaikar or bihaari, hindu/muslim/sikh/christian /dalit/brahmin… for me.. what I believe in logic, rationality and humanity...own whatever the good, the logical, the rational and the human here and leave the rest.
‘हम तुम्हे मंदिर में नहीं घुसने देंगे’ वे बोले मैं हंसा कुछ वक़्त ग़ुज़रा कई लोग हंसने लगे वे फ़िर आए और बोले- ‘हम तुम्हे मंदिर पर हंसनेवालों में शामिल नहीं करेंगे’ मैं हंसा कुछ वक़्त और ग़ुज़रा और कई लोग हंसे वे फिर चले आए अबके बोले ‘हमसे घृणा मत करो’ मैं हंसा बोले- ‘घृणा पर हंसते हो’ मैं हंसा वे हंसने लगे, बोले- ‘हम भी हंस सकते हैं, देखो ज़्यादा ऊंची आवाज़ में हंस सकते हैं हम तुम्हे अपने नये लाफ़्टर क्लब में नहीं आने देंगे’ मैं हंसा ‘तुम किसीसे प्रेम नहीं करते’ वे बोले मैं हंसा ‘वे हमारे दुश्मन हैं’ वे बोले मैं हंसा ‘हम तुम्हें उनमें शामिल कर देंगे’ वे बोले
मैं हंसा ‘हम सब एक हैं’ वे बोले मेरी हंसी छूट गई ‘हम तुमसे घृणा करते हैं’ वे अंततः बोले मैं हंसा हंसता रहा हंस रहा हूं
व्यंग्य कई लोग, बहुत सारे लोग कहते हैं कि हम तो भई दिल से जीते हैं। मेरा मन होता है कि इन्हें ले जाकर सड़क पर छोड़ दूं कि भैय्या, लेफ़्ट-राइट देखे बिना, दिमाग़ का इस्तेमाल किए बिना, ज़रा दिल से चलकर दिखाओ तो। क्या ये लोग महीने के आखि़री दिन अपनी तनख़्वाह बिना गिने ही ले आते होंगे !? क्या घर आने के बाद भी नहीं गिनते होंगे !? क्या दिल से चलनेवाले फ़िल्मस्टार बिना किसी रेट के साइनिंग अमाउंट ले लेते हैं ? वैसे जहां तक दिल की बात है साइनिंग अमाउंट भी क्यों लेना चाहिए ? कहानी भी क्यों पढ़नी चाहिए ? डायरेक्टर भी क्यों देखना चाहिए ? स्टार-कास्ट भी क्यों पता लगानी चाहिए ? पहले महीने क्या कमाया, उससे भी क्यों मतलब रखना चाहिए ? जितना मिल जाए चुपचाप, आंख मूंद के ले लो; आप लोग तो दिलवाले ठहरे, ये सब तो दिमाग़ के सौदे हैं रे भैय्या। हां, जब ब्लैकमनी और व्हाइटमनी में फ़र्क़ की बात आती होगी तब ज़रुर कई लोगों के दिल अत्यंत सक्रिय हो जाते होंगे। लगता है, दिल होते ही इसीलिए हैं, बेईमानियों, बदकारियों, लापरवाहियों, बदमाशियों, दोमुंहेपनों पर परदा डालने के लिए.... शादियों जैसे तथाकथित ‘पवित्र’ बंधनों के वक़्त लिफ़ाफ़ों का लेन-देन करनेवालें और बाक़ायदा उनकी लिस्टें बनानेवाले लोग दिल से जीते हैं !? आप बुरा न मानें तो मैं ज़रा-सा हंस लूं ? मानें तो मानें, हंसने की बात पर क्यों न हंसूं ? पड़ोसियों को परेशान करके नाजायज़ कमरे बनानेवाले लोग दिल से जीते हैं !? मैं हंस रहा हूं। आप बुरा मानिए। मुझे मज़ा आएगा। दफ़्तर से स्टेशनरी चुरानेवाले लोग, टीए-डीए मारनेवाले लोग दिल से जीते हैं !? मैं फिर हंस रहा हूं। हिम्मत हो तो आप भी साथ में हंस सकते हैं। दोस्ती, जान-पहचान, जाति, धर्म, पद, प्रतिष्टा, ‘तू मुझे सहला, मैं तुझे सहलाऊं’ के आधार पर कई-कई जगह एक साथ छपने और प्रसरनेवाले लोग दिल से जीते हैं !? मैं हंस रहा हूं। मुझे गणित के पट्ठे याद आ रहे हैं। क्या दिमाग़ से जीना वाक़ई इतना बुरा है ? सवाल नीयत का है, सवाल बचपन से मिली दिशा का है ; दिल और दिमाग़ दोनों उसीसे संचालित होते हैं। अगर नीयत ठीक है तो दिल भी क़ाबू में रहता है और दिमाग़ भी सही दिशा में काम करता है। वरना बेईमानों और कमज़ोरों को कोई न कोई बहाना तो चाहिए ही-दिल और दिमाग़ ही सही। -संजय ग्रोवर
05-01-2016